पेरेंटिंग गाइड

पेरेंटिंग गाइड-1

बच्चों की मालिश के लिए ये तेल रहते हैं बेहतर
सर्दियों का मौसम आ रहा है। ऐसे में बच्चों को नहलाने से पहले उनकी तेल से मालिश करना सेहत के लिए अच्छा रहता है। इससे बच्चे की हड्डियां मज़बूत व त्वचा सुंदर बनती है। यही कारण है कि अधिकांश परिवारों में मालिश के लिये तेल को क्रीम व लोशन से अधिक पसंद व इस्तेमाल किया जाता है।
बादाम का तेल
बादाम तेल में विटामिन ई में किसी और तेल की तुलना में अधिक होता है। सर्दियों में बादाम के पौष्टिक तेल से शिशु की मालिश करने से न सिर्फ उसकी हड्डियां मज़बूत होती हैं, बल्कि उसकी त्वचा भी कोमल और कांतिमय बनती है।
जैतून तेल
जैतून का तेल अर्थात ऑलिव ऑयल एक आम तेल है, जिसे बच्चों के लिये दुनिया भर में प्रयोग किया जाता है। इसे विशेष रूप से बच्चों की मालिश करने के लिए पैक किया जाता है, मुख्य रूप से पश्चिमी देशों में। माना जाता है कि जैतून के तेल से बाल बढ़ते हैं। यदि बच्‍चे के सिर पर कम बाल हों तो इस तेल से उसके सिर की मालिश कर आधे घंटे बाद उसे नहलाएं।
नारियल तेल
दक्षिण भारत में व्यापक रूप से में इस्तेमाल किया जाने वाला नारियल का तेल शिशु की मालिश के लिए सबसे आदर्श तेल माना जाता है। इसमें मौजूद जीवाणुरोधी और एंटीसेप्टिक गुण त्वचा संक्रमण रोकने में मदद करते हैं और इसका आपके बच्चे की संवेदनशील त्वचा पर कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। इस तेल से बच्‍चे और बडों दोनो की मालिश की जा सकती है। कुनकुने नारियल तेल से शरीर की मालिश करने पर त्‍वचा, बाल और हड्डियों को बहुत लाभ होता है।
सरसों का तेल
सरसों का तेल लंबे समय से माताओं द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है। इस तेल को भारत के अधिकांश भागों में पारंपरिक मूल्यों से भी जोड़ कर देखा जाता है। इस तेल को सर्दियों में विशेष रूप से सबसे अच्छा माना जाता है। यह खाद्य तेल बालों के लिए अच्छा है, साथ ही इसकी मालिश आपके बच्चे की त्वचा के संक्रमण से बचाने में मदद करता है। सरसों का तेल शरीर को गर्म, हड्डियों को मजबूती और सर्दी जुखाम से राहत दिलाता है।

बच्चों के टिफिन बॉक्स खरीदते समय रखें ध्यान
स्कूल जाते समय माता-पिता बच्चों को भरपूर पोषण के लिए अलग-अलग प्रकार का खाना उसके लिए रखते हैं पर इस दौरान पैकिंग पर ध्यान नहीं देते। अगर आप भी स्कूल के लिए अपने बच्चों को प्लास्टिक के टिफिन बॉक्स और सिल्वर फॉइल में रखकर खाना देते हैं तो सावधान हो जाएं ये हानिकारक हो सकता है। आमतौर पर बच्चों की जिद पर लोग फैंसी टिफिन देखकर बच्चे के लिए प्लास्टिक का लंच बॉक्स खरीद तो लेते हैं पर इसमें रखा हुआ खाना शरीर के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। प्लास्टिक की चीजों में मिले कैमिकल जब बच्चे के शरीर में पहुंचते हैं तो इससे प्रतिरोधक क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है। इसलिए प्लास्टिक की जगह स्टील के टिफिन बॉक्स इस्तेमाल करें।
खाने में मिल जाते हैं रसायन
प्लास्टिक के बॉक्स में जब गर्म खाना रखा जाता है तो इसके रसायन भी खाने में मिल जाते हैं। यह धीमे-धीमे हमारे शरीर को बहुत नुक्सान पहुंचते हैं। जिससे कैंसर जैसी भयानक बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।
क्या होते हैं ये रसायन
टिफिन अलग-अलग रसायन का मिश्रण से बने होते हैं। जो खतरनाक रसायन हमारे खाने में मिल जाता है वह है ‘एंडोक्रिन डिस्ट्रक्टिंग’। यह केमिकल प्लास्टिक में गरम खाना पैक के बाद बनने शुरू होते हैं जबकि पहले इसमें मौजूद नहीं होते।
फंगस का रहता है खतरा
प्लास्टिक के लंच बॉक्स देखने में जितने खूबसूरत लगते हैं, साफ करने में उतने ही ज्यादा मुश्किल होते हैं। हम लोग इसे ऊपर से तो साफ कर सकते हैं लेकिन कई बार इसके छोटे-छोटे कोनों में खाना चला जाता है। जिससे फंगस जमा होने लगती है, इस तरह इसमें दोबारा खाना पैक करने से कीटाणु खाने से चिपक जाते हैं। बच्चे की सेहत के लिए यह बहुत नुकसानदेह है।
सेहत पर पड़ता है खराब प्रभाव
इससे बच्चे की सेहत बुरा प्रभाव पड़ता है। धीरे-धीरे स्वास्थ्य पर इसका असर दिखाई देने लगता है।
इससे बच्चे की भूख में कमी आनी शुरू हो जाती है। खाना खाने का मन नहीं करता।
टिफिन में पैक स्वादिष्ट खाने का स्वाद भी खराब होना शुरू हो जाता है।
इससे कैंसर जैसे रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
बच्चे मोटापे के जल्दी शिकार हो सकते हैं। आजकल बच्चों में भी डायबिटीज रोग बहुत देखने के मिल रहा है। इसका एक कारण प्लास्टिक के बर्तनों का ज्यादा इस्तेमाल करना भी है।

किशोर उम्र के बच्चों को इस प्रकार दें सही दिशा
बच्चों के किशोरावस्था में पहुंचने के समय अभिभावकों की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है क्योंकि यही वह समय है जब वह सही राह पर चले तो भविष्य सुखमय होता है जबकि अगर उनके कदम भटके तो पछताने के सिवा कुछ हाथ नहीं आता।
ऐसे में अभिभावकों का फर्ज है कि वह बच्चों का मार्गदर्शन करते रहे और अपने अनुभवों को उनसे साझा करें। इसके लिए अभिभावकों का उनका दोस्त बनकर पेश आना होगा तभी बच्चे अपने मन की बात और परेशानियां उनसे साझा कर पायेंगे। आजकल मोबाइल और इंटरनेट के जरिये किशोर बच्चों को हर प्रकार की जानकारी मिल जाती है। इस कारण वह मोबाइल में व्यस्त रहते हैं और उन्हें किसी प्रकार की भी रोक-टोक अच्छी नहीं लगती। वहीं अगर आप कुछ बातों का ध्यान रखें तो उनके साथ दोस्त के तौर पर रह सकते हैं। इस दौरान वह आपसे अपनी परेशानियां भी बताएंगे।
घर में रखें अच्छा माहौल
दोस्ती बनाए रखने के लिए उनके सामने खुद पारदर्शी बने रहें। अगर कोई गलती हो जाए तो बच्चों से इसके लिए माफी मांगने में भी कोई बुराई नहीं है। घर में अच्छा वातावरण बना रहेगा तो बच्चे आपके करीब आ जाएंगे।
आजादी भी दें
हर बात के लिए बच्चें पर नियम लागू करना भी ठीक नहीं है। बच्चा कुछ भी करें उससे वकीलों की तरह हर बार सवाल न करें। ऐसा करने से किशोर उम्र के बच्चे दबाव महसूस करते हैं। बच्चे को थोड़ा स्पेस भी दें। अगर उनकी किसी बात को लेकर आपको चिंता महसूस होती है तो उनसे बात करें।
समय दें
अगर आप यह सोच रहे हैं कि चिंता सिर्फ बड़ो को ही होती है तो आप गलत भी हो सकते हैं। बच्चे भी बहुत बातों को लेकर परेशान हो जाते हैं। आप उनकी उपेक्षा करेंगे तो वह अकेले पड़ जाएंगे। आपसे दूरी बना लेंगे। किशोर उम्र के पड़ाव में बच्चो को आपकी ज्यादा जरूरत होती है, इसलिए उन्हें समय देना बहुत जरूरी है। कभी-कभी उनके साथ ट्रिप का प्लान भी करें। कुकिंग, गार्डनिंग, पिकनिक, आउटिंग आदि के जरिए आप उनके करीब आ सकते हैं।
विश्वास जगाएं
मां-बाप होने के नाते बचपन से ही बच्चे के मन में इस बात का विश्वास जगाएं कि आप उनके सबसे बड़े राजदार हैं। जो बात बच्चा आपसे कर रहा हैं, उसके अपने तक बना कर रखें पर बच्चे को सही रास्ता भी दिखाएं। जिससे वह अपना डर आपसे आसानी से साझा कर लेगा और आप भी उसके राज जान पाएंगे।

सोते समय दांत पीसता है बच्चा तो ध्यान दें
अगर आपका बच्चा सोते समय दांत पीसता है तो इसे अनदेखा न करें और कारण जानने का प्रयास करें। कुछ बच्चे सोते समय अपने दांत पीसते हैं। बच्चों की इस परेशानी को ब्रुक्सिज्म कहा जाता है। वैसे तो यह सामान्य समस्या है लेकिन इसके पीछे का कारण जानना बहुत जरूरी है ताकि बाद में कोई शारीरिक कमजोरी न आए। इससे दांत किटकिटाने की आदत दूर करने में आसानी रहेगी।
क्या है कारण
ब्रुक्सिज्म की समस्या रात को सोने के दौरान होती है, जब व्यक्ति अवचेतन में होता है। कुछ लोग इसे पेट के कीडे या फिर पाचन संबंधी गड़बड़ी से जोड़ते हैं लेकिन शोध में पाया गया कि इस समस्या का कारण बच्चे का पाचन नहीं बल्कि तनाव है।
तनाव हो सकता है कारण
एक अध्ययन के मुताबिक 2 साल से 5 साल तक के तकरीबन आधे बच्चों में दांत पीसने की समस्या होती है। इसका मुख्य कारण तनाव हो सकता है। बच्चों के मन में किसी बात का डर या फिर कोई बोझ उसकी मानसिकता पर प्रभाव डाल सकता है।
कमजोर होते हैं दांत
आम लगने वाले यह समस्या बच्चे के दांतों पर बुरा प्रभाव डालती है। इससे दांत कमजोर होने के साथ इन पर मौजूद इनेमल की परत नष्ट हो जाती है। जिससे
सेंसिटिविटी होने लगती है और दांत जल्दी संक्रमण का शिकार हो जाते हैं।
हो सकती हैं ये समस्याएं
दांतों में दर्द
सेंसिटिविटी की समस्या
दांतों का शेप बिगड़ना
कमजोर दांत
नसों में तनाव की वजह से मुंह, जबड़ों और सिर में दर्द
कैसे करें दूर
बच्चे में यह समस्या कभी-कभार हो तो इसका कारण तनाव है। यह जानने की कोशिश करें कि आखिर उसे किस बात का डर या चिंता है। आपके प्यार से यह परेशानी दूर होने में बहुत मदद मिलेगी। अगर वह हमेशा दांत पीस रहा है तो डॉक्टर को दिखायें।

बच्चों को इस प्रकार सिखाएं काम-काज
घर में छोटे बच्चे हो तो घर व्यवस्थित रहेगा, इसकी कल्पना करना भी बेकार है क्योंकि बच्चे घर के सामान को खेल-खेल में बिखेर देते हैं। ऐसे में जरूरी है कि सप्ताह के अंत में बच्चों से ही घर को व्यवस्थित करा लिया जाए, जिससे वे घर का रख-रखाव भी सीख जाएंगे और घर को व्यवस्थित रखने में आपकी मदद भी कर देंगे।
बच्चों को जिम्मेदारी दें
कोई भी बच्चा एक दिन में पूरे घर की सफाई करना नहीं सीख सकता। बच्चों को छोटी-छोटी चीजें व्यवस्थित करना सिखाएं। इसके लिए उन्हें घर के किसी एक कोने को व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी दे सकती हैं। आप उन्हें उनके वॉर्डरोब के सामान को व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी दें परन्तु उन्हें यह जरूर बताएं कि पहले सारे कपड़े वॉर्डरोब से बाहर निकालें और फिर उन्हें दोबारा तह कर के वॉर्डरोब में लगाएं। उसके बाद कपड़े वॉर्डरोब में इस तरह रखें कि उन्हें इस्तेमाल करने के लिए निकालना आसान रहेगा।
उनकी काम में मदद करें
यदि आपको लगे कि बच्चा अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहा है तो बीच-बीच में उसकी मदद करें तथा काम को सही ढंग से करने का तरीका बताएं। उसे बचाएं कि शर्ट कैसे तह की जाती, मोजों को हमेशा जोड़ा बनाकर रखते हैं ताकि वे खोएं नहीं। यहीं नहीं कपड़े सेल्फ में कैसे रखे जाते हैं यह भी उन्हें करके बताएं। यदि आप उन्हें बुक शैल्फ अरेंज करने का काम दे रही है तो उन्हें बताएं कि बुक सेल्फ में सबसे पहले बड़ी किताबें सैट की जाती हैं, फिर उससे छोटी और सबसे आगे छोटे आकार की किताबें रखी जाती हैं।
म्यूजिक लगाएं
बच्चा काम को एन्जॉय करते हुए सीख पाए, इसलिए उसकी पसंद का म्यूजिक लगा दें। बीच-बीच में छोटा-सा ब्रेक लेकर उसके साथ डांस करें। म्यूजिक के साथ काम करने में उसे मजा भी आएगा और आसानी से काम भी सीख जाएगा।
खेल और ईनाम
नया काम सीखते समय बच्चा बोर न हो, इसलिए उसे खेल-खेल में काम सिखाने की कोशिश करें। आप पांच मिनट का अलार्म लगा दें और कहें कि यदि वह पांच मिनट में सामान अल्मारी में रख देगा तो उसे ईनाम मिलेगा। यदि बच्चा समय पर अपना टास्क पूरा कर ले तो उसके प्रयास की तारीफ करें और अपना वादा भी निभाएं।
सबके सामने तारीफ करें
जब बच्चा अपना काम पूरा कर ले तो उसकी मनपसंद चीज उसे दें या उसकी पसंदीदा डिश बना कर उसे खिलाएं। यही नहीं परिवार के अन्य सदस्यों के सामने भी उसकी तारीफ करें। इससे उसे न केवल अपना काम पूरा करने की खुशी मिलेगी, बल्कि आपका प्यार और आपका साथ उसमें नई ऊर्जा का संचार करेगा।

