बिलासपुर, दो वर्ष पहले 2013 में बिलासपुर विश्वविद्यालय में पीएचडी करने वाले 270 शोधार्थी की डिग्री पर अब खतरा मंडरा रहा है। बिलासपुर विश्वविद्यालय ने आरक्षण नियम का पालन नहीं किया और वर्ष 2015 में पीएचडी धारकों को डिग्री दे दी। इस मामले को लेकर अनुसूचित जनजाति आयोग से शिकायत की गई थी।
आज आयोग के अध्यक्ष जीआर राणा ने बिलासपुर विश्वविद्यालय प्रबंधन को नोटिस जारी कर 2015 में 270 पीएचडी धारकों के मामले में संविधान व यूजीसी के नियमों का पालन करने निर्देश दिए हैं। आयोग से नोटिस मिलते ही बिलासपुर विश्वविद्यालय में हडकप मच गया है। आरक्षण नियमों का यदि फिरसे पालन किया जाता है तो सभी पुराने 270 पीएचडी धारकों की डिग्री खतरे में पड़ सकती है। इसके पहले भी बीयू ने इस मामले में अपनी गलती स्वीकार की थी।
बिलासा विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 2012 में की गई थी। वर्ष 2013 में 270 छात्र-छात्राओं को विभिन्न विषयों पर बीयू ने पीएचडी में प्रवेश दिया था। लेकिन आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया था। यूजीसी तथा भर्ती सेवा में अनुसूचित जाति के लिए 12 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लिए 32 प्रतिशत एवं ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। 270 को पीएचडी में दाखिला के साथ अनुसूचित जनजाति वर्ग को प्रवेश नहीं दिया गया। संतराम नेताम ने इस मामले की शिकायत राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के समक्ष की थी दो साल बाद आयोग ने जांच में इस आरोप को सही पाया तथा विश्वविद्यालय प्रबंधन को आयोग के अध्यक्ष जीआर राणा ने नोटिस भेजा है। जिसमें नियम संविधान यूजीसी के मापदंड का पालन करने निर्देश दिए हैं। बताया जाता है कि विश्वविद्यालय ने पहले ही अपनी गलती स्वीकार कर लिया था। समाजसेवी संतराम नेताम ने इस मामले में हाईकोर्ट में केवियट दायर किया है। अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय तक मामला पहुंचाया है। अब 2015 के पीएचडी धारकों के सामने संकट उत्पन्न हो गया है।