खंडवा(खालवा), बेशकीमती सागौन का हजारों साल पुराना जंगल संकट में है। आमुल्ला गुड़ी रेंज के बोरखेड़ा, सरमेसर और सुंदरदेव के सुहागी में आग विकट रूप ले रही है। स्थानीय अफसर आदिवासियों को इस काम में झोंक रहे हैं। सोमवार को तो गुड़ी क्षेत्र का जंगल फिर भभक गया। मुख्य वन संरक्षक को जानकारी दे दी गई कि आग बुझ चुकी है। असलियत पता चलते ही सीसीएफ आरडी महला ने कड़ी फटकार लगाई है। वे भी मंगलवार को खालवा व गुड़ी के जंगलों में पहुंच सकते हैं।
कालीभीत का जंगल मध्यप्रदेश के सघन सागौन की शान है। जमीनी अफसरों की लापरवाही से यह जंगल आग की चपेट में है। बताते हैं कि विभाग के जमीनी अफसरों ने अवैध कटाई को छिपाने के लिए आग का इस्तेमाल कर दिया। वनमंत्री रहे विजय शाह की जागरूकता पर आदिवासी तबका जंगल का पक्षधर हो गया। अब वन विभाग के छोटे कर्मी-अफसर ही कई जगह नौकरी बचाने का काम कर रहे हैं।
सीसीएफ आरडी महला को वास्तविकता पता चली तो वे भड़क गए। खालवा एवं गुड़ी रेंज के जंगलों की आग अब गुड़ी के बोरखेड़ा, सरमेसर व ताल्याधड़ व सुंदरदेव में भभक रही है। बुझाने वाले आदिवासी लोग ही अपनी ओर से मशक्कत कर रहे हैं। सिंगाजी व पूर्व कालीभीत के रोशनी,आवल्या, कालीघोड़ी के पास भी आग अब शांत दिख रही है। सातटेकरी आड़ाखेड़ा में धुंआ निकल रहा है। कई पेड़ व जंगल की वनस्पति खाक हो गई।
जंगल की आग से खरगोश, नीलगाय, बारहसिंगा, हिरण, भेड़िये, रीछ, चीतल, लंगूर बंदर, जंगली मुर्गे, सांप डेंडू व दुर्लभ पक्षियों ने भी बसेरा छोड़ दिया है। इक्का दुक्का स्थानों पर तेंदूए भी देखे जाते हैं। ये ताप्ती के आसपास शरण लेकर भाग गए हैं। अफसर दौरा करें तो जंगलों में हजारों हेक्टेयर में आग के निशान उन्हें मिल जाएंगे।
इस जमाने में भी आग बुझाने के तरीके पुराने ही हैं। आग बुझाने के लिये कोई तरीके नहीं बताए गए हैं। अंग्रेजों के जमाने में जिस तरह ब्रिटिश सरकार झाड़ियों को काटकर गुलाम कहे जाने वाले देशवासियों को थमा दी जाती थीं। बस यही तरीका आजादी के 70 साल बाद भी चल रहा है। झाड़ियों से आग बुझाने के प्रयास पूरे मध्यप्रदेश में हो रहे हैं। यही तरीके सुंदरदेव, धामा समेत सभी रेंज में इस्तेमाल किये जा रहे हैं।
वनकर्मी तो गांव के आदिवासियों को झाड़ियाँ पकड़ा देते हैं। इनके पास न किसी तरह के बचाव के साधन हैं, न ही ग्लोब्स। यहाँ तक कि इन आदिवासियों के पांवों में जूते-चप्पलें तक नहीं होती। हरसूद के विधायक विजय शाह को चप्पे चप्पे की खबरें हैं। वे वन मंत्री रहे, तब भी आग से निपटने के लिये किसी तरह की रणनीति क्यों नहीं बनी? अब भी जंगलों में आग लगी हुई है। ताल्याधड़ में तो हालात खराब हैं। यहाँ ठूंठ छुपा लिये गए। काफी कटाई से एरिया बदनाम था। काफी लकड़ी जो कटकर विभाग ने ही पटकी थी। वह भी जलकर खाक हो गई। अफसर तो केवल ठूंठ देखकर कार्रवाई करते हैं। अब उनका नामोनिशान मिटा दिया गया है। सिंगाजी रेंज के दगड़कोट के पास काफी संख्या में कटाई हुई। यहाँ भी आग अचानक कैसे लग गई? जो कार्रवार्ई पहले हो चुकी है। वह काफी कम संख्या में है। जामधड़ के पास तालाब दगड़कोट के सामने कटाई छुपाने के लिये आग ने विकराल रूप ले लिया है। यहाँ कुछ स्थिति में नियंत्रण नजर आ रहा है।
बड़े अफसर हुए सचेत
जंगलों में आग की चार दिन पहले खबर थी। स्थानीय अफसरों ने आग पर काबू पाने की सूचना दी थी। अब भी खालवा, गुड़ी का जंगल भभक रहा है,तो टीमें भेज रहे हैं। जांच करवाएंगे कि कितना नुकसान हुआ है। बड़ी साजिश जांच में सामने आएगी तो अफसर हों या कर्मी दंडित किया जाएगा।
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