बच्चों के पालन पोषण में रखें ये सावधानियां
बच्चे के जन्म के साथ ही माता-पिता खुशी मनाने के साथ ही उससे कई उम्मीदें लगाने लगते हैं। अब सवाल यह उठता है कि बच्चे के विकास के लिए किस प्रकार उसका पालन पोषण किया जाये। इसमें सबसे अहम यह है कि उसे प्राकृतिक तरीके से रहने दें। बच्चों के विकास के लिए घर में बेहतर माहौल बनाना जरुरी है। सकारात्मक माहौल और खुशी का अनुभव उसे आगे बढ़ने की ताकत देता है।
बच्चों के पालन-पोषण में एक बड़ी भूमिका निभाता है। आपको सही तरह का माहौल तैयार करना चाहिए, जहां खुशी, प्यार, परवाह और अनुशासन की एक भावना आपके अंदर भी और आपके घर में भी हो। आप अपने बच्चे के लिए सिर्फ इतना कर सकते हैं कि उसे प्यार और सहारा दे सकते हैं। उसके लिए ऐसा प्यार भरा माहौल बनाएं जहां बुद्धि का विकास स्वाभाविक तौर पर हो। एक बच्चा जीवन को बुनियादी रूप में देखता है। इसलिए आप उसके साथ बैठकर जीवन को बिल्कुल नयेपन के साथ देखें, जिस तरह वह देखता है।
बहुत से लोग यह मान लेते हैं कि जैसे ही बच्चा पैदा होता है, शिक्षक बनने का समय शुरू हो जाता है। जब एक बच्चा आपके घर में आता है, तो यह शिक्षक बनने का नहीं, सीखने का समय होता है।जरूरी नहीं है कि आपका बच्चा जीवन में वही करे, जो आपने किया। आपके बच्चे को कुछ ऐसा करना चाहिए, जिसके बारे में सोचने की भी आपकी हिम्मत नहीं हुई। तभी यह दुनिया आगे बढ़ेगी और उपयोगी चीज़ें घटित होंगी।
मानव जाति की एक बुनियादी जिम्मेदारी है, कि वे ऐसा माहौल बनाए जिससे इंसानों की अगली पीढ़ी आपसे और हमसे कम से कम एक कदम आगे हो। यह बहुत ही अहम है कि अगली पीढ़ी थोड़ी और खुशी से, कम डर, कम पक्षपात, कम उलझन, कम नफरत और कम कष्ट के साथ जीवन जिए। हमें इसी लक्ष्य को लेकर चलना चाहिए। अगली पीढ़ी के लिए आपका योगदान यह होना चाहिए कि आप इस दुनिया में कोई बिगड़ैल बच्चा न छोड़ कर जाएं, आप एक ऐसा इंसान छोड़ कर जाएं जो आपसे कम से कम थोड़ा बेहतर हो।
अपने बच्चे की जरूरतों को जानें
कुछ माता-पिता अपने बच्चों को खूब मजबूत बनाने की इच्छा या चाह के चलते उन्हें बहुत ज्यादा कष्ट में डाल देते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे वह बनें जो वे खुद नहीं बन पाए। अपने बच्चों के जरिये अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने की कोशिश में कुछ माता-पिता अपने बच्चों के प्रति बहुत सख्त हो जाते हैं। वहीं दूसरे माता-पिता मानते हैं कि वे अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं और अपने बच्चों को इतना सिर चढ़ा लेते हैं कि उन्हें इस दुनिया में लाचार और बेकार बना देते हैं। यह दोनों ही तरीके सही नहीं हैं।
इसका कारण यह है कि सभी बच्चों पर एक ही नियम लागू नहीं होता। हर बच्चा अलग होता है। अलग-अलग बच्चों को ध्यान, प्यार और सख्ती के अलग-अलग पैमानों की जरूरत पड़ सकती है।
एक बच्चा अपने अनुभवों से जीवन के बारे में ज्यादा जानता है। वह जीवन है, वह जीवन को जानता है।
उसे अपने तरीके से रहने दें
अगर माता-पिता अपने बच्चों की वाकई परवाह करते हैं, तो उन्हें अपने बच्चों को इस तरह पालना चाहिए कि बच्चे को माता-पिता की कभी जरूरत न हो। प्यार की प्रक्रिया हमेशा आजाद करने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए, उलझाने वाली नहीं। इसलिए जब बच्चा पैदा होता है, तो बच्चे को चारों ओर देखने-परखने, प्रकृति के साथ और खुद अपने साथ समय बिताने दें। प्यार और सहयोग का माहौल बनाएं।
जीवन की ओर देखने में उसकी मदद करें, परिवार या आपकी धन-दौलत या किसी और चीज से उसकी पहचान न बनने दें। एक इंसान के रूप में जीवन की ओर देखने में उसकी मदद करना उसकी खुशहाली और दुनिया की खुशहाली के लिए बहुत जरूरी है। यह आपके बच्चे के लिए सबसे अच्छा निवेश होगा अगर आप अपने बच्चे को प्रोत्साहित करें कि वह अपने बारे में सोचना सीखे, उसके लिए क्या बेहतर है यह जानने के लिए अपनी बुद्धि और समझ का इस्तेमाल करना सीखे। अगर आप ऐसा करते हैं तो आप निश्चिंत रह सकते हैं कि आपका बच्चा सही तरीके से विकसित होगा।

बच्चों को यातायात के नियम भी बताएं
स्कूल और घर में ज्यादा दूरी ना होने के कारण बच्चे अकेले ही वहां चले जाते हैं। ऐसे में हमें उन्हें यातायात के सुरक्षा नियमों की जानकारी देनी चाहिये ताकि बच्चे सुरक्षित रूप से स्कूल आ जा सकें। ध्यान रखें कि आपके बच्चे एक ही रूट से प्रतिदन आएं-जाएं और वह रास्ता सुरक्षा की दृष्टि से भी सही होना चाहिए। उन्हें ऐसे रास्ते से भेजें जिसमें सड़क पर कम-से-कम क्रासिंग हो ताकि उन्हें बार-बार सड़क पार ना करनी पड़ी।
किसी भी तरह का गैजेट जैसे मोबाइल, वीडियो गेम, टैबलेट एवं आई पैड इत्यादि उन्हें देंने से बचें ताकि बच्चे सड़क पर फोन पर बात करते हुए, गाने सुनते हुए या गेम खेलते हुए किसी दुर्घटना का शिकार ना हों।
अपने बच्चों को सुरक्षा नियमों का पालन करने को कहें। चाहे वे पैदल जाते हों या वैन एवं बस में उन्हें पता होना चाहिए कि वैन में कैसे बैठना है। यदि आगे की सीट पर बैठ हैं तो बैल्ट लगा कर बैठें। सड़क पार कर रहे हैं सिग्नल देख कर करें। अपने बच्चों को लाल, हरी और पीली बत्ती का फर्क समझाएं।
दस साल से कम उम्र के बच्चों के साथ किसी बड़े का होना जरूरी है। उन्हें कभी भी सड़क पर अकेले ना छोड़ें। जब तक कि उनमें सड़क नियमों को समझने की परिपक्वता ना आ जाएं।
अपने बच्चों को अजनबियों से सावधान रहने को कहें। उन्हें समझाएं किसी भी अजनबी से कोई भी उपहार, टॉफी या खाने की चीज ना लें और ना ही उनके साथ कहीं जाएं।
बच्चों को समझाएं कि सड़क के किनारे से सिग्नल को देखकर और जेब्रा क्रासिंग पर ही सड़क पार करें।
बच्चों को बताएं कि बस से उतरने के बाद हमेशा उसके सामने से ही जाएं ताकि ड्राइवर उन्हें जाते हुए देख सके।
कभी भी सड़क पर मस्ती-मजाक करते हुए दौड़ ना लगाएं। कार पार्किंग के बीच में ना भागें।
बच्चों को अपने मोबाइल और घर के नंबर, घर का पता, स्कूल का पता याद करवा दें ताकि जरूरत पड़ने पर या किसी मुसीबत में वे आपसे संपर्क कर सकें।
यदि आपके बड़े बच्चे बाइक, स्कूटर या स्केट बोर्ड से स्कूल जाते हैं तो उन्हें हैलमेट पहनने को जरूर कहें। उनकी सुरक्षा करने के लिए ध्यान दें कि वे इसका पालन कर रहे हैं या नहीं।

क्या आपका बच्चा भी है गुस्सैल
बच्चे का मन बहुत कोमल होता है। शुरू से ही बच्चों में आसपास का माहौल उसके स्वभाव में देखने को मिलता है। कुछ बच्चे बहुत जिद्दी होते हैं। बात-बात पर गुस्सा करना, चिड़चिड़ापन, बात को सुनने में आनाकनी करना आदि से कई बार उनके मां-बाप भी परेशान हो जाते हैं कई बार इसके पीछे की वजह खुद मां-बाप का व्यवहार भी है। जिसका असर बच्चे के कोमल मन पर भी पड़ता है। हो सकता है कि आप जाने-अनजाने अपने बच्चे के सामने कुछ ऐसी गलतियां कर रहे हैं, जिसका असर भी उस पर पड़ रहा है। आप अपने बच्चे के स्वभाव से चिंतित हैं तो इन बातों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है।
ऐसे करें नियंत्रण
ऐसे बच्चों में आत्मसम्मान की भावना 3 से 4 साल की उम्र में ही शुरू हो जाती है। अगर आप ऐसे बच्चों को किसी के सामने चिल्लाकर या फिर मारपीट कर समझाते है तो इससे उनके आत्मसम्मान को धक्का लगता है और उनके अंदर कुछ भी सीखने की भावना खत्म हो जाती है। ऐसे में आपका बच्चा कोई गलती करता है तो आप उसे अकेले में प्यार से समझाएं।
गलतियों पर प्यार से समझाएं
बचपन में गलतियां करना बच्चों का स्वभाव होता है। इसका मतलब यह नहीं होता कि आप उन्हें छोटी-सी गलती करने पर मारने-पीटने लग जाएं। ऐसे सभी के सामने उन्हें मारने से उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाएगा और उन्हें बहुत जल्दी गुस्सा आने लगेगा और आपके प्रति सम्मान भी कम होगा। इसलिए बच्चों को जरा-सी गलती करने पर मारना-पीटना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें गलती सुधारने के लिए प्यार से समझाना चाहिए।
रखें नजर
कुछ बच्चों को बहुत जल्दी गुस्सा आने के कारण वह अपने दोस्तों से भी जल्दी झगड़ा करने लगते हैं। ऐसे में इस तरह के बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज नही करना चाहिए। उनकी स्कूल टीचर या स्कूल ले जाने वाली गाड़ी के ड्राइवर से भी उनके बारे में पूछते रहना चाहिए और उनकी गलतियों के सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।
व्यवहारिक ज्ञान दें
बच्चे अपना स्कूल का काम बहुत जल्दी खत्म करके खेलने-कूदने लग जाते हैं। ऐसे में मां-बाप उन्हें हर समय पढ़ने के लिए कहते रहते है। अगर आपके बच्चें पढाई में होशियार है, इसका मतलब यह नहीं कि वह हर वक्त पढ़ाई में लगे रहें। इसलिए बच्चों को पढ़ाई के साथ व्यवहारिक ज्ञान भी होना चाहिए।

शिशु को घुटनों के बल चलने दें
बच्चों का घुटनों के बल चलना, प्राकृतिक नियम है इससे शिशु के शारीर को अनेक प्रकार के स्वस्थ लाभ मिलते हैं जो उसके शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास के लिए बहुत जरूरी है। इससे पहले की बच्चे पैरों के बल चलना सीखे, वे घुटनों के बल चलना सीखते हैं।कई बार हो सकता है आपके मन में यह सवाल आया होगा कि क्या शिशु का घुटने के बल चलने का कोई फायदा है?
सच बात तो यह है कि जब बच्चे घुटनों के बल चलते हैं तो एक प्रकार से उनके शरीर का व्यायाम होता है। उनके पैरों में ताकत आती है और खड़े होकर चलने की क्षमता विकसित होती है।
पैरों पर चलने से पहले बच्चों का घुटनों के बल चलना, प्राकृतिक नियम है। प्रकृति ने यह नियम हम मनुष्यों के लिए इसी उद्देश्य से बनाया है।
पैरों के बल चलने से पहले, घुटनों के बल चलने से शिशु को अनेक प्रकार के स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। शिशु का घुटनों के बल चलना उसके शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास के लिए बहुत जरूरी है।
शिशु के शारीरिक विकास के लिए
जब बच्चे घुटनों के बल चलते हैं तो पैरों के साथ-साथ उनके हाथों का भी इस्तेमाल होता है। इस तरह शिशु के हाथ और पैर दोनों की हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूती मिलती है साथ ही उनका शरीर लचीला बनता है।
जब बच्चे अपने घुटनों के बल चलते हैं तो उनका पैर शरीर को मोड़ना, घुमाना साथ ही चलने और दौड़ने जैसी जरूरी प्रक्रिया को समझता है और सीखता है।
शिशु जब घुटनों के बल चलना शुरू करता है तो उसके शरीर को प्रोटीन और कैल्शियम युक्त आहार की आवश्यकता पड़ती है।
अगर इस समय आप शिशु के आहार में ऐसे भोजन को सम्मिलित करें जिसे प्रचुर मात्रा में चींटियों को प्रोटीन और कैल्शियम मिले तो उसकी हड्डियां मजबूत बनेगी और उसकी मांसपेशियों का विकास बहुत तेजी से होगा।
घुटने के बल चलना प्रकृति का नियम
शिशु के अच्छे मानसिक विकास के लिए यह जरूरी है कि वह खुद चीजों को करके सीखें। इसी के अंतर्गत प्राकृतिक ने शिशु के लिए घुटनों के बल चलने का नियम निर्धारित किया है।
जब शिशु पैरों के बल चलता है तो उसमें गति और स्थिति के नियमों को समझने की क्षमता बढ़ती है। इसके समाज से शिशु अपना संतुलन बनाना सीखना है।
शिशु किस प्रक्रिया से अपनी आंखों और हाथों की गति में सामंजस्य स्थापित करना भी सीखता है। घुटनों के बल चलने के दौरान क्योंकि अपने आसपास की चीजों से संबंधित समझ बढ़ती है।
दृष्टि और सामंजस्य की क्षमता का विकास
घुटनों के बल चलते वक्त जब शिशु एक स्थान से दूसरे स्थान जाता है तो उसमें आंखों और दृष्टि के नियमों की समझ बढ़ती है। इसके साथ ही उसकी दृष्टि की क्षमता का विकास होता है।
इससे पहले नवजात अवस्था में जब शिशु केवल गोद में रहता था तो वह केवल अपने आसपास की वस्तुओं को दूर से देख सकता था लेकिन घुटनों के बल चलने के दौरान उसमें पास और दूरी की समझ का विकास पड़ता है। या यूं कहें कि उसमें दूरी से संबंधित समझ का विकास होता है।
इस समझ के आधार पर वह यह निर्णय करना सीखता है कि उसे किस गति से कहां पर पहुंचना है कि शरीर को नुकसान ना पहुंचे तथा दूरी के आधार पर एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचने पर कितना समय लगेगा।
मस्तिष्क का विकास
बच्चों पर हुए अनेक शोध में यह बात सामने आई है कि बच्चों का दुनियावी चीजों से संबंधित विकास सबसे ज्यादा बच्चों का घुटने के बल चलने के दौरान हुआ।
यह शिशु की जिंदगी का वह महत्वपूर्ण पड़ाव है जब शिशु का दाया और बाया मस्तिष्क आपस में सामंजस्य स्थापित करना सीखता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि इस समय शिशु एक साथ कई काम कर रहा होता है जिससे उसके दिमाग के अलग-अलग हिस्सों का इस्तेमाल हो रहा होता है।
उदाहरण के लिए जब शिशु घुटनों के बल चलता है तो वह अपने हाथ और पैर दोनों का इस्तेमाल करता है तथा तापमान, दूरी, गहराई जैसे ना जाने अनेक चीजों को भी अपने तजुर्बे से इस्तेमाल करना सीखता है। इस समय शिशु के दिमाग का विकास अपने चरम पर होता है।
यह शिशु के आत्मविश्वास को बढ़ाता है
घुटनों के बल चलने से शिशु के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है क्योंकि वह अपनी जिंदगी के बहुत से दैनिक फैसले खुद लेना शुरू करता है।
यह शिशु के आत्मविश्वास को बढ़ाता है
उदाहरण के लिए दूरी या गहराई के आधार पर वह यह निर्णय लेना शुरू करता है कि उसे किस दिशा में घुटनों के बल आगे बढ़ना है या उसे कब रुकना है।
इस तरह से उसे हर शारीरिक गतिविधि के लिए कुछ ना कुछ निर्णय लेना पड़ता है। इस तरह समय से निर्णय लेने से उसमें आत्मविश्वास के साथ साथ सोचने और विचार करने की क्षमता का भी विकास होता है।
घुटनों के बल चलने के दौरान कई बार बच्चों को चोट भी लगती हो जो उनमें जोखिम लेने का साहस पैदा करते हैं और साथ ही असफल होने की स्थिति में उसके अंदर पुनः प्रयास करने की समझ और साहस विकसित करते हैं। इस प्रकार का समय और आत्मविश्वास दोनों आगे चलकर पैरों के बल चलने में मदद करते हैं।

