भोपाल (रमेश ठाकुर) मध्यप्रदेश के इतिहास में यह पहला अवसर है कि किसी न्यायाधीश को अपने ही खिलाफ अन्याय की सुनवाई नहीं होने पर विरोध प्रदर्शित करना पड़ रहा है। जबलपुर स्थित उच्च न्यायालय में विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी के पद पर पदस्थ जिला एवं सत्र न्यायाधीश आर0के0 श्रीवास ने अपने स्थानांतरण के विरोध में सत्याग्रह प्रारम्भ कर दिया है। उनका यह विरोध प्रदर्शन उच्च न्यायालय के सामने प्रारम्भ हुआ है।
गौरतलब है कि ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के एशियाई लोगों के खिलाफ भेदभाव करने वाले कानून के जवाब में गांधी ने पहली बार 1906 में सत्याग्रह की कल्पना की थी। भारत में पहला सत्याग्रह 1917 में चंपारण में किया था। न्यायाधीश श्रीवास का कहना है कि पिछले एक साल तीन माह के दौरान उनके 4 तबादले हो गए हैं। इस बार जबलपुर से नीमच स्थानांतरित किया गया है।जल्दी-जल्दी तबादलों के संबंध में उन्होंने मुख्य न्यायाधीश और रजिस्टार जनरल तक का ध्यान आकर्षित किया, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला। न्यायाधीश श्रीवास कहते हैं कि विवश हो कर उन्हें तबादले के विरोध में सार्वजनिक रूप से सत्याग्रह के रूप में अपनी आवाज बुलन्द करनी पड़ी है। वे कहते हैं कि उन्होंने यह कदम अपनी नौकरी दांव पर लगा कर उठाया है, इसके अलावा उनके पास और कोई विकल्प भी नहीं था। इस संबंध में प्रदेश के विधि एवं विधायी कार्य मंत्री रामपाल सिंह ने कहा कि वह न्यायाधीश के तबादले और उनकी समस्याओं के संदर्भ में बातचीत करेंगे। मंत्रीपरिषद की बैठक के बाद पत्रकारों से रूबरू हुए सिंह ने अन्य कई मुद्दों पर भी बेहिचक बातचीत की। उन्होंने माना कि पार्टी के राष्टीय अध्यक्ष अमित शाह के प्रस्तावित तीन दिवसीय दौरे के समय अन्य राज्यों की तर्ज पर यहां भी कांग्रेस के कई विधायकों के भाजपा में शामिल होने की संभावना है।