‘कई सारे किसिंग सीन्स होने के बावजूद बेफिक्रे एक फैमिली फिल्म है’

befikre84क्या आपको नहीं लगता कि इमरान खान की पिछली कुछ फिल्में असल में उन्हें तुषार कपूर की लीग में शामिल करने का षड़यंत्र थीं! उनकी आखिरी दर्शनीय फिल्म चार साल पहले आई एक मैं और एक तू थी जिसके अलावा पिछले चार साल में आईं चार ही  फिल्में उनके करियर को रसातल के करीब ही ले जाने के काम आई हैं. इसीलिए सुना है कि अब इमरान खान चेत गए हैं और फूंक-फूंककर अगली फिल्मों का चुनाव कर रहे हैं. लेकिन दिक्कत यह है कि खौफ में होने की वजह से सही फिल्मों का भी चुनाव नहीं कर पा रहे. उनके अनुराग कश्यप के साथ एक फिल्म में काम करने के चर्चे थे जिसे कश्यप प्रोड्यूस करने वाले थे और फिल्म के लीक से हटकर होने की अफवाह भी आम थी. लेकिन शूटिंग शुरू होने से कुछ दिन पहले ही इमरान ने फिल्म छोड़ दी और तकरीबन एक साल में न तो कोई नई फिल्म साइन की और न ही किसी नई फिल्म की शूटिंग आरंभ की.

क्यों? क्योंकि अब वे निर्देशक बनने के बारे में गंभीरता से विचार कर रहे हैं. लेकिन अपने नाना नासिर हुसैन और मामू मंसूर खान की तरह वे फिल्में सिर्फ निर्देशित नहीं करेंगे, बल्कि मामूजान आमिर खान की तरह उनमें अभिनय भी करेंगे. इसके लिए उन्होंने चार लेखकों की एक टीम के साथ काम करना प्रारंभ कर दिया है और आमिर की ही तरह वे भरपूर रिसर्च करके तैयार हुई पटकथा का ही निर्देशन करने का मन बना चुके हैं. साथ ही अपने करियर की जिम्मेदारी सलमान खान की मशहूर बिजनेस मैनेजर रेशमा शेट्टी के हवाले कर चुके हैं ताकि अपने फिल्मी करियर को नयी दिशा में ले जाते वक्त जब वे भटकें, तो शेट्टी उसी तरह उनका हाथ पकड़कर वापस पथ पर ले आएं, जैसे एक वक्त वे सलमान खान को लाई थीं.

जब वी मेट, फिर से!

भूतपूर्व प्रेमियों का पब्लिक में मिलना गजब ढा जाता है. भूतपूर्व प्रेमियों की भूतपूर्व प्रेमिकाओं का भी आपस में मिलना यही करता है. दोनों ही बातें वन्स अगेन हैंस प्रूव्ड हो गईं जब शाहिद कपूर व करीना कपूर पब्लिकली मिले. और दीपिका पादुकोण व कैटरीना कैफ भी!

उड़ता पंजाब के वक्त भी फिल्म से ज्यादा जिनके साथ मंच शेयर करने पर खलबली मची थी (शुरुआत में, क्योंकि बाद में तो फिल्म विवादों के नए आकाश में उड़ी थी!) वे शाहिद व करीना कपूर ही थे. इस बार भी वे जब फिर से मिले, लक्स गोल्डन रोज नामक अवॉर्ड फंक्शन में, तो खुश होकर एक-दूसरे से मिले. किसी तरह की अचकचाहट दोनों में नहीं दिखी और कुछ अरसा पहले ही पिता बने शाहिद और गर्भवती करीना ने बच्चों के पालन-पोषण पर टिप्स भी एक-दूसरे से साझा किए.