बारिश में बच्चों का रखें विशेष ध्यान
No Imageबरसात का मौसम बच्चों को बेहद भाता है क्योंकि इस दौरान उन्हें पानी में खेलने का अच्छा मौका मिलता है।
बच्चे इस दौरान जानबूझकर पानी में खेलना, कूदना और कागज की नाव चलाना चाहते हैं। ऐसे में उनको रोका नहीं जा सकता पर कुछ सावधानियां रखी जा सकती हैं। बारिश में अधिक समय तक भीगने से वे बीमार हो सकते हैं। ऐसे मौसम में आप की जिम्मेदारी अपने बच्चों के प्रति काफी बढ़ जाती हैं क्योंकि बच्चा नहीं जानता कि बारिश में भीगने से क्या हो सकता है।
बारिश में एक उमंग और उत्साह होता है, ऐसे में बच्चे जानबूझकर पानी में खेलना ,कूदना , छाता लेकर इधर – उधर घूमना या रेनकोट पहनकर बाहर लॉन में छपाक – छपाक करना बहुत पसंद करते हैं। छोटे बच्चो को पानी में भीगते हुए स्कूल जाना लगता हैं। इस स्थिति में आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।
अपने बच्चे के कमरे का तापमान सामान्य रखे। सीलन न होने दें।
कमरे की सफाई पर विशेष ध्यान दे जिससे मक्खी, मच्छर और कीड़े न हों।
उनके कमरे में पर्याप्त हवा आने दे।
शाम के समय खिड़की – दरवाज़े बंद कर दे ताकि मच्छर और कीड़े आदि कमरे में ना आ सके।
बच्चे यदि बारिश के पानी में भीग जाते हैं तो गुनगुने पानी में डेटोल के कुछ बूंदे डालकर उन्हें स्नान कराए।
सूखे तौलिये से बच्चे के शरीर को पोछें। सरसों के तेल से बच्चे के शरीर की हलकी मालिश कर दें।
बच्चे के पैरों को साफ पानी से धुलवा कर तौलिये से सुखवा दें।
गर्म दूध में हल्दी डालकर बच्चे को पिलाएं।
खाना ताज़ा और गर्म ही खिलाए।
अदरक ,हल्दी और अन्य जड़ीबूटियों को बच्चे की खुराक में शामिल करें।
अपने बच्चे को गर्म पेय पदार्थ पीने को दें।
फलों को खिलाने के लिए अच्छी तरह से धो कर ही खिलाए।
सब्जी बनाने से पहले गर्म पानी से अच्छी तरीके से धो लें।
सलाद और कच्चे अंडे से परहेज करें।
लस्सी, छाछ और दही बच्चे को ना दें।
इस मौसम में बच्चे को फ़िल्टर का पानी या उबला हुआ ही पानी दें।
बच्चे के शरीर में पानी की कमी ना होने दें , उसे थोड़ी – थोड़ी देर पर पानी आदि पिलाते रहे। गर्मी अधिक होने पर पसीने के रूप में शरीर से पानी निकल जाता हैं और डिहाइड्रेशन की शिकायत हो जाती हैं।
बारिश में बच्चों का खेलते समय रखें ध्यान (23एफटी01एचओ)
बरसात का मौसम बच्चों को बेहद भाता है क्योंकि इस दौरान उन्हें पानी में खेलने का अच्छा मौका मिलता है।
बच्चे इस दौरान जानबूझकर पानी में खेलना, कूदना और कागज की नाव चलाना चाहते हैं। ऐसे में उनको रोका नहीं जा सकता पर कुछ सावधानियां रखी जा सकती हैं। बारिश में अधिक समय तक भीगने से वे बीमार हो सकते हैं। ऐसे मौसम में आप की जिम्मेदारी अपने बच्चों के प्रति काफी बढ़ जाती हैं क्योंकि बच्चा नहीं जानता कि बारिश में भीगने से क्या हो सकता है।
बारिश में एक उमंग और उत्साह होता है, ऐसे में बच्चे जानबूझकर पानी में खेलना ,कूदना , छाता लेकर इधर – उधर घूमना या रेनकोट पहनकर बाहर लॉन में छपाक – छपाक करना बहुत पसंद करते हैं। छोटे बच्चो को पानी में भीगते हुए स्कूल जाना लगता हैं। इस स्थिति में आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।
अपने बच्चे के कमरे का तापमान सामान्य रखे। सीलन न होने दें।
कमरे की सफाई पर विशेष ध्यान दे जिससे मक्खी, मच्छर और कीड़े न हों।
उनके कमरे में पर्याप्त हवा आने दे।
शाम के समय खिड़की – दरवाज़े बंद कर दे ताकि मच्छर और कीड़े आदि कमरे में ना आ सके।
बच्चे यदि बारिश के पानी में भीग जाते हैं तो गुनगुने पानी में डेटोल के कुछ बूंदे डालकर उन्हें स्नान कराए।
सूखे तौलिये से बच्चे के शरीर को पोछें। सरसों के तेल से बच्चे के शरीर की हलकी मालिश कर दें।
बच्चे के पैरों को साफ पानी से धुलवा कर तौलिये से सुखवा दें।
गर्म दूध में हल्दी डालकर बच्चे को पिलाएं।
खाना ताज़ा और गर्म ही खिलाए।
अदरक ,हल्दी और अन्य जड़ीबूटियों को बच्चे की खुराक में शामिल करें।
अपने बच्चे को गर्म पेय पदार्थ पीने को दें।
फलों को खिलाने के लिए अच्छी तरह से धो कर ही खिलाए।
सब्जी बनाने से पहले गर्म पानी से अच्छी तरीके से धो लें।
सलाद और कच्चे अंडे से परहेज करें।
लस्सी, छाछ और दही बच्चे को ना दें।
इस मौसम में बच्चे को फ़िल्टर का पानी या उबला हुआ ही पानी दें।
बच्चे के शरीर में पानी की कमी ना होने दें , उसे थोड़ी – थोड़ी देर पर पानी आदि पिलाते रहे। गर्मी अधिक होने पर पसीने के रूप में शरीर से पानी निकल जाता हैं और डिहाइड्रेशन की शिकायत हो जाती हैं।
बारिश के बाद घर के आस – पास पानी इकठा हो जाता हैं जिसमें कीड़े, मकोड़े और मछर अपना घर बना लेते हैं , वहां बच्चे को ना जाने दें।
बच्चों को गीले कपड़े और मोज़े ना पहनने दें ,नहीं तो संक्रमण होने का डर रहता हैं।
बारिश के मौसम में बच्चे को ढीले सूती कपड़े पहनाए ,जिससे उनके शरीर में हवा लगाती रहे।
बच्चा जब खेल कर वापस आए ,तो उसके कपड़े बदलवा दें।
किसी टैलकम या मेडिकेटेड पाउडर का प्रयोग करें। घर में मौजूद कूलर का पानी रोज़ बदले ,नहीं तो घर में मछर पनपनें लगेंगे।
रात को सोते समाये मछरदानी अवश्य लगवाए।
बारिश के मौसम में किसी भी तरह का संक्रमण जल्दी होता हैं , इसलिए अपने बच्चे के शरीर की सफाई का ध्यान दें।
अपने बच्चे के कपड़े को डेटोल के पानी से अवश्य धोए।
बच्चे के इस्तेमाल की जाने वाली प्रत्येक वास्तु की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
बारिश का मौसम जितना खुशनुमा और आनंददायक होता हैं, उतना ही बच्चों के स्वास्थय सम्बन्धी समस्याए लेकर आता हैं ,लेकिन अगर समझदारी से बच्चे की देख-भाल की जाए तो ये समस्याए बहुत ही आसानी से दूर हो जाएगी।

जब बच्चों की नाक हो बंद तो करें ये उपाय
No Imageबदलते मौसम में बच्चों की नाक बंद होना आम बात है। नाक बंद होना किसी को भी अच्छा नहीं लगता है, बच्चों को तो बुल्कुल भी नहीं। नाक बंद होने से बच्चे परेशान हो जाते हैं। कुछ ऐसे उपाय हैं जिनकी सहयता से आप अपने बच्चे को आराम से साँस लेने में मदद कर सकती हैं।
अगर आपका बच्चा बंद नाक की स्थिति से परेशान है ती कुछ बातों का ख्याल रख कर आप उसे आराम पहुंचा सकती हैं।
सबसे पहले तो आप को यह सुनिश्चित करना है की क्या आप के बच्चे की नाक वाकई बंद है। अगर ऐसा है तो आप को अपने बच्चे में निम्न लक्षण दिखेंगे।
नाक बंद होने की स्थिति में बच्चे बहुत चिड़चिड़ा बर्ताव करते हैं।
साँस लेते वक्त घरघराहट की आवाज आती है।
उन्हें भोजन करने में, स्तनपान और बोतल से दूध पिने में परेशानी होगी।
आप किस तरह उसे आराम पहुंचा सकती है?
बंद नाक की समस्या कई करने से हो सकती है जैसे की साधारण संक्रमण, जुकाम या फ़्लू। यह भी देख लें कि आप आप के बच्चे ने खेल-खेल में अपनी नाक में कुछ डाल तो नहीं लिए है। आप को विश्वाश नहीं होगा, मगर बच्चों में नाक बंद होने का यह कारण भी बहुत आम है।
बच्चे की नाक में झांक के देखिये की कहीं कुछ फंसा तो नहीं है। अगर आप को उसके नाक के छिद्र में कुछ फंसा हुआ दिखे तो निकलने की कोशिश न करें। तुरंत बच्चे को डॉक्टर के पास लेके जाएँ। अगर आप बच्चे की नाक में फंसी हुई वस्तु को खुद निकलने की कोशिश करेंगी तो हो सकता है को वह और अंदर चली जाये। बच्चे को इस दौरान मुँह से सांस लेने के लिए कहें।
नाक को रूमाल साफ़ कीजिये
साधारण संक्रमण, जुकाम या फ़्लू में आप बच्चे की नाक में नेसल स्प्रे का इस्तेमाल कर सकती हैं। इससे बच्चे को साँस लेने में बहुत आराम मिलेगा।
छोटे बच्चों में नेसल स्प्रे का इस्तेमाल करना बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योँकि छोटे बच्चे बहुत छटपटाते हैं और आसानी से नेसल स्प्रे का इस्तेमाल करने नहीं देते हैं।
शिशु की बंद नाक में नेसल स्प्रे अगर आप सही समय पे लगाती हैं तो तो शायद आप को अपने बच्चे में नेसल स्प्रे लगते वक्त उतनी दिक्कत का सामना न करना पड़े। शिशु की नाक में नेसल स्पर्य का इस्तेमा तब करें जब बच्चा शांत हो, और आरामदायक स्थिति में हो। यह सही समय होता है बच्चे की नाक में नेसल स्प्रे के इस्तेमाल करने का।
बच्चों में बंद नाक में नेसल स्प्रे का इस्तेमाल
अगर आप का शिशु दो साल से कम उम्र का है तो:
बच्चे को बिस्तर पे लिटा दें और उसके सर को एक तरफ कर दें
बेहतर तो यह होगा की आप अपने शिशु को तकिये के ऊपर लिटा दें ताकि उसके सर को पीछे की तिरफ झुकाने में आसानी हो जाये।
नेसल स्प्रे के नोजल को शिशु की एक नाक के छिद्र में डालें और केवल एक बार दबाएं।
यह प्रक्रिया दूसरी नाक के साथ भी दोहराएं।
अगर आप का शिशु दो साल से बड़ा है तो
शिशु की उम्र के अनुसार या तो उसे गोदी में लेलें या फिर उसे खड़ा कर दें।
शिशु के सर को एक हाथ से ऊपर की तरफ उठाएं।
शिशु की एक नाक में नेसल स्प्रे के नोजल दूसरी नाक को बंद कर दें। बच्चे की नाक में स्प्रे करें और अपने बच्चे से कहें की अपनी नाक से जोर से साँस लें।
यही प्रक्रिया दूसरी नाक के साथ भी दोहराएं।
अगर नेसल स्प्रे शिशु की आँख में चला जाये तो चिंता करने की कोई भी आवशकता नही है।
एक आसान सा टिप्स
अगर आप के शिशु की नाक इस कदर बंद है की रात को ठीक से सो नहीं पा रहा है तो आप एक और काम कर सकती हैं। नमी और गर्माहट बच्चे की नाक को खोलने में बहुत मददगार साबित हो सकती है। रात में बंद नाक के कारण अगर आप के बच्चे को नींद नहीं आ रही है तो आप स्नानघर में जा के गरम पानी का नल खोल दें।
गरम पानी के भाप में शिशु को 15 मिनट के लिए रखिये
इससे स्नानघर गरम पानी के भाप से भर जायेगा। अब इस भाप भरे स्नानघर में अपने बच्चे को गोदी में लेके पंद्रह (15) मिनट गुजारिये। इससे बच्चे को नाक खुलने में सहायता मिलेगी। अगर आप के शिशु को बलगम वाली खांस है, तो भी यह एक प्रभावी तरीका है।
कुछ आवश्यक बातें जिनका ख्याल आप को रखना है?
सर्दी, जुकाम और बंद नाक की स्थिति में जितना हो सके अपने बच्चे को आराम करने दें। आराम करने से बच्चे के शरीर को ताकत मिलेगी और वो जल्द ठीक हो पायेगा।
अगर आप के बच्चे की उम्र एक साल से ज्यादा है तो बंद नाक होने पर उसके सर के नीचे दो तकिये का इस्तेमाल करें ताकि उसका सर उसके शरीर की तुलना में थोड़ा ऊंचाई पर हो जाये।
शिशु के सर के निचे दो तकिये रख उसके सर को ऊँचा कर दीजिये
साधारणतया शिशु की बंद नाक की समस्या एक सप्ताह के भीतर समाप्त हो जानी चाहिए। संक्रमण के कुछ परिस्थितियोँ में दो सप्ताह भी लग सकता है।
कब डाक्टर से परामर्ष करें
सर्दी, जुकाम और बंद नाक ऐसी परिस्थितियां नहीं हैं की डॉक्टर के पास जाया जाये लेकिन अगर आप के शिशु की बंद नाक की समस्या किसी वस्तु के कारण है तो तत्काल डाक्टर के पास जायें। दूसरा अगर संक्रमण ठीक न हो रहा तो तब।

छुट्टियों में बच्चों को सिखायें कुछ नया
परीक्षा के बाद बच्चों को गर्मियों की छुट्टियों का इंतजार बेसब्री से होता है। यहीं वक्त होता है, जब बच्चे अपनी मर्जी से खेल और टीवी देख सकते है लेकिन अक्सर बच्चे रोजाना एक ही रूटीन करके भी थक जाते है। ऐसे में वह कई बार घूमने की मांग करते है। अगर आप अपने बच्चे की छुट्टियों को विशेष बनाना चाहते है तो इस प्रकार ऐसा कर सकते हैं। खेलना-कूदना आपके बच्चे के लिए फायदेमंद है। अगर आप भी चाहते है कि आपका बच्चा जिंदगी की दौड़ में न पिछड़े तो उसे आउटडोर खेल जैसे फुटबाल, बैडमिंटन, टेबलटेनिस और बॉस्केटबॉल आदि जरूर खिलाएं। खेलों में हिस्सा लेने से बच्चों का शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक विकास भी तेजी से होता है। इसके अलावा खेल-कूद से बच्चा कई चुनौतियों का सामना करना भी सीखता है।
व्यक्तित्व निखरना
कुछ नया सिखाएं
तैराकी
गर्मियों की छुट्टी में आप अपने बच्चों को तैराकी सिखा सकते है। इससे उसे मजा भी आयेगा और कुछ नया सिखने को भी मिलेगा। तैराकी बच्चों की सेहत के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि इससे व्यायाम होता है
गार्डनिंग सिखाएं
बच्चे प्रकृति से हमेशा कुछ नया सिखते है। आप गर्मियों में बच्चों को गार्डनिंग सिखाएं, इससे बच्चा प्रकृति से जुड़ा रहेगा। बच्चे गार्डनिंग को खुश होकर करते है क्योंकि इससे उन्हें मिट्टी में खेलने का मौका जो मिल जाता है।
बच्चों को घुमाने ले जाएं
छुट्टियों में बच्चे को घर की चार दीवारी में बंद न रखें, इससे उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो सकता है। अपने बच्चों को बीच-बीच में चिड़ियाघर या फिर म्यूजियम दिखाने ले जाए, इससे उसे ज्यादा खुशी मिलेगी।
बच्चों को पेंटिंग सिखाएं
बहुत से बच्चों को ड्राइंग और कलरिंग का बेहद शौक होता हैं, जिसे बच्चे अपनी हॉबी बना लेते है। अगर आप उनकी इस हॉबी हो बढ़ावा देना चाहते है तो उन्हें छुट्टियों में पेंटिंग सिखाएं। इससे उनका मन भी लगा रहेगा और उन्हें कुछ सिखने को मिलेगा।
डांस क्लॉस
बच्चों को पढ़ने के अलावा एक्सट्रा एक्टिविटी भी सिखाएं। अगर आपके बच्चे को डांस करना अच्छा लगता है तो इसे गर्मियों की छुट्टी में डांस क्लॉस में डालें। इससे बच्चा एक्टिव बनेगा।
बच्चों के साथ गेम खेलें
बच्चे सारा दिन टीवी देखकर बोर हो रहे है तो ऐसे में अभिभावक उनके इस पल को स्पैशल बनाने के लिए उनके साथ गेम खेल सकते है। इससे बच्चा उनके नजदीक भी बना रहेगा और उसका मनोरंजन भी होता रहेगा।
होते है ये लाभ
खेल से होते हैं ये लाभ
व्यक्तित्व निखरना
खेल-कूद से जुड़ी कई गतिविधियां बच्चे के व्यक्तित्व को निखारने में मदद करती है। इससे अलावा ज्यादा खेलने-कूदने वाले बच्चे स्कूल स्पोर्ट्स ऐक्टिविटीज में भी खुलकर हिस्सा लेते हैं।
दूसरों के साथ चीजें बांटना
अक्सर बच्चे खेलों में एक दूसरे के खिलोने इस्तेमाल करते हैं। इससे चीजों को दूसरों के साथ बांटना, मदद करना, नियम-कायदें, दूसरों का सम्मान करना आदि गुण उनके व्यक्तित्व में खुद-ब-खुद शामिल हो जाते हैं।
सीखते हैं हार स्वीकारना
हार जीत तो हर खेल का हिस्सा होती है। ऐसे में बच्चे खेल के जरीए दूसरों के साथ अपनी जीत सेलिब्रेट करना और विनम्रता से हार स्वीकारना सीखते हैं।
सेहत के लिए फायदेमंद
आउटडोर खेल जैसे पकड़म-पकड़ाई, छुपम-छुपाई, खो-खो, बैडमिंटन, क्रिकेट, कबड्डी, गुल्ली डंडा, पिटठू, टेबल टेनिस, फुटबॉल, बॉस्केटबॉल, वॉलीबॉल और हॉकी को खेलने से बच्चे स्वस्थ, फिट और तंदुरस्त रहते हैं।
आत्मविश्वास बढ़ना
आउटडोर खेलों से बच्चों का आत्ममविश्वास बढ़ता है। अभिभावक, कोच और आसपास के लोग जब उनकी कोशिशों की तारीफ करते हैं, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ जाता है। इससे बच्चों में सेल्फ एस्टीम की बढ़ोतरी होती है, जोकि आगे चलकर उनकी मदद करती है।
लक्ष्य का पीछा करना
खेलते समय बच्चों को कितनी भी दिक्कत आएं वह उन्हें खेलना नहीं छोड़ते। वह आखिरी पल तक जीतने की कोशिश करते हैं। धीरे-धीरे उनकी यह आदत उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाती हैं।

