लखनऊ, उप्र विधानसभा में गुरूवार को विपक्षी सदस्यों के बीच अभूतपूर्व एकता देखने को मिली। सूबे की योगी सरकार के कथित तानाशाही रवैये और मुख्यमंत्री की टिप्पणियों से आहत विपक्ष ने न सिर्फ सरकार पर जमकर हमला बोला बल्कि सामूहिक रूप से सदन की कार्यवाही का बहिष्कार भी किया। विपक्ष का आरोप था कि सरकार धमकी देने और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करने से भी परहेज नहीं कर रही है।
सदन की बैठक शुरू होते ही नेता प्रतिपक्ष समाजवादी पार्टी के राम गोविन्द चौधरी ने आरोप लगाया कि सरकार विपक्ष को धमका रही है और चाहती है कि हम (विपक्ष) जेल चले जाएं। श्री चौधरी ने कहा कि सत्ता पक्ष हमारे पूरे परिवार को जेल में डालने की धमकी दे रहा है। सदस्यों का अपमान किया जा रहा है और हमें अध्यक्ष से संरक्षण नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि वे पिछले 40 साल से विधानसभा में हैं लेकिन मैंने सदन में ऐसी स्थिति नहीं देखी। हम सभी बहिर्गमन कर रहे हैं। आप जैसे चाहें सदन चलायें। श्री चौधरी का समर्थन करते हुए बसपा नेता लालजी वर्मा ने कहा कि जब भी विपक्षी सदस्य खड़े होते हैं, नियमों का हवाला दिया जाता है और उन्हें बोलने नहीं दिया जाता। श्री वर्मा ने कहा कि वित्त मंत्री के संबोधन के बाद नेता सदन के संबोधन का प्रावधान नहीं है। अगर नेता सदन को बोलने की अनुमति मिली तो नेता प्रतिपक्ष को भी बोलने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे हालात में सदन में रहने का कोई औचित्य नहीं है। कांग्रेस नेता अजय कुमार लल्लू ने आरोप लगाया कि कल जब नेता प्रतिपक्ष ने संबोधन शुरू किया तो उनके माइक को बंद कर दिया गया। उन्होंने कहा कि हम सभी ने विपक्ष के प्रति सरकार के रवैये को लेकर बहिर्गमन का फैसला किया है। विपक्षी सदस्यों ने अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित की बात भी नहीं सुनी और सदन से बहिर्गमन कर गये।
वहीं संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह बात सही नहीं है कि विपक्ष की आवाज दबायी गयी है और सरकार अहंकार में काम कर रही है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा 2012 से अब तक की गयी नियुक्तियों की सीबीआई जांच की घोषणा करने में क्या गलत है? यह न्यायेचित कदम है। हमें जनादेश मिला है और जनता में संदेश जाना चाहिए हम जनता के लिए काम कर रहे हैं। किसी असंसदीय भाषा का इस्तेमाल नहीं किया गया है। श्री खन्ना ने कहा कि सदन से बाहर जाना जनादेश का अपमान है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने तार्किक ढंग से सरकार के कामकाज को पेश किया। उन्होंने विपक्ष की भावना और बहिर्गमन को उनकी खिसियाहट करार दिया। उन्होंने कहा कि विपक्ष जो कर रहा है, वह सही नहीं है। श्री खन्ना ने कहा कि उन्होंने सदन में आने से पहले सुबह नेता प्रतिपक्ष से बात की थी।
बाद में विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि उन्होंने विपक्ष को बोलने का पर्याप्त समय दिया है। उन्होंने कहा के नेता प्रतिपक्ष ने अपनी राय रखी और सदन से चले गये। सदन से जाने से पहले कम से कम उन्हें मेरी बात सुननी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि मैं विपक्ष से आग्रह करता हूं कि वह कार्यवाही में हिस्सा ले क्योंकि प्रदेश की 22 करोड़ जनता ने उन्हें इसलिए चुनकर भेजा है ताकि उनकी आवाज सदन में उठायी जा सके। इस पर श्री खन्ना ने अध्यक्ष श्री दीक्षित को सुझावा दिया कि अगर वह चाहें तो सदन की बैठक कुछ देर के लिए स्थगित कर विपक्षी नेताओं से बातचीत कर सकते हैं ताकि उन्हें सदन में वापस आने के लिए राजी किया जा सके। इसके बाद अध्यक्ष ने सदन की बैठक आधे घंटे के लिए स्थगित कर दी। लेकिन वहीं सम्पूर्ण विपक्ष पूरे दिन सदन में नहीं आया और उसके बाद सरकार ने बिना विपक्ष के ही विभागीय बजट को पास करने का सिलसिला शुरू कर दिया।