भोपाल,खनन नीति का आधार पर्यावरण संरक्षण, सतत् विकास और मानवीय दृष्टिकोण होना चाहिये। रेत से राजस्व अर्जित करना सरकार की मंशा कतई नहीं है। यह बातें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कही हैं। चौहान शुक्रवार को एप्को सभागार में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ के समय बोल रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा- प्रदेश सरकार का प्रयास है कि विकास के लिए रेत की सुलभ उपलब्धता हो। अवैध गतिविधियां बंद हों। नदियों का दोहन हो, शोषण नहीं। खनन दृष्टिकोण मानवीय हो। उन्होंने कहा कि इन्हीं उद्देश्यों पर आधारित खनन नीति निर्माण के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया है। चौहान ने सरकार द्वारा खनन नीति निर्माण के विभिन्न स्वरूपों का चरणबद्ध उल्लेख किया और कार्यशाला में विचारणीय मुद्दों को रेखांकित किया। मुख्यमंत्री ने आशा व्यक्त की कि प्रदेश की खनन नीति का स्वरूप कार्यशाला के मंथन से निकला अमृत निर्धारित करेगा। चौहान ने इस अवसर पर कहा कि प्रकृति पर केवल मानवमात्र का अधिकार नहीं है। जीव-जंतुओं, चल-अचल सभी तत्वों का समान अधिकार है। अत: प्रकृति के साथ संतुलित व्यवहार जरूरी है। ऐसा नहीं होने पर होने वाले आत्मघाती प्रभावों के संकेत पृथ्वी के तापमान में वृद्धि, अवर्षा, अनियमित वर्षा और प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सामने आने लगे हैं। अनेक जीव-जंतु धरती से विलुप्त होने लगे हैं। महाशीर मछली सहित अनेक जीव-जंतु विलुप्ती के कगार पर है, उनके संरक्षण के प्रयास हो रहे हैं। संसार में सर्वत्र चिंता हो रही है। प्रदेश के नागरिकों ने पर्यावरण संरक्षण के लिये नर्मदा सेवा यात्रा के संकल्प और 12 घंटों में 7 करोड़ 13 लाख पौधे रोपकर इस दिशा में अपना फर्ज निभाया है। चौहान ने कहा कि यह जरूरी हो गया है कि हम भावी पीढ़ी के लिए स्वस्थ वातावरण छोड़ें जिसमें सभी के लिये जीवन के समान अवसर हों। चौहान ने कहा कि हमें प्रकृति से उतना ही लेना चाहिये जिसकी प्रकृति स्वयं भरपाई कर सके। नदी से हम उतनी रेत लें जिसकी वह स्वयं भरपाई कर सकें। पर्यावरण और विकास में संतुलन हमारी नीति का आधार हो। एक पक्षीय प्रयास उचित नहीं हैं। नदी से रेत उत्खनन अगर पूर्णत: बंद हो जाता है तो नदी में कटाव की समस्या आ जाती है। किनारे की उपजाऊ भूमि रेत में बदलने लगती है। इसी तरह विकास के लिये रेत की सहज उपलब्धता अंधाधुंध लाभार्जन प्रतिस्पर्धा को बढ़ाकर नदी के अस्तित्व के लिये संकट खड़ाकर देती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह जरूरी है कि नीति ऐसी बने जो संतुलित और व्यवहारिक हो। खनन नीति से आर्थिक लाभ की प्रतिस्पर्धा उत्पन्न नहीं हो। अवैध गतिविधियां बंद हों। मानव हस्तक्षेप के अवसर नियंत्रित और न्यूनतम हों। प्रक्रियाएं पारदर्शी हों। दृष्टिकोण मानवीय हो। आम उपभोक्ता को रेत सस्ती दर पर सुलभ हो। रोजगार के नये अवसर सृजित हों।
कार्यशाला का समापन
खनिज संसाधन, उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने कहा है कि प्रदेश की नदियों और पर्यावरण का संरक्षण राज्य सरकार की पहली प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि खनिज सम्पदा में रेत का अपना महत्व है। रेत की माँग के अनुसार वैध तरीके से पूर्ति होने पर ही विकास की रफ्तार को गति मिलेगी। शुक्ल ने आज भोपाल के एप्को परिसर में नदियों की पारिस्थितिकी के अनुकूल रेत हार्वेस्टिंग और विपणन पर केन्द्रित कार्यशाला के समापन अवसर पर ये उदगार व्यक्त किये। समापन समारोह में स्टेट इनवायरमेंट इम्पेक्ट असिसमेंट अथारिटी (एस.इ.आई.ए.ए.) के पूर्व पदाधिकारी वसीम अख्तर, संयुक्त सचिव भारत सरकार सुभाष चन्द्रा, कंट्रोल ऑफ माइंस सेन्ट्रल जोन नागपुर भी मौजूद थे।
राजेन्द्र शुक्ल ने कहा कि रेत खनिज के अंधाधुंध दोहन से पर्यावरण एवं ईकोलॉजी पर विपरीत असर पड़ता है। इस कारण से नदियों में रेत खनिज के संग्रहण और पुर्नभरण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता महसूस हुई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में नर्मदा एवं अन्य नदियों में 1250 खदानें चिन्हित हैं। इनमें लगभग 7 करोड़ घन मीटर रेत उपलब्ध है। इन चिन्हित खदानों में से केवल 450 खदाने संचालन के लिये ठेके पर स्वीकृत की गई हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में खदान से मात्र एक करोड़ 60 लाख घन मीटर रेत खनिज की निकासी की गई है।