बच्चों को चाय की आदत न डालें
No Imageबहुत से घरों में बच्चों का चाय पीना एक सामान्य बात है। ऐसा माना जाता है कि चाय पीने से पाचन क्रिया अच्छी रहती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता दुरुस्त रहती है और कमजोरी दूर होती है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि चाय पीने के बहुत से फायदे हैं लेकिन एक बच्चे और वयस्क पर इसके अलग-अलग प्रभाव होते हैं।
कई घरों में लोग चाय में दूध की मात्रा ये सोचकर बढ़ा देते हैं कि इसी बहाने से बच्चा दूध पी लेगा लेकिन ऐसा सोचना गलत है।
बच्चे की सेहत पर क्या असर डालती है चाय?
हम सभी के घरों में चाय पीना बहुत सामान्य बात है लेकिन ये बात जान लेना बहुत जरूरी है कि एक बच्चे और एक वयस्क पर चाय का असर अलग-अलग होता है। अगर आपका बच्चा बहुत अधिक चाय पीता है तो इसका असर उसके मस्त‍िष्क, मांसपेशियों और नर्वस सिस्टम पर भी पड़ सकता है। इसके साथ ही बहुत अधिक चाय पीने का असर शारीरिक विकास पर भी पड़ता है।
बहुत अधिक चाय पीने वाले बच्चों को हो सकती हैं ये परेशानियां:
कमजोर हड्ड‍ियां
हड्ड‍ियों में दर्द, खासतौर पर पैरों में
व्यवहार में बदलाव
कमजोर मांसपेशियां। इसलिए उसे चाय की जगह दूध पीने के लिए प्रेरित करें।

बच्चों को उनके पसंदीदा कामों को करने दें
No Imageगर्मी की छुट्टियों एक ऐसा समय होता है जब साल भर की पढ़ाई के बाद बच्चे अपने मन के मुताबिक समय बिताना चाहते हैं पर बढ़ती प्रतिस्पर्धा को देखते हुए अभिभावक उन्हें किसी न किसी क्लास में भेजकर नंबर एक बनाने की जिस दौड़ में लगे रहते हैं उससे बच्चे निराश हो जाते हैं। कई बार तो माता-पिता यह नहीं देखते कि बच्चों की रुचि क्या है, या वह क्या करना चाहते हैं। ऐसे में अभिभावकों को यह देखना चाहिये कि बच्चे इन दिनों में ऐसा क्या कर सकते हैं, जिसमें उन्हें मजा भी आये और जो उनके काम भी आये। जाहिर है, आजकल ज्यादातर लोग स्कूली पढ़ाई के ही पीछे पड़े रहते हैं, मगर बच्चों का मन कभी-कभी उससे अलग हटकर कुछ करने का भी होता है। जैसे हमारा मन भी कभी-कभी काम से हटकर कुछ नया करने का होता है। ऐसा करके हम और ताजगी महसूस करते हैं, बाद में काम में और ज्यादा जोश से लग जाते हैं। फिर बच्चों को ऐसे मौके देने में हर्ज क्या है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि बच्चों की रुचि का ध्यान रखना चाहिए। अगर कोई बच्चा चित्रकार या फोटोग्राफर बनना चाहता है, तो उसके मन की भावना को समझना चाहिए। कई बार बच्चे बनना तो परंपरागत तरीके से इंजिनियर, डॉक्टर या मैनेजर चाहते हैं, लेकिन इसके साथ ही वे कुछ ऐसा कौशल भी विकसित करना चाहते हैं, जो भले ही कामकाजी रूप से उनके किसी काम न आये, पर उन्हें आनंदित करे। जैसे कोई इंजिनियर शौकिया गिटार बजाना चाहे, कोई डॉक्टर कहानी या कविता लिखना चाहे, कोई मैनेजर पेंटिंग या स्कल्पचर बनाना चाहता है।
दोनों तरह की सोच रखने वाले बच्चों को अपने मन की बात पूरी करने की आजादी होनी चाहिए। बच्चों में असीम ऊर्जा होती है। उस ऊर्जा को अगर उनके मन की गतिविधियों में लगा दिया जाये, तो वे सच में जादू कर सकते हैं। इसलिए होना यह चाहिए कि बच्चों को गर्मी की छुट्टियों में कुछ ऐसे काम करने दिये जायें, जिनसे उनमें नये कौशल भी पैदा हों, उन्हें इसमें मजा भी आये और उनके चरित्र व आत्मविश्वास को भी संबल मिले।
कहानी, थियेटर या आर्ट वर्कशॉप से बच्चों में रचनात्मकता आती है। ये कलाएं मानवीय गुण पैदा करने वाली भी हैं। इनसे बच्चों में एक नैसर्गिक प्रतिभा तो विकसित होती ही है, बाद में वे उन्हें करियर के रूप में आजमा सकते हैं।
संगीत और डांस ऐसी कलाएं हैं।इनमें पारंगत बच्चे हर पार्टी की जान और शान होते हैं। ये भी करियर का एक बेहतरीन विकल्प हैं।
विभिन्न खेलों के समर कैंप में भी बज्जे भाग ले सकते हैं। खेल बच्चों में टीम भावना और किसी भी परिस्थिति में हार न मानने का गुण पैदा करते हैं।
पुरानी चीजों से कुछ उपयोगी वस्तुएं बनाने की कारीगरी भी बच्चे सीख सकते हैं। अखबार से लिफाफे और प्लास्टिक के सामान व बोतलों से सजावट की चीजें बनायी जा सकती हैं। पैकेजिंग के अक्सर फेंक दिये जाने वाले गत्तों और बॉक्सों का भी सुंदर इस्तेमाल हो सकता है। बीते साल की कॉपियों और नोटबुक्स के कोरे पन्ने फाड़कर अगले साल के लिए रफ काम में इस्तेमाल होने वाली कॉपियां और डायरियां बनायी जा सकती हैं।बच्चे कैलेंडर भी डिजाइन कर सकते हैं। ड्राइंग पेपर या ग्लॉसी पेपर पर बर्थडे कार्ड और अन्य ग्रीटिंग कार्ड बना सकते हैं। इससे उनका दिमाग नये तौरतरीकों को आजमाने में लगेगा।

इस प्रकार बच्चे बनेंगे जिम्मेदार
हर माता-पिता को अपने बच्चे प्यारे होते हैं और वे उन्हें सभी प्रकार की खुशियां देना चाहते हैं। यह एक प्रकार से ठीक भी है लेकिन याद रहे बच्चे को भविष्य में घर में नहीं इस दुनियां में रहना है। इसलिए उसे बचपन से ही जिम्मेदारी के साथ ही स्वावलंबी बनाने के भी प्रयास करें। आमतौर पर देखा जाये तो हममें से कई लोग अपने बच्चों को इतना अधिक प्यार करते हैं कि बच्चों में आ रही बुरी आदतों पर भी ध्यान नहीं देते। यदि आप ऐसे माता-पिता हैं तो सतर्क हो जायें, बहुत जल्द ही चीजें आपके नियंत्रण से बाहर हो जाएंगी। निस्संदेह आप अपने बच्चों से बहुत प्रेम करते हैं लेकिन उनके बेहतर भविष्य के लिए इन बातों पर ध्यान दें ।
बच्चों को सही प्रकार से पालें – यह ज़रूरी है कि आप बच्चों को समय-समय पर यह अहसास होने दें कि वे सबसे अहम हैं पर उन्हें अपनी जिम्मेदारी का भी अहसास करायें। बच्चों पर आपके नियंत्रण का अर्थ यह है कि आप उनके लिए सीमाओं का निर्धारण करें। उन्हें यह समझाएं कि उन्हें किन हदों को कभी पार नहीं करना है। इसके लिए यह ज़रूरी है कि आप उन्हें कुछ जिम्मेदारियां सौंपें और अभिभावक होने के नाते उनका मार्गदर्शन करें।
रूपए-पैसे का महत्व बताएं – आजकल अधिकांश घरों में माता-पिता कामकाजी होते हैं, इसलिए वे बच्चों को पर्याप्त समय न दे पाने के कारण उन्हें सुख-सुविधा और जेब खर्च देकर इस कमी को पूरा करना चाहते हैं। ऐसा करते समय वे यह भूल जाते हैं कि पैसा एक साधन मात्र है और इसे साध्य नहीं बनाया जाना चाहिए। यदि आप स्वयं पर इस नीति का पालन करेंगे तो आपके बच्चे भी इसका महत्व समझेंगे।अपने बच्चों को छोटी उम्र से ही रूपए-पैसे देना, उनके लिए महंगी ज्वेलरी, मोबाइल, गेमिंग पैड आदि खरीदना उन्हें सुविधाभोगी बना देगा और ऐसे बच्चों में किसी भी चीज के प्रति कृतज्ञ होने का भाव नहीं पनपेगा।
बच्चों को खुद से काम करने के लिए प्रेरित करें – जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिए स्वयं कार्य करना बहुत ज़रूरी है। हर जिम्मेदार व्यक्ति को वयस्क होने पर स्वावलंबी बनना पड़ता है, अपने लिए उपयुक्त काम खोजना पड़ता है। अपने बच्चों को यह बात बताकर आप उन्हें उनके भावी जीवन की सफलता में सहायक हो सकते हैं। हो सकता है कि आप उन्हें किसी भी ऐसे काम से बचाना चाहते हों जो कठिन हो या जिसमें बहुत परिश्रम लगता हो लेकिन उन्हें कोई भी काम न सौंपकर आप उन्हें आलसी ही बना देंगे। ऐसा होने पर उन्हें किशोरावस्था में बाहरी दुनिया में तालमेल रखने में बड़ी कठिनाई जाएगी। अपना काम खुद करने की आदत विकसित करने से वे भावी जीवन में बड़ी जिम्मेदारियों को कुशलतापूर्वक अकेले ही निभाने के योग्य बनेंगे।
आभारी होना भी सिखाएं – हो सकता है आप अपने बच्चों को इस प्रकार पाल रहे हों कि वे सब कुछ स्वयं करते हों और किसी के प्रति ऋणी न बनें। किसी के काम के प्रति आभारी होने की बात कहने से बच्चे यह जान पाते हैं कि उनके लिए किए जा रहे काम कितने महत्वपूर्ण हैं।
अभिभावक होने के नाते हमें बच्चों के सामने आदर्श स्थापित करना चाहिए। यदि हम ही अपने बच्चों के सामने गैरजिम्मेदार बर्ताव करेंगे तो वे हमसे क्या सीखेंगे? कुछ पैरेंट्स अपने बच्चों से हमेशा खीझभरा व्यवहार करते हैं या हमेशा उनकी शिकायतें करते रहते हैं।
बच्चों को उनकी सीमाओं का बोध कराएं – बच्चे स्वभाव से शरारती हो सकते हैं पर अभिभावक होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें संयत व्यवहार करना सिखाएं। हमें उनमें ऐसे गुणों को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए जिनसे वे सबके प्रिय बनें। इसके लिए यह ज़रूरी है कि उन्हें बताया जाए कि उनकी किन बातों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बच्चों के नखरों व ज़िद के को मान लेने से वह मनमानी करने लगेंगे।
बच्चे को उसकी फरमाइश पर एक चॉकलेट या पर्सनल टैब्लेट दिला देना एक ही बात नहीं है। आप बच्चे की ज़रूरत का आकलन करके स्वयं यह तय करें कि उसके लिए क्या अनिवार्य है और क्या गैरज़रूरी है।
बच्चों को गलत बातों के लिए उपहार नहीं दें – यदि आपका बच्चा पुराने खिलौने से ऊबकर खराब व्यवहार कर रहा हो तो उसे शांत करने के लिए नया खिलौना दिला देना गलत नीति है। बच्चों को कोई भी उपहार या नया खिलौना दिलाते समय उन्हें यह अहसास होने दें कि वे उसे डिज़र्व करते हैं और उनकी अच्छाइयों के लिए उन्हें रिवार्ड दिया जाता है. ऐसा होने पर वे उत्तरदायी बनेंगे और अपने सामान व खिलौनों को एहतियात से रखेंगे और उनकी कीमत समझेंगे।
अपने बच्चों की गलतियों पर उनका पक्ष नहीं लें – आपका बच्चा उसके द्वारा किए जानेवाले हर सही-गलत काम के लिए जवाबदेह होना चाहिए। यदि उसने कोई गलती की है तो आप उसका पक्ष नहीं लें. बच्चों को उनकी गलतियों से सबक लेने दें और उन्हें मामूली सज़ा देने से पीछे नहीं हटें।

