इंदौर, मध्यप्रदेश की पहली महिला डॉ. भक्ति यादव का सोमवार को निज निवास में निधन हो गया। वे 91 साल की थी। उन्होंने अपने कॅरियर में एक लाख से ज्यादा डिलेवरी करवाई थी। डॉ. दादी के नाम से मशहूर डॉ. भक्ति पिछले कुछ दिनों से बीमार थी। मुफ्त में इलाज करने को उन्होंने प्राथमिकता दी थी और जीवन के अंतिम पलों तक मरीजों की सेवा करती रही। सोमवार को इंदौर में अपने घर पर उन्होंने आखिरी सांस ली। सरकार ने इसी साल उन्हें पद्मश्री से नवाजा था। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। पीएम ने लिखा कि भक्ति यादव का दुनिया से चले जाना दुखद है। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं। उनका काम हम सबके लिए एक प्रेरणा है। उनके निधन पर मध्यप्रदेश में शोक की लहर है।
डॉ. भक्ति ने 64 साल के कॅरियर में एक लाख से ज्यादा डिलेवरी करवाईं। उनकी आखिरी इच्छा सांस छूटने तक काम करने की थी। इसीलिए बीमार रहने के बाद भी मरीजों को देखती थीं।
मोमबत्ती और लालटेन की रोशनी में डिलेवरी
उज्जैन के महिदपुर में जन्मी डॉ. भक्ति ने कई बार लालटेन में भी डिलेवरी कराई। उस दौर में आज की तरह संसाधन नहीं थे। लेकिन, उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं की और अपने कर्तव्यों को पूरा किया। ऐसे में मोमबत्ती और लालटेन की रोशनी में भी उन्होंने सफल डिलेवरी कराई।
डॉक्टर बनना ही था सपना
डॉ. भक्ति की शुरुआती पढ़ाई महिदपुर में ही हुई और आगे की पढ़ाई गरोठ तथा इंदौर में हुई। वे महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज में पहले एमबीबीएस बैच की छात्रा थीं। 1952 में एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर मध्य प्रदेश की पहली महिला डॉक्टर बनीं। इसके बाद उन्होंने नंदलाल भंडारी प्रसुतिगृह में बतौर गायनेकोलॉजिस्ट कॅरियर की शुरुआत की। 1978 में इस अस्पताल के बंद होने के बाद उन्होंने घर में ही नर्सिंग होम शुरू किया।
आखिरी सांस तक इलाज करते रहने की इच्छा
2016 में पद्म अवॉर्ड मिलने के बाद भक्ति यादव ने कहा था कि बचपन से एक ही सपना था, डॉक्टर बनूं। 1948 से 1951 के बैच में मैं अकेली लड़की थी, जिसने मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया। 68 साल तक हजारों लोगों का इलाज किया, खूब दुआएं मिलीं। चाहती हूं कि मरते दम तक लोगों का मुफ्त इलाज करूं।
एक लाख से अधिक डिलेवरी कराने वाली पद्मश्री डॉ. दादी भक्ति यादव नहीं रहीं
