नई दिल्ली,महिला विश्व कप में पाकिस्तान पर भारत की बड़ी जीत की रहीं एकता बिष्ट ने यहां तक पहुंचने में कड़ी मेहनत की है। अल्मोड़ा की सर्द रातों में भी उनके परिवार ने भी कम कष्ट नहीं उठाया। भारतीय सेना में हवलदार के पद से रिटायर होने के बाद उनके पिता कुंदल लाल बिष्ट ने घर का खर्च चलाने के लिए करीब एक दशक तक चाय की दुकान चलाई। क्रिकेट के चाहने वाले अब इस बाएं हाथ की इस गेंदबाज से वाकिफ हैं, जिन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ 5 विकेट लेकर मैन ऑफ द मैच का खिताब अपने नाम किया। बहुत कम लोगों को इस 31 वर्षीय स्पिनर के संघर्ष की कहानी के बारे में पता है। 1988 में सेना से रिटायर होने के बाद उन्हें महज 1500 रुपये पेंशन मिलती थी। अपनी कमाई बढ़ाने और बेटी के सपनों को उड़ान देने के लिए उन्होंने अल्मोड़ा में चाय की दुकान खोली।
शुरू से ही एकता से थीं उम्मीदें
पिता को शुरू से ही उम्मीद थी कि बेटी हमारा नाम करेगी। ’एकता ने महज 6 साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू किया। इसके बाद खेल के प्रति उनका प्यार बढ़ा ही है। हमें उम्मीद थी कि वह खेल में देश का नाम रोशन करेंगी और 2011 से खेलना शुरू करने के बाद से वह लगातार ऐसा कर रहीं हैं।’
टीम में थी अकेली लड़की
उनकी मां तारा ने कहा, ’एकता को खेल इतना पसंद था कि उसने लड़कों के साथ खेलना शुरू कर दिया। लोग उसे देखने आते थे क्योंकि लड़कों की टीम वह अकेली लड़की थी। इससे हम पर आर्थिक दबाव जरूर आया लेकिन हमने पूरी तरह उसका समर्थन किया। वह एक जिम्मेदार लड़की थी। वह अपने खर्च में से काफी बचत करती।’ तारा ने कहा, ’जब एकता का टीम में चयन हो गया तो प्रायोजक आगे आए और हमारी आर्थिक स्थिति में सुधार होना शुरू हो गया।
कोच ने बढ़ाया हौंसला
आखिरकार मेरे पति की पेंशन में भी इजाफा हो गया और अंत में हमने चाय की दुकान भी बंद कर दी।’ 2006 में एकता उत्तराखंड क्रिकेट टीम की कप्तान थीं। 2007 से 2010 तक वह उत्तर प्रदेश के लिए खेलीं। उनके पूर्व कोच लियाकत अली खान ने बताया कि एक वक्त ऐसा आया था जब वह राष्ट्रीय टीम में जगह न बना पाने के कारण काफी निराश हो गईं थीं। ऐसे वक्त में मैं उनका हौसला बढ़ाता रहा।’ आखिर उसका सपना पूरा हो गया। अपनी प्रतिभा के दम पर उसने कई चुनौतियों को पार किया। यहां तक कि तब जब अल्मोड़ा में कोई अच्छा स्टेडियम भी नहीं था।
आईये जानते हैं महिला क्रिकेट की नई सितारा खिलाडी एकता बिष्ट ने कैसे पाया यह मुकाम