वहीं दूसरी तरफ उसी अवॉर्ड फंक्शन में रणबीर कपूर की दो भूतपूर्व प्रेमिकाओं यानी दीपिका पादुकोण व कैटरीना कैफ ने आजू-बाजू की सीट भी साथ साझा करने से इंकार कर दिया. देखने वालों ने पाया कि रणबीर के बहाने एक-दूसरे के प्रति तल्ख रहने वालीं ये दोनों ही हीरोइनें एक-दूसरे का सामना करने से बचती रहीं. जब फंक्शन शुरू होने से पहले उन्होंने देखा कि दोनों को फ्रंट रो में सिर्फ एक कुर्सी छोड़कर एक-दूसरे के समीप बैठाया गया है, तो पता है उन्होंने क्या किया? दोनों ही हीरोइनों ने प्रथम पंक्ति की आखिरी सीट अपने लिए चुन लीं, विपरीत दिशाओं वालीं. लगता है इस केस में भूतपूर्व प्यार का भूत कभी मरेगा नहीं!


‘कई सारे किसिंग सीन्स होने के बावजूद ‘बेफिक्रे’ एक फैमिली फिल्म है, क्योंकि जिस गर्मजोशी के साथ लोग गले मिलते हैं वही शालीनता इसके चुंबनों में है. यह बात सेंसर बोर्ड तक ने समझी है इसीलिए हमारी फिल्म को यू/ए सर्टिफिकेट दिया है.’

— रणवीर सिंह


फ्लैशबैक – अमोल पालेकर के उस रिकॉर्ड की कहानी जो आज भी जस का तस है

अमोल पालेकर को कौन नहीं जानता! वे एक जमाने में हिंदी आर्ट फिल्मों के सबसे मशहूर कमर्शियल नायक हुआ करते थे. आम पब्लिक के सबसे करीब के अभिनेता जो बासु चटर्जी की फिल्म पिया का घर से डेब्यू करने वाले थे. लेकिन चूंकि फिल्म के निर्माता राज कुमार बड़जात्या को उनका चेहरा पसंद नहीं आया इसलिए हीरो जैसे नहीं दिखने वाले अमोल को कुछ और साल संघर्ष करते हुए बिताने पड़े. दो साल बाद बासु चटर्जी ने ही उनके साथ रजनीगंधा बनाई और फिल्म इस कदर हिट रही कि हीरो-निर्देशक की इस जोड़ी ने दो और फिल्में, छोटी सी बात और चितचोर, बैक टू बैक बनाईं.

अमोल पालेकर और उनकी इन तीन शुरुआती फिल्मों को लेकर एक दिलचस्प रिकॉर्ड भी बना जो आज भी चकित कर देता है. एक तरफ तो अमोल पालेकर अपने गैरपारंपरिक लुक की वजह से निर्माता-निर्देशकों द्वारा नकारे जा रहे थे तो दूसरी तरफ उनकी ये तीनों फिल्में बॉक्स-आफिस पर सिल्वर जुबली मना रहीं थीं! यह उस दौर की बात है जब फिल्मों के हिट-सुपरहिट होने का मूल्यांकन उनके सिल्वर, गोल्डन या डायमंड जुबली मनाने से किया जाता था. अगर कोई फिल्म 25 हफ्तों तक सिनेमाघरों में लगातार चलती तो वो सिल्वर जुबली हिट, 50 हफ्तों में गोल्डन, 75 में डायमंड और 100 से ज्यादा हफ्ते पार कर जाए तो प्लेटिनम जुबली कहलाती थी.

उस दौर में एक नए नवेल अभिनेता अमोल पालेकर की शुरुआती तीनों फिल्मों – रजनीगंधा (1974), छोटी सी बात (1975) और चितचोर (1976) – ने न सिर्फ सिल्वर जुबली मनाई, बल्कि सिनेमा के इतिहास में इसलिए भी हमेशा के लिए दर्ज हो गईं क्योंकि सिल्वर जुबली मनाने वाली पहली हैटट्रिक फिल्में थीं. इससे पहले कभी भी किसी एक हीरो की लेकर बनी तीन फिल्में बैक टू बैक सिल्वर जुबली नहीं कहलाई थीं, और सनद रहे कि यह उस दौर की बात है जब अमिताभ बच्चन सिनेमा के परदे की हिट मशीन हुआ करते थे.

यह भी याद रखने वाली बात है कि उस दौर में कई फिल्म डिस्ट्रिब्यूटर अमोल पालेकर की आलोचना यह कहकर किया करते थे,‘वे सीमित क्षमताओं वाले ऐसे अभिनेता हैं जिसकी सीमा मुंबई स्थित विरार पर जाकर खत्म हो जाती है’.

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