आमला (बैतूल), सिकलसेल एनिमिया से पीडि़त 14 साल का देवेश विजयकर अंतत: जिंदगी की जंग हार गया। उसका हर दिन तकलीफों से भरा रहा। आमला अस्पताल ले जाते समय उसने रास्ते में दम तोड़ दिया। हर दस से पन्द्रह रोज में उसे खून की जरूरत पड़ती थी।
वह जिंदगी की जंग हारकर भी दिलों को जीत कर गया है। रक्तदाता मायूस है,कि अब कभी देवेश का फोन नहीं आएगा। उसकी मौत रक्तदाताओं को एक बार फिर झकझोर कर गया है और उन्होंने जिले में चिन्हित अन्य सिकलसेल एनिमिया बीमारी से पीडि़त बच्चों के संघर्ष का साथी बनने का संकल्प ले लिया है। जिला चिकित्सालय में सिकलसेल एनिमिया से पीडि़त मरीजों की संख्या 220 है। इनमें ज्यादातर आदिवासी अंचल के बच्चे शामिल है। सिकलसेल एनिमिया से पीडि़त बच्चे की उम्र 14 से 15 वर्ष तक की ही होती है और इस दौरान भी उन्हें कई बार रक्त की जरूरत पड़ती है। बैतूल जिले में लगने वाले रक्तदान शिविरों के माध्यम से ऐसे मरीजों की मदद हो जाती है। अस्पताल में रक्तदान की गाइडलाईन के अनुसार ही इन बच्चों को रक्त उपलब्ध कराने के निर्देश है।