सरकारी अधिकारियों और एनजीओ ने मिलकर किया करोड़ों का घोटाला

पटना,बिहार के भागलपुर का सृजन घोटाला अपनी तरह का पहला सरकारी घोटाला है, जिसमें सरकारी अधिकारियों ने स्वयं सेवी संगठन सृजन के माध्यम से करोड़ों रुपयों का घोटाला ही नहीं किया है, उन्होंने उस पैसे को माइक्रो फाइनेंसिंग के माध्यम से बाजार में ब्याज पर उठा कर प्रतिमाह कमाई का जरिया भी खोज निकाला। अनुमान है कि सृजन नाम की गैर सरकारी संस्था के माध्यम से सरकारी अधिकारियों और विभागीय कर्मचारियों ने राज्य के खजाने में 1000 करोड़ से अधिक की लूटमारी की। इस घोटाले की जिस तरह दिन ब दिन परतें खुल रही हैं, उससे तो यही लगता है कि यह सन 1996 के चर्चित चारा घोटाले से ज्यादा बड़ा घोटाला है।
भागलपुर के गैर सरकारी संगठन सृजन द्वारा किए गए घोटाले की रकम के आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं। मुख्य सचिव के आदेश पर सभी सरकारी विभाग अपने लेन-देन और हिसाब-किताब बैंक विवरणी से मिलान करने में जुटे हुए हैं। इस बीच, भागलपुर के डीएम आदेश तितिरमारे के मुताबिक इस संबंध में अब तक सात प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है। एक प्राथमिकी कॉपरेटिव बैंक ने भी दर्ज कराई है, जिसमें 48 करोड़ रूपए सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड के खाते में गलत तरीके से ट्रांसफर किए गए हैं। इस मामले में आठ लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। जिलाधिकारी ने बताया कि कल्याण विभाग में भी फर्जी दस्तखत से 40 करोड़ रूपए बैंकों ने सृजन के खाते में ट्रांसफरकिए हैं। सर्व शिक्षा अभियान के खातों में भी गड़बड़ी की शिकायतें हैं। सूत्रों के मुताबिक सर्व शिक्षा अभियान का 525 करोड़ रूपए का लेन-देन का हिसाब नहीं मिल रहा है। अगर इस रकम को भी मिला दिया जाए, तो घोटाला की रकम 1027 करोड़ से भी ऊपर जा पहुंचेगी। पड़ोसी जिले सहरसा से भी इसके तार जुड़े होने की बात कही जा रही है। सृजन घोटाले का दायरा जिस तरह से आगे बढता जा रहा है, उससे साफ है कि यह 1996 के चारा धोटाले से ज्यादा बड़ा घोटाला है।
भागलपुर के जिलाधिकारी ने बताया कि वह तब चौंके जब उन्हें पता चला कि बैंकों में सरकारी खातों से रकम लगातार कम होती जा रही है। इसके बाद डीडीसी अमित कुमार से विस्तृत जांच कराई गई। बैंक विवरणी और पासबुक का मिलान कराया गया, तो काफी फर्क मिला। इसके बाद 74 करोड़ रूपए का जारी चेक बैंक से बाउंस हो गया। तब फर्जीवाड़े की असलियत सामने आई। आर्थिक अपराध इकाई और पुलिस की एसआईटी टीम मिलकर मामले की जड़ तक पहुंचने की कोशिश में जुटी है, लेकिन घोटाले की राशि में दिन ब दिन हो रही बढ़ोत्तरी से सभी लोग हैरान हैं। स्वयंसेवी संस्था सृजन की संचालिका मनोरमा देवी एक विधवा महिला थी, जिन्होंने पति की मृत्यु के काफी समय बाद 1993-94 में इस संस्था की नींव रखी। मनोरमा देवी की पहचान बड़े अधिकारी से लेकर राजनेताओं तक थी। कुछ ही दिनों में उनका समूह चर्चित हो गया।
धीरे-धीरे इस संगठन से छह हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़ गईं। इन महिलाओं को कर्ज देने के नाम पर संस्था ने अपना माइक्रो फाइनेंसिंग भी शुरू कर दी। इसी के माध्यम से आगे चल कर करोड़ों रुपए के सरकारी धन का घोटाला किया गया। ट्रेजरी से जारी होने वाले चेकों पर लिख दिया जाता था कि यह धन सृजन के खाते में हस्तांतरित कर दिया जाए। घोटाले में शामिल लोगों ने भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए समानांतर तंत्र भी विकसित कर लिया था। बैंक की सरकारी पासबुक प्राइवेट प्रेस में अपडेट कर दी जाती थी। खाते से पैसे निकाले जाने के बावजूद पासबुक में बैलेंस जस का तस रहता था। इस राज को दबाए रखने के लिए प्रशासनिक अफसरों, कर्मचारियों और बैंक प्रबंधन को मोटी रकम दी जाती थी। जब पैसों की जरूरत पड़ती, तो बाजार से पैसा उठा कर सरकारी खातों में जमा करा दिया जाता था।
सृजन नाम की संख्या सरकारी अधिकारियों के कालेधन को जमा करने की भी जिम्मेदारी निभाती थी। आर्थिक अपराध इकाई ने जब सन 2013 में जब भागलपुर की तत्कालीन अपर कलेक्टर जयश्री ठाकुर के ठिकानों पर छापा मारा तो, पता चला कि उन्होंने लगभग 7.30 करोड़ रुपए सृजन में जमा कर रखे हैं। सृजन इस धन को ब्याज पर उठा कर काली कमाई करने वाले अफसरों को प्रकारांतर से लाभ पहुंचाने में लगी हुई थी। धन हस्तांतरित करने का यह खेल 2005 से ही चल रहा था, लेकिन फिलहाल 2008-09 के मामले ही पकड़ में आए हैं। मनोरमा देवी की मौत के बाद इस संस्था का कामकाज उनके बेटे अमित और उसकी पत्नी प्रिया देख रहे थे। इस मामले का खुलासा होने के बाद दोनों फरार हैं। इस मामले ने लालू यादव को नया जीवन दे दिया है।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि एक बेहद साफ सुथरे राजनेता की है।भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चारो ओर से घिरे लालू यादव ने इस घोटाले के लिए मुख्यमंत्री नितीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी को जिम्मेदारी ठहराया है।

