नई दिल्ली,पाकिस्तानी हुक्मरान हमेशा से अपने विभिन्न घरेलू मोर्चो पर असफलता से जनता का ध्यान हटाने के लिए भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने का सहारा लेते आए हैं। साथ ही यह भी एक सच्चाई है कि पाकिस्तान अपने स्थायित्व से ज्यादा भारत को अस्थिर करने के फिराक में लगा रहता है। पाक हुक्मरानों की ये घोषित नीति है कि अशांत भारत ही पाकिस्तान के लिए अपने देश की जनता को असली मुद्दे से भटकाने का बेहतर जरिया है। अपने नापाक इरादे को अमलीजामा पहनाने के लिए वो लगातार चीन की मदद लेता रहा है। ठीक वैसे ही चीन को डर है कि भारत की उभरती अर्थव्यवस्था एवं ताकत उसके वजूद के लिए खतरा बनेगा, लिहाजा उसने पाकिस्तान के रूप में एक ऐसा मोहरा ढूंढा जिसके जरिए वो अपनी चाल में कामयाब हो सके। चीन-पाक आर्थिक गलियारा के जरिए बलूचिस्तान स्थित ग्वादर पोर्ट तक अपनी पहुंच बनाना उसका प्रमुख उदाहरण है। लेकिन पीएम मोदी ने भी साफ कर दिया कि कांडला और चाबहार के रूप में ऐसी शक्तियां हासिल हुईं हैं जिससे दुनिया की कोई भी शक्ति भारत के विकास को रोक नही सकती है।
रामायण के एक प्रसंग की याद दिलाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एक बार चाबहार विकसित हो गया तो ईरान से मालवाहक पोत सीधे कांडला बंदरगाह पर आ सकेंगे। दोनों बंदरगाहों के हाथ मिला लेने से कांडला बंदरगाह विश्व व्यापार के क्षेत्र में खुद को अंगद की तरह स्थापित कर लेगा। भारत और पाकिस्तान के बटवारे के बाद देश का प्रमुख बंदरगाह कराची पाकिस्तान में चला गया था। जिसके बाद पश्चिमी तट पर एक बड़े बंदरगाह की जरूरत महसूस की गई। कच्छ में स्थित ये बंदरगाह कराची से महज २५६ नॉटिकल मील और मुंबई पोर्ट से ४३० नॉटिकल मील दूर है। इसे विशिष्ट आर्थिक जोन में रखा गया है। इस बंदरगाह से प्रति वर्ष ७० हजार मिलियन टन से ज्यादा सामान का आयात निर्यात किया जा सकता है। भारत और ईरान के लिए चाबहार परियोजना का बहुत महत्व है। पाकिस्तान को लगता है कि अगर यह परियोजना सफल हुई तो वो अलग-थलग पड़ सकता है। इसके पीछे कई कारण हैं। पहली वजह यह है कि इस परियोजना के पूरा होने के बाद इस ईरानी बंदरगाह के जरिए भारत को अफ़ग़ानिस्तान तक सामान पहुंचाने का सीधा रास्ता मिलेगा। अब तक भारतीय सामान पाकिस्तान के ज़रिए अफग़ानिस्तान तक पहुंचती हैं। इस परियोजना के जरिए भारतीय सामान सेंट्रल एशिया और पूर्वी यूरोप तक सामान भेज सकता है। पाकिस्तान के लिए खतरा ये भी है कि व्यापार में भारत-ईरान-अफगानिस्तान का सहयोग, रणनीति और अन्य क्षेत्रों में भी बढ़ेगा और इसके पाकिस्तान के लिए नकारात्मक नतीजे निकलेंगे।