बच्चों को मौसम के अनुरुप कपड़े पहनायें
गरमी का मौसम आ गया है ऐसे में बच्चों को पहनाये जाने वाले कपड़ों को लेकर विशेष ध्यान रखने की जरुरत है। इस मौसम में जहां तक हो सके ऐसे कपड़े पहनायें जिनमें गरमी कम लगे। ऐसे में सिंथेटिक परिधानों से दूर रहना ही ठीक रहेगा। जिस प्रकार फैशन ट्रेंड्स बढ़ते जा रहे हैं उस अनुसार देखें कि बच्चों को किस प्रकार से स्टायलिश लुक भी मिले और उनके कपड़े आराम देह भी रहें।
बच्चों की दुनिया इस समय सॉफ्ट माव, टैंगी ग्रीन और यलो के साथ पेस्टल से लेकर हर चटकीले, दिलखुश रंगों से दमक रही है, इस समय चाहे लड़कियों के स्कर्ट-टॉप्स हो, ट्रेंडी कैपी हो या लड़कों के जींस शॉर्ट्स और टी-शर्ट्स सबमें खुशनुमा रंगों की बहार है। लड़कियों में लाइम ग्रीन, यलो और पिंक कलर्स छाए हुए हैं, तो लड़कों में रेड, ब्लू, फिरोजी और ब्राउन का ट्रेंड चल रहा है।
अंदाज भी है खास
स्टाइल के मामले में ये कहीं पीछे नहीं हैं। पाँच से पंद्रह वर्ष की लड़कियों में हॉल्टर नेक्स, छोटे स्कर्ट्‌स और ट्राउजर्स की धूम मची है तो वहीं शॉर्ट कुर्ते के साथ टाइट चूड़ीदार भी है। लड़कों के लिए इतनी वैराइटी नहीं है, पर स्ट्रेट जैकेट के अलावा शॉर्ट्‌स शर्ट्‌स और टी-शर्ट्‌स उपलब्ध हैं। बाजार की मानें तो बच्चों में जंपसूट्स की माँग भी लगातार बढ़ रही है। फिर कपड़ों की बात करते ही आता है प्रिंट का जिक्र।
लड़कियों ने इस मामले में भी बाजी मारी है। उनके लिए फूल, बड़े प्रिंट्स, बुके, सिंपल, बारीक और मिले-जुले प्रिंट्स से सजी ड्रेसेस बाजार में उपलब्ध हैं। इनमें जियोमैट्रिक डिजाइन और पैचवर्क की दखलंदाजी भी काबिले तारीफ है। इनके अलावा मल्टी कलर्ड स्ट्राइप्स स्पॉट्स और पोल्का डॉट्स भी चलन में है। पार्टी के लिए बीडेड, एम्ब्रायडरी किए कपड़ों की भी बहार है।
नर्म हो फैब्रिक
बच्चों की त्वचा होती है फूल-सी नाजुक, इसलिए फैब्रिक भी होना चाहिए उसी के अनुरूप। मसलन कॉटन और लिनेन। बच्चों के लिए काम करने वाले डिजाइनरों का भी यही मानना है कि सिंथेटिक या ऐसे ही दूसरे फैब्रिक्स नाजुक त्वचा पर रैशेज ला सकते हैं। इसलिए बेहतर है कि बच्चों के लिए ऐसे कपड़ों का चुनाव किया जाए, जो मौसम से तालमेल बैठा सकें। इनमें कॉटन सबसे अच्छा है।
हाँ, खास मौकों पर आप चूड़ीदार सूट, घाघरा-चोली या चूड़ीदार कुर्ता-पजामा ले सकते हैं। फैब्रिक के मामले में सॉटन या सिल्क और रंगों में मैरून, ब्राउन, रेड और ब्लू का चुनाव बेहतरीन होगा। आजकल पीजेंट्स टॉप्स फैशन में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है।
ये आकर्षक टॉप्स कैजुअल वियर में बेहद शानदार मालूम होंगे। ऑरेंज और यलो में मिल रहे ये टॉप्स ब्लू जींस या स्कर्ट पर खास फबते हैं। हाँ, बच्चों के लिए किसी भी चीज का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि वे भड़कीले नहीं सोबर लगने चाहिए।

छोटे बच्चों को पानी की कमी से बचायें
गर्मी का मौसम आते ही छोटे बच्चों का विशेष ध्यान देने की जरुरत है। अगर छोटे बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं दिया जाये तो पानी की कमी के कारण वे बीमार हो सकते हैं। इस समय बच्चों में पानी की कमी होना आम बात है क्योंकि बड़ों की तुलना में बच्चे तरल पदार्थों को जल्दी खो देते हैं। ऐसे में अगर उनको पीने के लिए ज्यादा तरल पदार्थ न मिलें तो बच्चे के शरीर में पानी कमी हो जाती है। पानी की कमी होने पर शिशु के शरीर में कुछ लक्षण दिखाई देते हैं। इन लक्षणों को पहचान कर बच्चों में पानी की समस्या दूर की जा सकती है।
शिशु में पानी की कमी के लक्षण इस प्रकार हैं।
शिशु का गला, मुंह और होंठ का सूखना
रोते समय आंखो से आंसू न निकलना
यूरिन का रंग पीला होना
दस्त की समस्या
धंसी हुई आंखें
पानी की कमी ऐसे होगी दूर
स्तनपान करवाना
यदि आपका बच्चा सिर्फ आपके दूध पर निर्भर करता है तो उसको थोड़- थोड़े समय के बाद स्तनपान जरूर करवाएं। अगर बच्चा 6 महीने से बड़ा है तो उसे बाहर का फार्मूला दूध या पानी पिलायें। अगर शिशु इस उम्र से छोटा है तो उसे दूध पीलाते रहें।
ताजे फलों का रस
अगर आपके बच्चे ने ठोस तरल पदार्थ लेना शरू कर दिया है तो उसको ताजे फलों का रस जैसे संतरा और मौसम्बी पीने को दें सकती हैं। इसके अलावा, आप शिशु को दाल का पानी या फिर सूप भी दे सकती हैं। इससे शिशु के शरीर में न केवल पर्याप्त पानी रहेगा बल्कि उसे उर्जा भी भी मिलेगी।
पतली मूंग दाल की खिचड़ी
बच्चे को पतली मूंग दाल की खिचड़ी भी खाने को दे सकती हैं। यह शुरूआती दिनों में आसानी से पचने वाला आहार होता है। इसके अलावा, आप शिशु को दही में चावल को मसल कर भी दे सकती हैं।
ग्राइप वाटर
शरीर को ठंडा रखने के लिए उसे ग्राइप वाटर भी दें। इसके अलावा शिशु को पानी उबाल कर उसे ठंडा कर के समय-समय पर 2-2 चम्मच देते रहें।
इन बातों का रखें ध्यान
गर्मियों के दिनों में बच्चे को धूप में ज्यादार देर तक बाहर लेकर न जाएं। खाकर दोपहर के समय में। इन दिनों में बच्चों के कमरे का तापमान उनके शरीर के तापमान के अनुसार रखें। कमरे में न ज्यादा गर्मी हो और न ही ज्यादा ठंड। इसके साथ ही बच्चों को सूती कपड़े पहनाएं। घर निकलते समय टोपी भी पहना सकते हैं। गर्मी से बचाने के लिए शिशु को रोज नहलाएं और तेल मालिश न करें।

बच्‍चे बिस्‍तर गीला करते हैं तो करें ये उपाय
शिशुओं और छोटे बच्‍चों की बिस्‍तर गीला करना एक बहुत ही आम समस्‍या है पर छह साल की उम्र से ज्‍यादा उम्र के बच्‍चों का बिस्‍तर गीला करने पर अभिभावकों को परेशानी और निराशा होती है। बच्‍चे आलस्‍य या किसी उद्देश्‍य से ऐसा नहीं करते बल्कि अक्‍सर यह समस्‍या छोटे ब्‍लैडर, ब्‍लैडर परिपक्वता, अत्‍यधिक यूरिन उत्‍पादन, यूरीन मार्ग में संक्रमण, तनाव, पुरानी कब्‍ज और हार्मोंन असंतुलन के कारण होता है। कुछ बच्‍चे गहरी नींद में सोते हैं, और उनके मस्तिष्‍क को ब्‍लैडर के भरे होने का संकेत नहीं मिलता है।
इसके अलावा बहुत सारे मामलों में यह समस्‍या बच्‍चों को विरासत में मिलती है। अगर आप भी अपने बच्‍चे की इस समस्‍या परेशान हैं तो आसान और सरल प्राकृतिक उपचार बिस्तर गीला रोकने में मदद कर सकते हैं। आपको बता दें कि बच्चे जान बूझकर बिस्तर गीला नहीं करते। उनका अपने आप पर नियंत्रण नहीं होता। उनपर गुस्सा करके या डांट कर या अपनी नाराजगी जताकर उन्हें अपने आपको कसूरवार न समझने दें, बल्कि समझदारी से काम लें। कई बार इसके मानसिक कारण होते हैं, ऐसे में मनोचिकित्सक से भी संपर्क करें।
यह होते हैं कारण
जिन बच्चों में बिस्तर गीला करने की बीमारी होती हैं, वह उसे महसूस ही नहीं कर पाते। यह कई कारणों से हो सकता है। रात में न जग पाने की असमर्थता। मूत्राशय का जरूरत से अधिक क्रियाशील होना।मूत्राशय के नियंत्रण में देरी होना। मूत्र विसर्जन पर नियंत्रण न होना। नाक संबंधित अवरोध अथवा गहरी नींद। मनोवैज्ञानिक समस्या, आनुवांशिकी कारण, कब्ज होना।
यह देखें कि आपके बच्चे को पर्याप्त नींद मिलती है कि नहीं। सोने की सही समय-सारिणी से बच्चे को उठने में आसानी होगी जब उसे मूत्रत्याग का एहसास होगा।
एक तवे पर धनिये के बीज को भून लें जब तक कि वह भूरे रंग के नहीं हो जाते। इनमे एक चम्मच अनार के फूल, तिल, और बबूल की गोंद मिलाकर एक मिश्रण बना लें और उनका मिश्रण बना लें। इसमें थोड़ी सी मिश्री मिलाकर सोते समय बच्चे को दें।
बच्चे को आलू, हरे चने, चॉकलेट, चाय, कॉफ़ी और मसालेदार खान पान, जिससे पेट में गैस बनता है, का सेवन न करायें। सोने से कुछ घंटे पहले तक किसी भी तरह के तरल पदार्थ का सेवन न करायें।
सोने से दो तीन घंटे पहले बच्चे को अपना मूत्राशय खाली करने को कहें। फिर उसके सोने के दो या तीन घंटे बाद का अलार्म लगाकर रखें ताकि उसे पेशाब करने के लिए जगाया जा सके।
कभी कभी परिवार के किसी सदस्य या प्रिय मित्र की मृत्यु, माता-पिता का संबंध विच्छेद वगैरह, बच्चों में उच्च तनाव की वजह बनते हैं और नींद में बिस्तर गीला करने के कारण बन सकते हैं।
बच्चे की भावनाओं को समझने के प्रयास करें और उनसे बचने के लिए सकारात्मक कदम उठायें इससे पहले कि वह भावनाएं तनाव बनकर नींद में मूत्रत्याग के ज़रिये निष्काषित हों।
नियमित आहार में अम्लाकी,अदरक, अजवाइन, जीरा, पुदीना और तुलसी वगैरह शामिल करें। ब्राह्मी, शंखपुष्पी, जतमंसी वगैरह जैसी तनाव कम करने वाली औषधियों भी काफी प्रभावी होती हैं।
सोने से पहले एक चम्मच शहद के प्रयोग से भी नींद में बिस्तर गीला करने पर नियंत्रण पाया जा सकता है हालांकि इन औषधियों का प्रयोग करने से पहले एक बार चिकित्‍सक की सलाह जरूर ले लें।

बच्चे के पेट में कीड़ों का पता ऐसे चलेगा
आमतौर पर कई बार बच्चों के पेट के कीड़ों को लेकर अभिभावक संशय में रहते हैं। शिशु के साथ दिक्कत ज्यादा होती है। ऐसे में माता-पिता को अपने बच्चों के कुछ लक्षणों पर ध्यान देना चाहिये। अगर आपका बच्चा बहुत छोटा है और आपको लगता है कि उसके पेट में कीड़े हो सकते हैं लेकिन आप उसके लिए आश्वस्त नहीं हैं तो कुछ सामान्य से लक्षणों पर ध्यान दें।
कीड़ें होने के लक्षण
वास्तव बच्चे के मल से अजीब बदबू आती है तो संभवतः उसके पेट में किसी प्रकार का संक्रमण है।
सुबह होते-होते ये कीड़े गुदा के पास पहुंच जाते है, जिससे बच्चों को गुदा क्षेत्र में खुजली या बेचैनी होती है। आसतौर पर छोटे बच्चे इस खुजली काफी परेशान होते हैं और रोने तक लगते हैं।
यदि आपके बच्चे के बार-बार पेट में दर्द हो रहा या फिर वो बेचैनी और खुजली की वजह से ठीक तरह से सो भी नहीं पा रहा है तो आपको समझ जाना चाहिए कि उसके पेट में कीड़े हैं।
त्वचा पर रैशेज़ किसी त्वचा संक्रमण या गंदगी के कारण् भी हो सकते हैं लेकिन कभी-कभी पेट में कीड़ो के कारण हाथ या पैर में लाल-लाल रैशेज़ नजर आने लगते हैं।
कीड़ों को इस प्रकार समाप्त करें
अजवायन का सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। इसके लिए अजवायन का चूर्ण आधा ग्राम और उतना ही गुड़ में गोली बनाकर दिन में तीन बार मरीज को दें। अजवायन में एंटी-बैक्‍टीरियल तत्‍व पाये जाते हैं जो कीडों को समाप्‍त कर देते हैं। अजवायन का सेवन 2-3 दिन करने पर कीड़े पेट से पूरी तरह से समाप्‍त हो जायेंगे।
काला नमक और आधा ग्राम अजवायन मिला लीजिए, इसे रात के समय रोजाना गर्म पानी से लेने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं। अगर बड़ों को यह समस्‍या है तो काला नमक और अजवायन दोनों को बराबर मात्रा में लीजिए। सुबह-शाम इसका सेवन करने से पेट के कीड़े दूर हो जायेंगे।
अनार के छिलकों को सुखाकर इसका चूर्ण बना लीजिए। यह चूर्ण दिन में तीन बार एक-एक चम्मच लीजिए। कुछ दिनों तक इसका सेवन करने से पेट के कीड़े पूरी तरह से नष्‍ट हो जाते हैं।
नीम के पत्‍तों का सेवन करने से पेट की हर तरह की समस्‍या दूर हो जाती है। नीम के पत्‍ते एंटी-बॉयटिक होते हैं जो पेट के कीड़ों को नष्‍ट कर देते हैं। नीम के पत्‍तों को पीसकर उसमें शहद मिलकार पीने से जल्‍दी फायदा होता है और कीड़े नष्‍ट हो जाते हैं। सुबह के वक्‍त इनका सेवन करना अधिक फायदेमंद होता है।
टमाटर का प्रयोग खाने का स्‍वाद बढ़ाने के साथ-साथ पेट के कीड़ों को नष्‍ट करने के लिए कर सकते हैं। टमाटर को काटकर, उसमें सेंधा नमक और कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर इसका सेवन कीजिए। इस चूर्ण का सेवन करने के बाद पेट के कीड़े मर कर बाहर निकल जाते हैं।

बच्चों की रोल मॉडल बनें
महिलाओं को घर के कामकाज के साथ ही बच्चों को भी संभालना होता है। कामकाजी महिलाओं के लिए यह काम और भी कठिन हो जाता है। बच्चों का पालन पोषण करना कोई आसान काम नहीं है। सही समय पर उनकी गलतियो को पहचान कर सुधारना आपका फर्ज होता है। कभी-कभार डांट से बचने या किसी ओर कारण से बच्चे झूठ बोल देते है। शुरू-शुरू में छोटी-मोटी बात पर झूठ बोलना बाद में बच्चों की आदत बन जाता है। इसलिए आपका फर्ज है कि उन्हें सही तरीके से समझा कर उनकी इस आदत को दूर करें। जरूरी नहीं कि इसके लिए आप डांट या मार का सहारा लें। आप कई ओर तरीके अपना बच्चे को झूठ बोलने से रोक सकती है।
बच्चे ज्यादातर आदतें अपने अभिभावकों से ही सीखते है। ऐसे में अगर आप उनके सामने छोटी-मोटी बातों को लेकर झूठ बोलेंगे तो वो भी ऐसा ही सीखेंगे। इसलिए बच्चों के सामने झूठ बालने की बजाए उनके लिए रोल मॉडल बनें।
अक्सर बच्चों के कुछ गलत करने पर आप उन्हें डांटने लग जाते है। इससे बच्चे डर कर आप से झूठ बोलने लग जाते है। इसलिए बच्चे अगर कोई गलती करें तो उन्हें डांटने या मारने की बजाए प्यार से समझाएं। इससे बच्चे का आप पर विश्वास बढ़ेगा और वो आपके खुद आकर अपनी गलती बता देगा।
बच्चे की किसी गलती पर उसके साथ बैठकर उसका सही हल निकालें। इससे उसका आपके प्रति भरोसा बढ़ेगा और वो आपसे झूठ बोलने की बजाए सारी बातें आपको बताएगा, फिर चाहें वो स्कूल या दोस्तों से जुड़ी क्यों न हो।
अगर बच्चा आकर आपके सामने अपनी गलती मानते है तो उन्हें डांटे नहीं। इसकी बजाए उसके सच बोलने की तारीफ करें और उन्हें गलती का अहसास करवाएं। इससे वो आगे से झूठ नहीं बोलेंगे।

