नई दिल्ली, यदि भारत वित्तीय अनुशासन के रास्ते पर आगे बढ़ता है तथा एफआरबीएम की सिफारिशों के अनुरूप वित्तीय परिषद का गठन करता है तो उसके साख परिदृश्य में सुधार आएगा। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विसेज ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि राजकोषीय घाटे को 2022-23 तक 2.5 प्रतिशत पर लाया जाना चाहिए, जिसके चालू वित्त वर्ष के दौरान 3.2 प्रतिशत रहने का बजट अनुमान रखा गया है। विदित हो कि सरकार की कुल व्यय और प्राप्तियों का अंतर राजकोषीय घाटा कहलाता है।
मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विसेज इंडिया के सॉवरेन विश्लेषक विलिमय फॉस्टर ने कहा कि एफआरबीएम की सिफारिशों के दायरे में वित्तीय अनुशासन का क्रियान्वयन तथा वित्तीय परिषद के गठन से समय के साथ ऋण का बोझ कम होगा और इससे भारत का साख परिदृश्य सुधरेगा। पूर्व राजस्व सचिव एन के सिंह की अगुवाई वाली समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि 2023 तक केंद्र के ऋण-जीडीपी अनुपात को 40 प्रतिशत पर लाया जाना चाहिए जो अभी 49 प्रतिशत है। वर्तमान में केन्द्र और राज्य सरकार का कुल ऋण-जीडीपी अनुपात 68.5 प्रतिशत पर है। रेटिंग एजेंसियां अक्सर भारत के ऋण-जीडीपी के उंचे अनुपात को लेकर ही रेटिंग सुधारने में आनाकानी करती रही हैं।