नई दिल्ली राज्यसभा में सत्ता समर्थक सांसदों की कमी सर्कार को भारी पडी। पिछड़े वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के संविधान संशोधन बिल को संशोधन के साथ राज्य सभा में पारित किया गया। एनडीए के कई सांसद सदन में मौजूद नहीं थे। इसका फायदा विपक्ष को मिला और उसका संशोधन पास हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों सदनों से भाजपा सदस्यों की गैरमौजूदगी पर नाराजगी जाहिर की।
पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिये राज्य सभा में पेश 123 वें संविधान संशोधन विधेयक पर विपक्ष के संशोधनों ने न सिर्फ केन्द्र सरकार बल्कि समूचे सदन को गंभीर तकनीकी पेंच में उलझा दिया तथा इसके कारण संसद में आज कई बार ऐसे नजारे देखने को मिले जो प्राय: देखने को नहीं मिलते।
सामाजिक अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत द्वारा पेश संशोधन विधेयक पर लगभग चार घंटे की बहस के बाद कांग्रेस सदस्य दिग्विजय सिंह, बीके हरिप्रसाद और हुसैन दलवई ने प्रस्तावित आयोग की सदस्य संख्या तीन से बढ़ाकर पांच करने, एक महिला सदस्य और एक अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य को शामिल करने का प्रावधान विधेयक में शामिल करने के संशोधन पेश किये।
इस पर गहलोत ने इन प्रावधानों को अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग की तर्ज पर प्रस्तावित पिछड़ा वर्ग आयोग की नियमावलि में शामिल करने का आश्वासन देते हुये विपक्षी सदस्यों से संशोधन प्रस्तावों को वापस लेने का अनुरोध किया लेकिन सिंह ने संशोधन प्रस्ताव वापस लेने के बजाय उपसभापति पी जे कुरियन से इस पर मतविभाजन की मांग कर सत्तापक्ष की मुसीबत बढ़ा दी।
मतदान में संशोधन प्रस्ताव के पक्ष में 75 और विरोध में 54 मत मिलने पर सरकार के लिये असहज स्थिति पैदा हो गई। इस अप्रत्याशित हालात पैदा होने पर सदन में सत्तापक्ष और विपक्ष के मौजूद नामचीन वकील सदस्यों कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आपसी विचार-विमर्श से बीच का रास्ता निकालने की पुरजोर कोशिश की । कुरियन ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावित संशोधन प्रस्ताव के साथ विधेयक को आंशिक तौर पर पारित मानते हुये इसे फिर से लोकसभा के समक्ष भेजा जाएगा।