इस प्रकार होगा बच्चों का तेजी से विकास
सभी अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चे का तेजी से विकास हो पर इसके लिए उन्हें अपनी ओर से भी प्रयास करने होंगे।
सबसे जरूरी यह है कि घर में एक सकारात्मक माहौल तैयार करें। इस प्रकार का माहौल बच्चों के पालन-पोषण में एक बड़ी भूमिका निभाता है। आपको सही तरह का माहौल तैयार करना चाहिए, जहां खुशी, प्यार, परवाह और अनुशासन की एक भावना आपके अंदर भी और आपके घर में भी हो। आप अपने बच्चे के लिए सिर्फ इतना कर सकते हैं कि उसे प्यार और सहारा दे सकते हैं। उसके लिए ऐसा प्यार भरा माहौल बनाएं जहां बुद्धि का विकास कुदरती तौर पर हो। एक बच्चा जीवन को बुनियादी रूप में देखता है। इसलिए आप उसके साथ बैठकर जीवन को बिल्कुल नयेपन के साथ देखें, जिस तरह वह देखता है।
बहुत से लोग यह मान लेते हैं कि जैसे ही बच्चा पैदा होता है, शिक्षक बनने का समय शुरू हो जाता है। जब एक बच्चा आपके घर में आता है, तो यह शिक्षक बनने का नहीं, सीखने का समय होता है।जरूरी नहीं है कि आपका बच्चा जीवन में वही करे, जो आपने किया। आपके बच्चे को कुछ ऐसा करना चाहिए, जिसके बारे में सोचने की भी आपकी हिम्मत नहीं हुई। तभी यह दुनिया आगे बढ़ेगी और उपयोगी चीज़ें घटित होंगी।
मानव जाति की एक बुनियादी जिम्मेदारी है, कि वे ऐसा माहौल बनाए जिससे इंसानों की अगली पीढ़ी आपसे और हमसे कम से कम एक कदम आगे हो। यह बहुत ही अहम है कि अगली पीढ़ी थोड़ी और खुशी से, कम डर, कम पक्षपात, कम उलझन, कम नफरत और कम कष्ट के साथ जीवन जिए। हमें इसी लक्ष्य को लेकर चलना चाहिए।
कुछ माता-पिता अपने बच्चों को खूब मजबूत बनाने की इच्छा या चाह के चलते उन्हें बहुत ज्यादा कष्ट में डाल देते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे वह बनें जो वे खुद नहीं बन पाए। अपने बच्चों के जरिये अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने की कोशिश में कुछ माता-पिता अपने बच्चों के प्रति बहुत सख्त हो जाते हैं। दूसरे माता-पिता मानते हैं कि वे अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं और अपने बच्चों को इतना सिर चढ़ा लेते हैं कि उन्हें इस दुनिया में लाचार और बेकार बना देते हैं।
सभी बच्चों पर एक ही नियम लागू नहीं होता। हर बच्चा अलग होता है। यह एक खास विवेक है। इस बारे में कोई सटीक रेखा नहीं खींची जा सकती कि कितना करना है और कितना नहीं करना है। अलग-अलग बच्चों को ध्यान, प्यार और सख्ती के अलग-अलग पैमानों की जरूरत पड़ सकती है।
उसे अपने तरीके से रहने दें
अगर माता-पिता अपने बच्चों की वाकई परवाह करते हैं, तो उन्हें अपने बच्चों को इस तरह पालना चाहिए कि बच्चे को माता-पिता की कभी जरूरत न हो। प्यार की प्रक्रिया हमेशा आजाद करने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए, उलझाने वाली नहीं। इसलिए जब बच्चा पैदा होता है, तो बच्चे को चारों ओर देखने-परखने, प्रकृति के साथ और खुद अपने साथ समय बिताने दें। प्यार और सहयोग का माहौल बनाएं।

बच्चों को इस प्रकार करायें परीक्षा की तैयारी
परिक्षाएं का मौसम आ रहा है और ऐसे में बच्‍चों के साथ ही उनके अभिभावकों पर भी दबाव रहता है। परीक्षा में बेहतर अंकों के लिए बच्चे साल भर जो तैयारी करते हैं उसका परिणाम बेहतर रहे इसके लिए बच्चों को परीक्षाओं के दौरान तनावरहित रहना चाहिये। इस दौरान अभिभावकों पर भी अहम जिम्मेदारी रहती है। उन्हें ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहिये जिससे बच्चों का मनोबल कमजोर हो। कई बार आत्मखविश्वास की कमी और और तनाव के कारण बच्‍चे अपना उत्‍तर गलत कर देते हैं। उन हालातों में परिणाम क्‍या होगा और कम नंबर आए तो मम्‍मी-पापा क्‍या कहेंगे, इन सब सवालों के कारण बच्‍चे मानसिक रूप से परेशान रहते हैं। ऐसे में अभिभावकों को परीक्षा के समय अपने बच्‍चों का साथ दोस्‍तों की तरह साथ देना चाहिये और उन्‍हें बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित करना चाहिये।
इस प्रकार करें बच्चों की सहायता
बच्‍चे की परीक्षा के 2-3 हफ्ते से पहले ही तैयारी करना शुरु कर दें। उनका पूरा पाठयक्रम देख कर यह निर्णय लें कि उन्‍हें कहां से तैयारी शुरु करनी है।
देर करने से बच्‍चे परीक्षा का समय करीब आते-आते घबराने लगेगें। अच्‍छा होगा कि आप सबसे पहले उन बिंदुओं पर ध्‍यान दें जिसमें आपका बच्‍चा कमज़ोर है।
कामकाजी पेरेंट्स बच्‍चों के ऊपर ज्‍यादा ध्‍यान नहीं दे पाते इसलिए वह अपने बच्‍चों को प्राइवेट ट्यूशन में भेज कर पढ़वाते हैं। इसलिए जब बच्‍चे वापस पढ़ कर आएं तब उनसे क्‍लास में क्‍या-क्‍या पढ़ाया गया है, जरुर पूछें।
जो माताएं बाहर काम कारती हैं, वह घर से निकलने से पहले अपने बच्‍चे को होमवर्क दे कर जाया करें। जब वापस आएं तो उसका होतवर्क जरुर देखें और अगर काम अच्‍छा हो तो उसकी तारीफ भी करें। इसे बच्‍चे का मनोबल बढ़ता है और उसे परीक्षा का दबाव झेलने की ताकत भी आती है।
उसका हमेशा लिखित टेस्‍ट लेती रहा करें। यह एक अच्‍छा माध्‍यम है परीक्षा की तैयारी करने का। सबसे पहले अपने बच्‍चे को एक पाठ रटने के लिए बोलें और फिर उससे वह पाठ पूरा सुने। जब बच्‍चा वह पाठ ठीक से सुना दे तब दूसरे दिन उसका रिटन टेस्‍ट लें।
अगर आपको लगता है कि बच्‍चा मन लगा कर तैयारी नहीं कर रहा है तो उसके प्रति थोड़ा सा सख्‍त व्‍यावहार अपनाएं। उसे परीक्षा में फेल होने के प्ररिणाम बताएं जिससे वह पढ़ाई के प्रति गंभीर हो जाए पर कभी भी बच्‍चे को मारे-पीटे नहीं वरना वह निराश हो जाएगा और पढ़ाई के प्रति उसकी रुचि घट जाएगी।
रिवीजन बहुत जरुरी है। इससे बच्‍चे को पाठ याद रखने में बहुत मदद मिलेगी। हर दूसरे दिन बच्‍चे से पुराना पढ़ाया गया पाठ पूछें। जिस दिन बच्‍चा परीक्षा देने के लिए जा रहा हो तब उसको सुबह जल्‍दी उठा दें और रिवीजन करने को बोलें।

बच्चों को छोटी छोटी बातों पर सजा देना ठीक नहीं
No Imageकई बार माता-पिता बच्चों को बेहतर बनाने के लिए उन्हें छोटी से छोटी गलती पर सजा देने लगते हैं। जो ठीक नहीं है बच्चों को बच्चा ही रहने दें उन्हें सुपर किड बनाने के फेर में न रहें। हममें से शायद ही कोई ऐसा हो जिसने अपने बचपन में सामान फैलाने, स्कूल में पेंसिल बॉक्स खोने या खिलौने तोड़ देने जैसी तमाम गल्तियां न की हों। हमें समझना होगा कि बच्चे, बच्चे होते हैं और उनमें हमारी तरह हर बात की अच्छाई-बुराई की समझ नहीं होती इसलिए जरूरी है कि बच्चे को डांटने के बजाय उसके बर्ताव को अच्छी तरह से समझें, उसकी गलती के लिए उसे प्यार से समझाएं और उसकी गलती का अहसास दिलाएं जिससे बच्चा ऐसी गलती दुबारा करने से बच सके।
बच्चों को छोटी-छोटी गल्तियों की सजा देना भी हमेशा ठीक नहीं होता। कई बार ऐसा करना उल्टा असर भी करता है।
आईए जानें कि बच्चों को हर छोटी गलती पर सजा देना कैसे खतरनाक हो सकता है।
बच्चों के छोटी-छोटी गल्तियों पर सजा देने के दुष्प्रभाव
बच्चे में बुरी भावना को जन्म देता हैः बार-बार सजा देने से बच्चे के अंदर आपके लिए बुरी भावना आ सकती है और हो सकता है कि वह आपसे नफरत करने लगे।
बच्चा ढीठ हो जाता हैः बार-बार उसे डांटने, मारने-पीटने पर बच्चा खुद को इसके लिए दिमागी रूप से तैयार कर लेता है और फिर जरूरी नहीं कि वह आपकी हर बात मानें।
बच्चा बागी हो सकता हैः बच्चे को सजा देना उसके बर्ताव को बागी बनाने के साथ हिम्मती भी बना देता है। वह आपको पलट कर जबाब दे सकता है।
बच्चे को चिढ़चिढ़ा और जिद्दी बना देता हैः बच्चा छोटी-छोटी बातों पर चिढ़चिढ़ाने लगता है और अपनी बात मनवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
बच्चे में डर या फोबिया पैदा करता हैः कुछ बच्चों का दिमाग कोमल होता है। ऐसे बच्चों को बार-बार डांटने या मारने-पीटने से उनके दिमाग पर बड़ा अघात लगता है और बच्चे डर या फोबिया के शिकार हो जाते हैं। यह डर या फोबिया उनके मन में घर कर लेता है जो उनके दिमागी विकास को रोक सकता है।
बच्चे में हीन भावना पैदा करता हैः बच्चे को दूसरे भाई-बहन के सामने या उसके दोस्तों के सामने सजा देना उसके अंदर हीन भावना पैदा कर देता है जिससे वह दब्बू होने लगता है और घर के बाहर दोस्तो-यारों के साथ या दूसरों लोगों के साथ होने पर असहज महसूस करता है।
क्या सजा देना ही एक मात्र रास्ता है?
जरूरी नहीं की बच्चे को हर गलती या उसकी छोटी से छोटी गलती के लिए सजा दी जाए इसलिए सजा देने से पहले विचार करें कि क्या यह वाकई जरूरी है और ऐसा करने से क्या आपके नुकसान की भरपाई हो सकती है।

परीक्षा के दिनों में ऐसे रहें तनाव रहित
अगले माह से बच्चों की परीक्षाएं शुरु होने वाली हैं। यह समय सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं अभिभावकों के लिए भी तनावपूर्ण होता है लेकिन इस तनाव को रुटीन में थोड़ा-सा ध्‍यान रखकर कम किया जा सकता है।
इस दौरान बच्चों के खाने ओर स्वास्थ्य का विशेष ध्यान देना चाहिये। परीक्षा के समय आप अपने बच्‍चे को राहत भरा माहौल देने की कोशिश्‍ा करें। बच्‍चे को तैयारी करने पर ध्‍यान देने की हिदायत दें न कि परीक्षा में कैसा प्रदर्शन करना है।
परीक्षा के दिनों में नाश्ता करना न भूलें क्यों यह शरीर को उर्जा देने के साथ ही ताजगी भी देता है।
समय पर सोयें : परीक्षा के दिनों में हमेशा अपनी नींद पूरी करें। परीक्षा के दौरान अक्‍सर भूलनें की समस्‍या आती है, जिसकी वजह पूरी नींद नहीं लेना होता है। अभिभावक भी इस बात का खास ख्‍याल रखें कि बच्‍चे नींद लेने में कोई कोताही नहीं बरतें।
परीक्षा के समय रात में जागकर पढ़ने के दौर चाय-कॉफी का सेवन न करें। इसका असर अच्‍छा नहीं होता। लिहाजा इसे लेने से जितना बचें उतना बेहतर है।
फास्‍ट फूड बच्चों को पसंद रहता है पर परीक्षा के समय में बीमार नहीं पड़ने के लिए फास्‍टफूड से दूरी बनाकर रखें। इन्‍हें न खाने की एक वजह यह भी है कि इसे लेने के बाद आप शरीर में आलस महसूस करते हैं और पढ़ाई करने और किसी चीज को याद रखने में परेशानी होती है।
बच्चों का मनोबल बढ़ायें
परीक्षा के समय बच्चों को मानसिक संबल की बहुत जरुरत होती है। इससे उन्हें बहुत लाभ होता है। उनमें एक आत्मविश्वास पैदा होता है जिससे परीक्षा में वे अच्छे अंक लाते है। वहीं बच्चों को सहयोग करके अभिभावकों को भी ख़ुशी और आत्म सन्तुष्टि मिलती है। यह अभिभावकों का फर्ज भी होता है। परीक्षा के समय बच्चे मेहनत से पढ़ाई करते है। उन्हें मेहनत करते देख कर ख़ुशी होती है।
ऐसे समय बच्चे पर दबाव होता है। उन्हें खुद के रिज़ल्ट की तो चिंता होती ही है साथ में उन्हें माता पिता , स्कूल के टीचर की उम्मीदों को भी पूरा करना होता है। माता पिता की थोड़ी सी मदद से परीक्षा की तैयारी अच्छे से करके बच्चे अच्छे नंबर ला सकते है।
माता पिता को बच्चे की बहुत चिंता होती है। मदद करना चाहते है पर समझ नहीं आता किस प्रकार मदद करें ताकि उन्हें अच्छी सफलता मिले। माता पिता को यह भी चिंता होती है की बच्चे ने रिविज़न अच्छे से किया है या नहीं या बच्चे का साल ख़राब न हो जाये। यदि बच्चा बाहर पढ़ रहा हो तो चिंता और भी बढ़ जाती है। खासकर माँ को बच्चों के खाने पीने की चिंता ज्यादा होती है। यदि कुछ कर नहीं पाते तो मन में बहुत दुःख होता है। बच्चों को अपनी चिंता ज्यादा दिखा भी नहीं सकते क्योंकि इससे वे और दबाव में आ सकते है। यदि किसी तरह बच्चे की तकलीफ दूर कर पायें खुद का तनाव भी दूर होता है।
परीक्षा के समय बच्चों की मदद कैसे करें
परीक्षा का समय बच्चों को मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता है। यह समय उनके जीवन में आने वाली कड़ी और बड़ी परीक्षाओं का सामना करने के लायक विश्वास पैदा करता है। परीक्षा के तनाव को जिंदगी जीने की सीख का महत्वपूर्ण हिस्सा मानना चाहिए। उनकी हर छोटी से छोटी मुश्किल में आगे होकर मदद करने से वे कभी आत्म निर्भर नहीं बनेंगे। उन्हें अपनी मुश्किलों से खुद बाहर निकलना सिखायें। उन्हें रास्ता दिखाकर उस पर खुद चलना सिखायें। रास्ते की हर रूकावट दूर करके उन्हें पंगु न बनायें। यह बच्चों के विकास में बाधा बनता है।
शरीर और दिमाग का सही तरीके से काम करने के लिए पौष्टिक आहार बहुत जरुरी होता है। अतः परीक्षा शुरू होने से पहले ही बच्चों के खाने पीने में पौष्टिकता का ध्यान रखें। नाश्ते , दोपहर का खाना और रात का खाना सभी में संतुलन होना चाहिए। रात को थोड़ा हल्का खाना होना चाहिए ताकि पढाई अच्छे से हो सके। ऐसे समय जंक फूड नुकसान कर सकते है।

