नई दिल्ली, समाजवादी पार्टी में टिकट बंटवारे में अनदेखी किए जाने से न सिर्फ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बल्कि कांग्रेस की उम्मीदों को भी जोरदार झटका लगा है. दरअसल, समाजवादी कुनबे में चल रही इस तनातनी के बीच कांग्रेस की उम्मीदें इस बात पर टिकी हैं कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने पिता के खिलाफ बगावत करते हुए अपनी नई पार्टी बनाकर कांग्रेस से गठबंधन करते हैं या नहीं. बुधवार को कांग्रेस दिनभर ऐसे किसी घटनाक्रम का बेसब्री से इंतजार करती रही. गुरुवार को भी पार्टी की नजर अखिलेश के अगले कदम पर रहेगी.
पूरे तामझाम के साथ यूपी चुनाव लडऩे का इरादा लेकर उतरी कांग्रेस को जमीनी हालात के मद्देनजर बीते दिनों अपनी रणनीति में बदलाव करने को मजबूर होना पड़ा. कांग्रेस इस वक्त समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने के लिए लालायित है, बशर्ते समाजवादी पार्टी उसके लिए 403 में से 80-100 सीटें छोडऩे को राजी हो जाए.
कांग्रेस को उम्मीद है कि समाजवादी पार्टी से गठबंधन के जरिए वह पांच साल पहले का प्रदर्शन दोहरा सकती है. पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि अगर उसका गठबंधन सेक्युलर समाजवादी पार्टी से होता है, तो वह अपने मिशन यूपी से समझौता करने को यह कह कर जस्टिफाई कर सकती है कि उसे सेक्युलरिज्म कायम रखने के बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह त्याग करना पड़ा.
अखिलेश के उन बयानों से कांग्रेस की उम्मीदों को बल मिल था, जिसमें उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस से गठबंधन की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन एसपी मुखिया मुलायम सिंह यादव ने गठबंधन की अटकलों को पूरी तरह खारिज कर के कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
कांग्रेस सूत्रों ने स्वीकार किया है कि मुलायम के ऐलान से पार्टी को झटका लगा है, पर कांग्रेस को लगता है कि अगर अखिलेश समाजवादी पार्टी छोडक़र अपनी अलग पार्टी बनाते हैं, तो कांग्रेस की उम्मीदें फिर जिंदा हो जाएंगी. एक कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा, उनकी छवि अच्छी है, साथ ही वह सेक्युलर भी हैं. उन्होंने यह भी कहा कि यूपी के सीएम प्रियंका गांधी समेत कई कांग्रेस नेता के संपर्क में हैं.
कांग्रेस इस बात को लेकर बेपरवाह बनी हुई है कि अखिलेश के लिए नई पार्टी लॉन्च करने का वक्त शायद निकल चुका है, अब काफी देर हो गई है. कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा, राजनीति में देर कभी भी नहीं होती. उन्होंने जोर देकर कहा कि अगला सप्ताह कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों के लिए बहुत अहम होगा.