मुंबई,आमतौर पर 40 या इससे अधिक आयु के लोग दिल का दौरा या दिल से संबंधित अन्य बीमारियों से पीड़ित होते हैं। मात्र चार महीने की नन्ही सी आयु में विदिशा ने आधे से ज़्यादा समय अस्पताल में बिताया है। इन दिनों में विदिशा को एक नहीं, दो नहीं बल्कि छह बार दिल का दौरा पड़ चुका है। लेकिन इस चार माह की बच्ची ने हर बार मौत को मात दी है। विदिशा की इस लड़ाई में उसके माँ-बाप हर समय उसके साथ थे। विदिशा के पिता विनोद के मुताबिक जब वह सिर्फ 45 दिन की थी,तो दूध पीने के तुरंत बाद विदिशा ने खून की उल्टी की और बेहोश हो गई। विदिशा की माँ विशाखा और विनोद तुरंत विदिशा को अपने डॉक्टर के पास ले गए। विदिशा की हालत देख कर चिकित्सकों ने सलाह दी कि विदिशा को मुंबई के वाडिया अस्पताल में ले जाना चाहिए जहां कोई स्पेशलिस्ट उसकी जांच कर सके। विनोद एक निजी कंपनी में दिहाड़ी पर काम करते हैं। उनके पैरों तले ज़मीन फिसल गई जब उन्हें अपनी नन्हीं सी जान की हालत का अंदाज़ा हुआ।
उन्होने बताया कि पहले तो समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ है। ऐसा लगा ठीक हो जाएगी लेकिन जब हमारे डॉक्टर ने कहा कि विदिशा के दिल की धड़कनें बहुत तेज़ हो रही हैं तब लगा कि कुछ गड़बड़ है।
विशाखा और विनोद तुरंत विदिशा को वाडिया अस्पताल ले गए जहां डॉक्टर बिस्वा पांडा ने बताया कि विदिशा को दिल की ऐसी बीमारी है जो बहुत कम लोगों को होती है। इसे ट्रांसपोज़िशन ऑफ़ द ग्रेट आर्टरिज़ कहा जाता है। इस बीमारी में दिल की एनॉटमी (संरचना) सामान्य दिल के मुकाबले बिल्कुल उलटी होती है। विदिशा की हालत देख कर डॉक्टरों ने फैसला किया कि तुरंत ऑपरेशन करना ज़रूरी है। इसके बाद 14 मार्च को ऑपरेशन किया गया जो लगभग 12 घंटे चला। इतने लंबे ऑपरेशन के बाद विदिशा का दिल तो ठीक हो गया लेकिन उसके कमज़ोर फेफड़े ठीक नहीं हो पाए। चिकित्सकों ने बताया कि चूँकि विदिशा की बीमारी को जन्म के तुरंत बाद ही ऑपरेशन के ज़रिए ठीक नहीं किया गया था, इसलिए उसके फेफड़ों को कमज़ोर दिल की आदत पड़ गई है और जब बाद मैं ऑपरेशन हुआ है तब फेफ़ड़े तालमेल नहीं बिठा पा रहे। ऑपरेशन के तुरंत बाद विदिशा की हालत और भी खराब होने लगी, उसे आईसीयू में रखा गया जहां वह तकरीबन 51 दिनों तक थी। इस दौरान अपनी ख़राब सेहत के चलते विदिशा को छह बार दिल का दौरा पड़ा। एक बार तो डॉक्टरों को 15 मिनट लगे विदिशा के दिल की धड़कने वापस लाने में।
चिकित्सकों ने की आर्थिक मदद
लगभग दो महीने की जद्दोजहद के बाद विदिशा अब बिल्कुल ठीक है। उसके पिता विनोद कहते हैं कि अब उसकी जान को खतरा नहीं है। डॉक्टरों ने हर मोड़ पर हमारी मदद की और हमें सही रास्ता दिखाया। जब ये पता चला कि विदिशा के इलाज में बहुत पैसे लगेंगे तो मैंने उन्हें बताया कि मैं दिहाड़ी पर काम करता हूँ। जब ये पता कि विदिशा के पूरे इलाज में 4-5 लाख रुपए लगेंगे तब मैंने डॉक्टर से और अस्पताल प्रशासन से कहा कि मेरे पास इतने पैसे नहीं है। उन्होंने मुझे दिलासा दिया और कहा जितना कर पाते हो करो बाकी हम देख लेंगे। मैंने यहां वहां से मांगकर 50 हज़ार तक जमा किए और दिए , उसके बाद पूरा ख़र्चा अस्पताल ने किया। भावुक होकर विनोद ने कहा कि आज उनकी वजह से मेरी बेटी को नया जीवन मिला है।