बच्चों का वजन बढ़ाने करें ये उपाय
बढ़ते बच्चों को सही आहार मिलना बेहद जरुरी है पर कई बार देखा गया है कि बच्चे खाना नहीं खाते। ऐसे मे बच्चों का विकास प्रभावित होता है। इसलिए उन्हें समय पर पौष्टिक आहार दें।
बच्चों को केवल ऐसे आहार नहीं दें जिससे उन्हें केवल पोषण मिले।
इसके बदले बच्चों को ऐसे आहार दें जो पोषण के साथ-साथ बच्चों का भूख भी बढ़ाये।
जी हाँ – ऐसे आहार हैं, जिन्हें खाने से शिशु की भूख बढ़ती है। आप के लिए सबसे महत्वपूर्ण ये है की आप का बच्चा स्वस्थ रहे और साथ में तंदरुस्त भी। बच्चे के पोषण और विकास के लिए आप का चिंतित होना लाजमी है।
ऐसे में सवाल ये उठता है की बच्चे को क्या खिलाएं।
मलाई सहित दूध बच्चे का वजन अगर कम है तो उसे मलाई वाला दूध पिलाना सही माना जाता है। अगर दूध पीने से बच्चा मना करें तो शेक, स्मूदी या चॉक्लेट पाउडर मिला कर देना चाहिए।
अंडे प्रोटीन से भरपूर होते हैं। पीली जर्दी को 8 वें महीने और पूरे अंडे एक वर्ष की उम्र से देने शुरू किये जा सकते हैं।
आलू वजन बढ़ाने के लिए उपयोगी होते हैं। ये कार्बोहाइड्रेट और ऊर्जा का बहुत अच्छा स्रोत है। आप इसे आलू पनीर या चीज़ मैश के रूप में दे सकते है।
शकरकंद फाइबर, पोटेशियम, विटामिन ए,बी और सी से भरपूर होते हैं। इन्हें खाने से वजन भी बढ़ता है। बच्चों को दूध में मिला कर इसे दिया जा सकता है।
शिशुओं के लिए आयरन से भरपूर आहार
आयरन-से-भरपूर-आहार
रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और स्वसस्थ रखने के लिए अपने बच्चे को दें आयरन से भरपूर भोजन
सभी प्रकार के ड्राई फ्रूट्स और विशेषकर नट्स विटामिन से भरपूर होते हैं। इनका पाउडर बनाकर बच्चों को दूध में मिलाकर पिलाया जा सकता है।
केला एनर्जी का बेहतरीन स्त्रोत होता है। दूध में मिला कर इसे देने से बच्चों का वजन बढ़ता है। एक साल से अधिक के बच्चों के लिए केले का शेक भी एक अच्छा विकल्प होता है।
दाल में प्रोटीन काफी होता है। छोटे बच्चों को दाल का पानी अवश्य पिलाना चाहिए।
पूरे क्रीम का दही भी एक उपयुक्त विकल्प है। बाजार में उपलब्ध फल वाला दही / फ्रुटी दही खरीदने से बचें क्यूकी उसमें बहुत अधिक मात्रा में शक्कर मिलाई जाती है। इसके बजाय दही के साथ कुछ फलों का मिश्रण बना कर अपने बच्चो को दीजिए। श्रीखंड, दही की एक बढ़िया रेसिपी / डिश है जो की शिशुओं और बच्चों को दी जा सकती है।
शाम नाश्ते के रूप में पनीर का एक छोटा सा टुकड़ा भी आपकी मदद कर सकता हैं। घर का बना पनीर अथवा कोटेज चीज़ एक सर्वश्रेष्ठ विकल्प है। ब्रोकोली पनीर मैश, आलू पनीर मैश, अंडा चीज़ मैश के रूप में भी पनीर को दिया जा सकता है।
घी और गुड़ के साथ रागी का प्रयोग बच्चों का वजन बढ़ाने में मदद करता है।
आप घी को मक्खन के समान प्रयोग में ला सकते हैं।
मूंगफली का मक्खन वजन बढ़ाने के लिए एक बहुत अच्छा स्रोत है। आपका शिशु यदि एक वर्ष से अधिक आयु का है, तो आप एक रोटी या टोस्ट पर मूंगफली का मक्खन एक चम्मच फैला दीजिए और अपने बच्चे को खाने के लिए दीजिए।
बच्चों को हरी सब्जियां खिलाने की आदत डालें। हरी सब्जियों में भरपूर पोषण के साथ पाचन तंत्र को साफ रखने की भी क्षमता होती है।
बच्चों के विकास के लिए जिंक एक बेहद अहम पोषक तत्व होता है। जिंक की कमी के कारण बच्चों को भूख कम लगती है। कोशिश करें कि बच्चें को जिंक से भरपूर भोजन दें जैसे तरबूज के बीज, मूंगफली, बींस, पालक, मशरूम और दूध आदि।
वजन बढ़ाने के लिए प्रोटीन का सेवन जरूरी है इसलिए अपने आहार में चिकन, मछली, अंडा, दूध, बादाम व मूंगफली आदि को शामिल करें। इसके अलावा कार्बोहाइड्रेट भी वजन बढ़ाने में मददगार होता है जैसे पास्ता, ब्राउन राइस, ओटमील आदि। इन सबके साथ फलों व सब्जियों का सेवन भी जरूर करें।
शहद वजन संतुलित करता है। अगर आपका वजन अधिक हो, तो शहद उसे कम करने में मदद करता है और अगर वजन कम हो तो उसे बढ़ाने का काम करता है। रोज सोने से पहले या नाश्ते में दूध के शहद का सेवन आपका वजन बढ़ा सकता है। इससे आपकी पाचन शक्ति भी अच्‍छी रहती है।
जैतून के तेल में अच्छा वसा होता है। आप जैतून के तेल में बच्चे के भोजन को पका सकते हैं।
यह फल भी वसा / फैट में समृद्ध और वजन बढ़ाने के लिए एक उत्कृष्ट भोजन है। दूध के साथ या सादे तरीके से मैश करके आप इसे परोस सकते हैं।
सब्जियों का पतला सूप या टमाटर का सूप बच्चों के लिए बेहद फायदेमंद होता है। इसके साथ सूजी का हलवा भी बेहद पौष्टिक और वजन बढ़ाने में मददगार होता है।
चीकू एक चीनी समृद्ध फल है। आप किसी भी अन्य फलों अथवा मिल्क शेक आदि के साथ या सादे चीकू की प्यूरी या चीकू खीर दे सकते हैं।
उपरोक्त आहार के साथ यह बात बिलकुल नहीं भूलनी चाहिए कि बच्चे के लिए, मां के दूध से अधिक पौष्टिक कुछ नहीं होता है। अगर बच्चे का वजन नहीं बढ़ रहा है तो उसके दूध पीने की क्रिया पर भी ध्यान देना चाहिए।

बच्चों में सामाजिक गुणों का करें विकास
पढाई के साथ ही बच्चों के सपूर्ण विकास के लिए उनमें सामाजिक गुणों का विकास भी जरुरी है।
बच्चे को सामाजिक बनाने के लिए बातचीत की कला और भावनात्मक संयम की ज़रूरत होती है। इन गुणों को विकसित करने की ज़िम्मेदारी अभिभावकों की होती है, पर अभिभावकों के सामने अहम् समस्या यह होती है कि इन गुणों को किस तरह से विकसित किया जाए? हम यहां पर कुछ ऐसी ही महत्वपूर्ण बातें बता रहे हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर आप अपने बच्चे को सक्रिय बना सकते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चे जन्म से ही सामाजिक होते हैं। उनमें प्राकृतिक रूप से सामाजिक होने का गुण होता है, इसलिए उनका सबसे पहला सामाजिक जुड़ाव अपने माता-पिता से होता है, जो उनके लिए इमोशनल कोच की भूमिका अदा करते हैं। यही भावनात्मक जुड़ाव बच्चों में भावनात्मक संयम और बातचीत करने की कला विकसित करती है, जो उन्हें सोशल बनाने में मदद करती है। इसलिए शुरुआत जल्दी करें।
बच्चों को अलग-अलग तरह से खेलों में शामिल करें। वहां पर आपका बच्चा अपने हमउम्र बच्चों के साथ आरामेद महसूस करेगा। इन खेलों के जरिये बच्चा दूसरे बच्चों के साथ उसका जुड़ेगा। इस दौरान वह अपने को स्वतंत्र महसूस करेगा, जिसके कारण बच्चे का सामाजिक विकास तेज़ी से होगा।
आउटडोर गेम्स पर दें जोर
बच्चे को खिलौनों में व्यस्त रखने की बजाय आउटडोर गेम्स खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। आउटडोर गेम्स खेलते हुए वह अन्य बच्चों के संपर्क में आएगा और नई-नई बातें सीखेगा, जिससे बच्चे के सामाजिक और मानसिक विकास में वृद्धि होगी।
शेयरिंग की आदत डालें
खेलों के दौरान अपने बच्चे को खिलौने या फूड आइटम्स आदि चीज़ों को शेयर करने को कहें। उसे साझा करने का महत्व समझाएं।
शिष्टाचार सिखायें
बच्चों को एक्टिविटीज़ में व्यस्त रखने के साथ-साथ ‘प्लीज़’, ‘सॉरी’ और ‘थैंक्यू’ जैसे बेसिक मैनर्स और एटीकेट्स भी सिखाएं। पार्टनर्स जिस तरह से आपस में बातचीत करते हैं, बच्चे भी अपने फ्रेंड्स के साथ उसी तरी़के से बात करते हैं।
शोधों में भी यह बात साबित हुई है कि जो अभिभावक अपने बच्चों के साथ बहुत अधिक बातचीत और विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, उन बच्चों का सामाजिक विकास तेज़ी से होता है। समय के साथ-साथ उन बच्चों में बेहतर बातचीत करने की कला भी विकसित होती है। अभिभावकों को भी चाहिए कि वे बच्चों के साथ हमेशा आई-कॉन्टैक्ट करते हुए बातचीत करें। जब भी बच्चे दूसरे लोगों से बातें करें, तो उनकी बातों को ध्यान से सुनें।
सबसे पहला और महत्वपूर्ण काम है कि वे बच्चे में नकारात्मकता को हावी न होने दें। बच्चे के साथ बातचीत करते हुए उसके विचारों व इच्छाओं को जानने का प्रयास करें और उसकी भावनाओं की कद्र करें।
किशोर उम्र के बच्चों पर पैनी नज़र रखें, लेकिन हर समय उनके आसपास मंडराने की कोशिश न करें। बच्चों को भी स्पेस की ज़रूरत होती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनमें समझदारी भी आने लगती है। ज़्यादा रोक-टोक करने की बजाय उन्हें अपने निर्णय लेने दें, बल्कि निर्णय लेने में उनकी मदद भी करें। जो अभिभावक अपने बच्चों के आसपास मंडराते रहते हैं, वे अपने बच्चों में सामाजिक कौशल को विकसित नहीं होने देते।
जिन अभिभावकों के पैरेंटिंग स्टाइल में नियंत्रण अधिक और प्यार कम होता है, उनके बच्चे अधिक सोशल नहीं होते। अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि जो पैरेंट्स दबंग क़िस्म के होते हैं, उनके बच्चों का स्वभाव अंतर्मुखी होता है और इनके दोस्त भी बहुत कम होते हैं। ऐसे अभिभावक अपने बच्चे को बातचीत के दौरान हतोत्साहित करते हैं।समय के साथ-साथ ऐसे बच्चे अनुशासनहीन, विद्रोही और अधिक आक्रामक हो जाते हैं।
समय-समय पर बच्चे के दोस्तों के बारे में पूरी जानकारी रखें ताकि वह गलत संगत में न पड़े।
बाहरी लोगों को समझने की कला विकसित करें ताकि वह धोखेबाजी का शिकार न हो।

सच्चे दोस्त की पहचान बतायें
सच्चा दोस्त इस संसार में मिलना आसान नहीं होता। हर बच्चे को सच्चे दोस्त की जरुरत होती है। इसका कारण है कि दोस्ती का रिश्ता सबसे करीबी होता है। यह रिश्ता स्वयं बनाता हैं। बाकी सारे रिश्ते तो जन्म के साथ ही बन जाते हैं। उन से दोस्ती करें जो दिल व दिमाग से पवित्र हों।एक सच्चा दोस्त कभी भी गलत रास्ता नहीं दिखाता।
एक सच्चा दोस्त सदैव ही आपकी गलतियों को बताता है। सच्ची दोस्ती में अमीरी व गरीबी का मतलब नहीं होता
एक सच्चा दोस्त सदैव ही बिना किसी डर के आपको बुरी आदता से अवगत करवाता हैं।एक सच्चा दोस्त भले ही आपसे शारिरीक रूप से क्यों न दुर हो, लेकिन सदैव ही आपके करीब होने का एहसास करायेगा।एक सच्चा दोस्त सदैव ही आपसे बुरी आदतों को छुड़वाने का प्रयास करता हैं।एक सच्चा दोस्त ही बिना किसी डर के आपको गलतियों से भी अवगत करवाता हैं।एक सच्चा दोस्त ही अच्छें से अच्छें व बुरें से बुरें दिनों में भी सदैव ही आपके साथ रहता हैं। सच्चा दोस्त केवल एक होता है एक से ज्यादा नहीं। एक सच्चा दोस्त सदैव ही आपको मानसिक रूप से मजबूत बनाएगा।

इंटरनेट गेमिंग की आदत से बच्चों को बचायें
तकनीक के इस युग में मनोरंजन के नये-नये साधन हो गये हैं। अधिकांश बच्चे आजकल इंटरनेट पर ऑनलाइन गेम्स के दिवाने होते जा रहे हैं। हर सेंकड बदलती दुनिया और पल पल बढ़ता रोमांच रंग-बिरंगे थीम के साथ म्यूजिक का कॉम्बिनेशन कंप्यूटर या फिर मोबाइल की एक छोटी सी स्क्रीन पर एक ऐसा वर्चुअल वर्ल्ड होता है, जो बड़े-बड़ों को लुभाता है। फिर छोटे बच्चों का इनकी तरफ आकर्षित होना स्वाभाविक है।
दरअसल ऑनलाइन गेमिंग के दौरान स्क्रीन हर सेंकड नए अवतार में नजर आती है। रोमांच ज्यादा होता है। कई ऑनलाइन गेम्स मल्टीप्लेयर होते हैं, जिसमें अनजान बच्चे भी ग्रुप बनाकर एकसाथ गेम खेलते हैं।एक-दूसरे को हराने और जीतने की होड़ में बच्चे लगातार कई राउंड खेलते रहते हैं। 10 मिनट का गेम कब घंटे-दो घंटो में बदल जाता है बच्चों को पता ही नहीं चलता और यही से शुरू होता है गेमिंग एडिक्शन जो कि बढ़ते बच्चों के विकास के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
इंटरनेट गेमिंग की आदत इसलिए है खतरनाक
ज्यादा वक्त इंटरनेट गेम्स खेलने वाले बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता कम हो जाती है। ऐसे बच्चों का झुकाव ज्यादातर नेगेटिव मॉडल्स पर होता है। बच्चों में धैर्य कम होने लगता है। बच्चे पावर में रहना चाहते हैं। सेल्फ कंट्रोल खत्म हो जाता है।
कई बार बच्चे हिंसक हो जाते हैं। बच्चे सोशल लाइफ से दूर होकर अकेले रहना पसंद करने लगते हैं।बच्चे के व्यवहार और विचार दोनों पर इंटरनेट गेमिंग का असर देखा गया है। बच्चे मोटापे और डाइबिटीज का शिकार हो सकते हैं।
वहीं मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक अगर एक बार बच्चे को इंटरनेट गेमिंग की आदत लग जाती है तो फिर बिना इंटरनेट के रहना बच्चे के लिए कठिन हो जाता है। बच्चे इंटरनेट की जिद करते ही हैं। माता-पिता के मना करने पर कई बार बच्चे आक्रामक हो जाते हैं।
डिवाइस और गैजेट्स की वजह से बच्चे खेलने नहीं जाते और एक जगह बैठे रहने से उनमें मोटापा तेजी से बढ़ने लगता है। यहां तक बच्चे डाइबिटीज का भी शिकार हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि ऑनलाइन गेम्स खेलने वाला हर बच्चा गेमिंग एडिक्शन का शिकार होता है पर विशेषज्ञों के मुताबिक गेम खेलने का शौक कब आदत में बदल जाए, इसके लिए माता-पिता को बच्चे की गतिविधियों पर नजर बनाए रखना होगा।इस प्रकार बच्चों को इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन की आदत से बचायें।
माता पिता ये तय करें कि बच्चे को किस उम्र में कौन सा डिवाइस देना है। उन्हें व्यस्त रखने के लिए मोबाइल पर गाने न दिखाएं। बच्चों को इंटरनेट का इस्तेमाल पढाई सम्बन्धी जरुरी काम के लिए ही करने दें। अगर बच्चा इंटरनेट पर गेम खेलता है तो गेम्स खेलने का वक्त तय करें। आधे घंटे से ज्यादा इंटरनेट गेम्स न खेलने दें। आउटडोर गेम्स को बढ़ावा दें। अगर बच्चा रोजाना इंटरनेट पर ज्यादा वक्त बिता रहा है तो सतर्क हो जाइए। बच्चा गुमसुम रहने लगेगा और व्यवहार में बदलाव आएगा। बच्चा सोशल लाइफ से दूरी बनाकर अकेले रहना पसंद करेगा। बच्चे का रूटीन बदल जायेगा, खाने-पीने के साथ नींद भी डिस्टर्ब हो सकती है। गेम नहीं खेलने देने की वजह से बच्चा हिंसक भी हो सकता है। अगर आपका बच्चे में ऐसे लक्षण हैं तो बिना देरी करे मनोचिकित्सक से मिलिए। बच्चे का मानसिक और भावनकत्मक रूप से ध्यान रखिए।