कैसे खुला राज
भागलपुर के जिलाधिकारी को पता चला कि सरकारी बैंक खातों में जमा राशि लगातार कम होती जा रही है। इसी दौरान 74 करोड़ रुपए का एक चेक बाउन्स हो गया।चेक बाउन्स होने के बाद उन्होंने इसका संज्ञान लिया और विभागीय अधिकारियों को इस मामले की जांच के आदेश दिया।

मि. क्लीन के राज में अरबों का घोटाला
घोटाले में अब तक 1027 करोड़ रुपए गड़बड़ी सामने आ चुकी है।साध ही इसका दायरा भगलपुर से आगे बढ़ता हुआ राज्य के अन्य भागों तक जा पहुंचा है।यह 1996 में हुए चारा घोटाले से भी बड़ा घोटाला है।चारा घोटाले में 950 करोड़ रुपए का घपला किया गया था।यह घोटाला नीतीश कुमार के कार्यकाल में किया गया।

निकाला दूनी कमाई का रास्ता
गैर सरकारी संगठन सृजन के माध्यम से अधिकारियों और बैंक प्रबंधन ने मिल कर करोड़ों का घोटाला ही नहीं किया।उन्होंने घोटाले से हासिल रकम लको माइक्रोफाइनेंसिंग के माध्यम से ब्याज पर उठा कर दुगनी कमाई का जरिया भी खोज निकाला।अधिकारियों ने घोटाले से हासिल रकम का सृजन की विभिन्न योजनाओं में निवेश कर रखा था।जिस पर उन्हें नियमित ब्याज मिलता था।

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