रायगढ़,यूँ तो संरक्षित वन्य प्राणियों की रक्षा के लिए शासन द्वारा वन विभाग की पूरी फ़ौज तैयार की गयी है और वन विभाग के अमले से अपेक्षा भी यही रहती है कि वो धरातल पर संरक्षित वन्य जीवो की रक्षा करेंगे और अवैध रूप से शिकार करने वालो पर कड़ी कार्यवाही करेंगे परन्तु जब वन विभाग के लंबे चौड़े अमले और गश्ती के दावो के बावजूद संरक्षित वन्य प्राणियों का अवैध शिकार धड़ल्ले से हो रहा हो और विभाग को इसकी कानो कान खबर न हो तब विभाग की कार्यप्रणाली पर संदेह उतपन्न होना स्वाभाविक हो जाता है । वर्तमान मामला राष्ट्रीय पक्षी मोर के शिकार है । सूत्रों से।मिली जानकारी के अनुसार घरघोड़ा के रायकेरा क्षेत्र के जंगलों में गर्मी व पतझड़ का फायदा उठा कर शिकारियों द्वारा राष्ट्रीय पक्षी मोर का धड़ल्ले से शिकार किया जा रहा है ।बताया जाता है कि रायकेरा के जंगलों में 2000 से ज्यादा मोर थे जो लगातार हो रहे शिकार के कारण आज विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके हैं । इतनी बड़ी संख्या में संरक्षित वन्य जीव मोर के शिकार पर वन विभाग की चुप्पी बड़ी गम्भीर लापरवाही है ।रायकेरा के जंगलों में शिकारियों का यह धंधा काफी लम्बे समय से चला आ रहा है। इन पर अंकुश लगाने के लिए अब तक न तो पुलिस प्रशासन ने एवं न ही वन एवं पर्यावरण विभाग ने कोई कारगर कदम उठाए हैं। इससे क्षेत्र में इनका शिकार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। वहीं इस शिकार गिरोह के हौसले परवान चढ़े हुए हैं। राष्ट्रीय पक्षी मोर का मांस एवं पंख महंगे दामों में बेचने के लालच में ये शिकारी मोर की जान के दुश्मन बन बैठे हैं।
कहाँ गायब हो रहे मोर,प्रावधानों पर भी ख़ामोशी
घरघोड़ा क्षेत्र के रायकेरा जंगलो में 2 हजार से ज्यादा राष्ट्रीय पक्षी मोर विचरण करते थे जिसकी पुष्टि क्षेत्र के ग्रामीण करते हैं पर जब आज गाहे बगाहे एक आध मोर ही दिख पाता है तब सवाल उठना लाजमी है कि ये मोर कहाँ गए । राष्ट्रीय पक्षी मोर की मौत होने पर वन्य पशु पक्षी अधिनियम के तहम प्रावधान है कि मृत राष्ट्रीय पक्षी का पशु चिकित्सक को सूचना देकर उसका पोस्टमार्टम करवाया जाता है, ताकि यह पता चले कि उसकी मौत कैसे हुई है? वहीं पीएम के बाद उसे विधिविधान के साथ जमीन में दफनाया जाता है। पर क्षेत्र में ऐसा शायद ही कोई मामला हो जहाँ राष्टि्रय पक्षी की मौत के बाद उसका पी एम किया गया हो । इससे साफ है कि मोरो की कमी का कारण शिकार है जिस पर अभी तक वन विभाग, शासन प्रशासन आँखे मूंदे बैठा है ।क्योंकि अगर मोरो की संख्या में भारी कमी किसी बीमारी या अन्य वजह से होती तो प्रावधान अनुसार इसकी जानकारी विभाग के पास दर्ज होती ।राष्ट्रीय पक्षी की तादाद में इतनी भारी कमी होने के बावजूद उनके संरक्षण के।लिए जिम्मेदार विभाग का यूँ अंजान बने रहना निश्चय ही सुखद संकेत नही है ।
अन्य वन्यजीवो का भी हो रहा शिकार
ऐसा नही है कि शिकारियों द्वारा केवल मोर को निशाना बनाया जा रहा ।सूत्रों के अनुसार घरघोड़ा क्षेत्र के सुहाई,छर्राटांगर जंगलो में जंगली शूकर, साम्हर जैसे जीवो पर भी शिकारियों की बुरी नजर पड़ चुकी है और रात के अँधेरे में शूकर और साम्हर का शिकार भी खुलेआम जारी है । इस तरह अवैध शिकार का क्षेत्र में फलना फूलना और उस पर वन विभाग की नजर न पड?ा अपने आप में आश्चर्य जनक बात है । वर्तमान में रायगढ़ में हुयी छापेमारी और वन्य जीवो से सम्बंधित बरामदगी से घरघोड़ा क्षेत्र में चल रहे अवैध शिकारियों के तार जुड़े हो सकते हैं जिसकी जाँच की मांग भी उठने लगी है । अब देखना होगा की संरक्षित वन्य जीवो के संरक्षण की शपथ लेने वाला वन विभाग अपने शपथ की लाज रख पाता है या नही ।
घरघोड़ा के रायकेरा ओर सुहाई के घने जंगलों में बड़ी मात्र में वन्य प्राणी पाये जाते है गर्मी माह में पानी पीने वन्य प्राणी बाहर आते है जिससे इनका अवेध शिकार बड़ी मात्रा में बड़ गया है वन विभाग गम्भीरता से लेना चाहिए इनका सरक्षण आवश्यक है।