सर्दियों में बच्चों पर खूब जचेंगे ये कपड़े
मौसम में बदलाव के साथ ही बच्चों के ड्रेसिंग सेंस में भी बदलाव आते हैं। वे इतने संवेदनशील होते हैं कि बदलते मौसम के साथ उन्हें भी इसके असर से बचा कर रखना पड़ता है। ऐसे में अभिभावकों को ध्यान रखना पड़ता है कि किस प्रकार बच्चे सर्दी से बचे रहने के साथ ही अच्छे भी दिखें।
आमतौर पर सर्दी बढ़ने के साथ ही शरीर पर कपड़ों के लेयर में भी कमी आने लगती है। बाहर जाने के लिए बच्चे को पूरी तरह से ढंक कर रखना बहुत जरुरी होता है।
कवर करके रखें
अपने छोटे बेबी को ऐसे कपड़े पहनायें कि उनकी पूरी बॉडी कवर हो सके। सुंदर हुडेड वाले ड्रेस सेलेक्ट करें।
और उन्हें क्युट बौने का लुक दें।
छोटे पैरों को बचा कर रखें
स्प्रिंग में उनके पैरों को ज्यादा से ज्यादा बचा कर रखें। पैरों में कंफर्टेबल कपडों के लेयर डाल कर रखें जिससे वे गर्म रहें।
सिर को ढ़ंक कर रखें
लाइट कॉटन हैट का सीजन है। किसी भी कॉटन का हैट उन्हें पहना कर रखें ये उन्हें गर्म रखेगा।
हुडीज का इस्तेमाल करें
हुडी स्वेटर या शर्ट में छोटे बच्चे बड़े ही क्युट लगते हैं। स्प्रिंग के लिए उन पर स्वेटशर्ट मटेरियल काफी सूट करेगा। इसे मौसम के अनुकूल लांग और शॉर्ट बाजू वाले किसी भी तरह के स्टाइल के साथ अपनायें।
डेनिम जैकेट
बच्चे डेनिम के जैकेट में भी बहुत क्युट नजर आते हैं। स्प्रिंग एक परफेक्ट सीजन है उन पर ये ट्राय करने के लिए।
कलरफुल अपनायें। अगर आप बेबी को व्हाइट और ग्रे कलर के कपड़े पहनाते हैं तो सर्दियों में कुछ पेस्टल और कलरफुल ड्रेसेस पहनाये।

सर्दियों में बच्चों को ज्यादा दें सूखे मेवे, फल, दूध
सर्दियों का मौसम सेहत बनाने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि इस समय भूख अच्छी लगती है पर इस दौरान
आए परिवर्तन का प्रभाव बच्चों पर सर्वाधिक पड़ता है। इसलिए उनका विशेष ध्यान रखना पड़ता है। सर्दी के मौसम में बच्चे जल्दी ही बुखार, अस्थमा, कफ आदि बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। इस मौसम में बच्चों का खास ख्याल रखना चाहिए ताकि वह ठीक रहें। सर्दियों में बच्चों के खानपान से लेकर उनके कपड़ों तक हर चीज में बदलाव करना जरूरी हो जाता है। इस मौसम में बच्चे की खास देखभाल करने से वह बेहतर स्वास्थ्य व सेहत को पाता है। इस मौसम में बच्चों को खट्टी व ठंडी भोजन सामग्री से परहेज कराएँ। यह सेहत बनाने का मौसम है अत: इस मौसम में बच्चों के भोजन में सूखे मेवे, फल, दूध आदि की मात्रा पहले से अधिक बढ़ाएँ।
मालिश करें
सर्दियों में ठंडी हवाओं के प्रकोप से बचने के लिए और शरीर को गर्म रखने के लिए बच्चों की मालिश करना बहुत जरूरी है। नहलाने से पहले बच्चों की मालिश करके यदि उन्हें कुछ देर धूप का आनंद उठाने के लिए बाहर बिठाया जाए तो यह बच्चों के लिए फायदेमंद होता है। नहाने के बाद धूप में ‍बिठाने से बच्चों को विटा‍मिन डी मिलता है परंतु ध्यान रहे कि बच्चों को नहलाने व कपड़े पहनाने के बाद ही धूप में ले जाएँ, जिससे वे सर्द हवा से बच सकें।
गर्म पानी दें
बदलते मौसम के साथ हमारी खानपान की आदतों में भी बदलाव आने लगता है। सर्दियों में अक्सर छोटे बच्चे पानी पीने से कतराते हैं। अत: हमें पानी को हल्का गर्म करके या किसी भी तरह बच्चों को पिलाते रहना चाहिए, जिससे उनके शरीर में
इस मौसम में बच्चों को खट्टी व ठंडी भोजन सामग्री से परहेज कराएँ। यह सेहत बनाने का मौसम है अत: इस मौसम में बच्चों के भोजन में सूखे मेवे, फल, दूध आदि की मात्रा पहले से अधिक बढ़ाएँ।
गर्म कपड़े पहनायें
फूलों से नाजुक बच्चों को सर्द हवाओं के प्रकोप से बचाने के लिए गर्म कपड़े पहनाना बहुत जरूरी है। सर्दियों में विशेष तौर पर बच्चों के लिए इनर, गर्म स्वेटर, स्लेक्स, हाथ-पैर के मोजे आदि बाजार में मिलते हैं। इस मौसम में बच्चों को ठंड से बचाना है तो उन्हें गर्म कपड़े जरूर पहनाएँ।

बच्चों को संक्रामक बीमारियों से बचायें
सर्दियों के मौसम में बच्चों को विशेष देखभाल की जरुरत पड़ती है। इस मौसम बच्चे जल्दी-जल्दी बीमार भी पड़ जाते है। डेंगू बुखार जैसी संक्रामक बीमारियों के चपेट में भी बच्‍चे जल्‍दी आ जाते हैं। डेंगू का वायरस एडीज मच्छर के काटने से फैलता है। डेंगू वायरस से सिर्फ वयस्क ही नहीं बल्कि बच्चे भी खासा प्रभावित होते है। डेंगू का जितना खतरा व्यस्कों में रहता है, उससे कहीं अधिक बच्चों में भी रहता है।
डेंगू से पीड़ित अधिकतर लोग अत्यंत कमजोरी अनुभव करते हैं। यह रोग होने के कुछ समय बाद तक रह सकता है।
डेंगू बुखार एडीज मच्छरों द्वारा फैलाए गए एक जैसे चार वायरसों द्वारा उत्पन्न होता है, जो दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय और निम्न उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आम रूप से पाए जाते हैं।
जब कोई मच्छर डेंगू वायरस से संक्रमित किसी व्यक्ति को काटता है, तो वह मच्छर स्वयं संक्रमित हो जाता है और जब यह मच्छर किसी अन्य व्यक्ति को काटता है, तो वह व्यक्ति डेंगू बुखार से ग्रस्त हो सकता है। संक्रमित मच्छर रोग के वाहक के रूप में कार्य करता है और इस प्रकार यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे में फैलता है।
डेंगू बुखार एक उष्णकटिबंधीय रोग है जो मच्छरों द्वारा वहन किये गए वायरस द्वारा होता है। यह वायरस बुखार, सिरदर्द, निशान, और शरीर में दर्द उत्पन्न कर सकता है। डेंगू बुखार के अधिकतर मामले मंद होते हैं। हालाँकि एक बार डेंगू बुखार का निर्धारण हो जाने के बाद, प्रतिदिन प्लेटलेट हेतु किये जाने वाले रक्त परीक्षण के माध्यम से रोगी पर निगाह रखी जानी चाहिए।
डेंगू बुखार के अधिकतर मामले मंद होते हैं; वे एक या दो सप्ताह में चले जाते हैं। एक बार बच्चों को यह रोग होने पर, वे खास उस प्रकार के वायरस के लिए प्रतिरक्षी हो जाते हैं।
रोग का निर्धारण चिकित्सीय परीक्षण और रक्त परीक्षण द्वारा होता है।

बच्चे को दें प्रौत्साहन
अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा एक बेहतर और सफल इंसान बने तो उसे प्रौत्साहन दें और उसकी बातों को ध्यान से सुनें। अपने बच्चे की ज़िन्दगी में एक असरदार प्रभाव छोड़ पाना आपकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। अगर आप अपने बच्चे की बात कभी नहीं सुनेंगे और हमेशा उन पर चिल्लाते रहंगे तो उन्हें लगेगा की आपको उनकी न ज़रुरत है न परवाह।
अपनी बातें सबके सामने रखना सिखाएं
अपने बच्चे को बात करने का प्रोत्साहन दें। उन्हें अपनी बातें सबके सामने रखना सिखाएं ताकि आगे चलके वे औरों से भी सही से बात कर पाएं। दोस्तों के सामने उसे डांटें नहीं। यह याद रखें की आपका बच्चा एक इंसान है जिसकी कुछ ज़रूरतें और चाहतें हैं। अगर वह ढंग से खाना नहीं खाता हो तो हमेशा खाते वक़्त उसे टोके नहीं। अगर आपने अपने बच्चे से वादा किया है की वो अच्छे से रहेगा तो उसे बाहर ले जायेंगे और घुमाएंगे तो अपना वादा भी पूरा करें। अगर आप बच्चे को इज्ज़त देंगे तभी बच्चा भी आपको वह इज्ज़त दे पायेगा जो आप चाहते हैं ।
हर कदम पर दें साथ
अपने बच्चे को बोलें की आप उसे प्यार करते हैं। अपने बच्चे की हर गतिविधि में शामिल रहे। यह बहुत मेहनत और परिश्रम का काम है पर अगर आप अपने बच्चे को उसका चरित्र और शौक विकसित करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहते हैं तो आपको उसका एक मज़बूत सहारा बनना पड़ेगा। इसका मतलब ये नहीं की आप साए की तरह बच्चे का पीछा करें बस उसके हर छोटे कदम में उसका साथ दें। एक बार आपका बच्चा स्कूल जाने लगे तो आपको मालूम होना चाहिए की वो कौनसी क्लास में है और उसकी अध्यापिकाओं का नाम क्या हैं। अपने बच्चे का गृहकार्य ख़त्म करने में उसकी मदद करें और कोई मुश्किल कार्य मिले तो वो करने में उसकी सहायता करें पर उसे उसका काम स्वयं करने दें|
जैसे जैसे आपका बच्चा बड़ा होता जाये आप थोड़ी आजादी दे सकते हैं और साथ के साथ उसके शौक़ पूरे करने के लिए उसे प्रोत्साहित भी कर सकते हैं।
अपना काम करने आजादी दें
आप अपने बच्चे का साथ निभाएं लेकिन उसे अपनी पसंद के शौक़ पूरे करने की आजादी दें। उसे यह न बताएं की उसे क्या पड़ना चाहिए उसे खुद उनका चुनाव करने दें। आप उसे तैयार होने में मदद करें लेकिन जब उसके लिए कपडे लेने जायें तो उसकी राय ज़रूर पूछें। अगर वो अपने दोस्तों या खिलोनों के साथ अकेले खेलना चाहिए तो उसे ऐसा करने दें इससे उसे अपनी पहचान बनाने में आसानी होगी ।

सुनहरे भविष्य के लिए बच्चों को अनुशासित करें
अभिभावकों को अपने बच्चों से बेहद प्यार रहता है और वह उन्हें जीवन में हर खुशी देना चाहते हैं। इसके साथ ही
बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए उनमें अनुशासन का भाग जगाना भी जरुरी है। इसलिए उसे प्यार देने के साथ ही थोड़ी बहुत सख्ती भी जरुरी है। इससे बच्चा सही और गलत का अंतर कर सकता है। इसलिए बच्चा अगर कभी भी अनुशासन तोड़ता है तो उसके सजा देना भी जरुरी है ताकि वह अपनी गलती समझ सके। हां यह सजा ज्यादा कठिन नहीं होनी चाहिये। यदि आप चाहते हैं कि बच्चे के साथ संबंध बेहतर बनाए रहते हुये, संयम के साथ, कैसे उसे अनुशासित किया जाये, तो बस आपको कुछ अपाय करने होंगे।
अपने बच्चे को स्वाभाविक परिणामों के बारे में शिक्षा दीजिये। अपने बच्चे को उसके बुरे व्यवहार के स्वाभाविक परिणामों के संबंध में समझा कर आप उससे होनी वाली निराशा की जानकारी दे सकते हैं और उसे बता सकते हैं कि उसका बुरा व्यवहार उसे दुखी कर सकता है जिससे उसे पछतावा होगा। कठिन परिस्थितियों में से उसे निकालने के स्थान पर, बच्चे को उसके नकारात्मक कृत्यों से स्वयं ही निबटने दीजिये। स्वाभाविक परिणामों को समझने के लिए, बच्चे को कम से कम छः वर्ष का होना चाहिए।
यदि बच्चा कोई खिलौना तोड़ देता है या वह उसे धूप में छोड़ कर नष्ट कर देता है, तब एकदम उसे नया खिलौना मत दिलवाइए। बच्चे को कुछ समय तक बिना खिलौने के रहने दीजिये, और उससे बच्चा अपनी चीजों की ठीक से देखभाल करना सीख जाएगा। बच्चे को ज़िम्मेदारी की शिक्षा दीजिये। यदि बच्चा अपना गृहकार्य टीवी देखने के कारण नहीं कर पाया है तो उसका गृहकार्य पूरा कराने में उसकी मदद करने के स्थान पर, बच्चे को बुरे ग्रेड से उत्पन्न होने वाली निराशा का सामना करने दीजिये।
यदि बच्चे को अपने बुरे व्यवहार के कारण किसी पार्टी में नहीं निमंत्रित किया गया है, तब उसे यह समझ में आने दीजिये कि यदि उसका व्यवहार उस बच्चे के साथ कुछ और होता तब उसे निमंत्रित किया जा सकता था।
अपने बच्चे को तर्कसंगत परिणामों की शिक्षा दीजिये। तर्कसंगत परिणाम वे परिणाम होते हैं जो आप के अनुसार बच्चे के बुरे व्यवहार के परिणामस्वरूप उत्पन्न होंगे। इनको सीधे सीधे बच्चे के व्यवहार से सम्बद्ध होना चाहिए ताकि बच्चा, भविष्य में उनको नहीं करने की शिक्षा प्राप्त कर सके। हर प्रकार के बुरे व्यवहार का तर्कसंगत परिणाम होना चाहिए, और परिणाम समय से पहले ही बता दिये जाने चाहिए।
यदि बच्चा अपने खिलौने संभाल कर नहीं रखता है तब उसे एक सप्ताह तक खिलौने न दें।
यदि आप बच्चे को टी वी पर कुछ गैरजरुरी कार्यक्रम देखते हुये पाएँ तो एक सप्ताह के लिए टी वी की सुविधा बंद कर दीजिये।
यदि बच्चा अच्छा व्यवहार नहीं करता तो उसे अपने मित्रों के साथ मत खेलने जाने दीजिये। इससे उसे सबक मिलेगा।
अपने बच्चे को सकारात्मक अनुशासन विधियों की शिक्षा दीजिये: सकारात्मक अनुशासन बच्चे के साथ कार्य की ऐसी विधि है, जिसके अनुसार इस प्रकार के सकारात्मक निष्कर्ष पर पहुँचने में सहायता मिलती है जिससे कि बच्चा समझ सके कि बुरे व्यवहार के परिणाम क्या होंगे और वह भविष्य में उनसे बच सके। बच्चे को सकारात्मक रूप से अनुशासित करने के लिए आपको बच्चे के साथ बैठ कर उसके बुरे व्यवहार के संबंध में चर्चा करनी चाहिए और क्या क्या जा सकता है इस पर विचार करना चाहिए।
बच्चे को पुरस्कृत करने की प्रणाली भी निर्धारित करिए: पुरस्कृत करने की पद्धति भी निर्धारित की जानी चाहिए, ताकि सकारात्मक व्यवहार के सकारात्मक परिणाम भी हो सकें। भूलिए मत कि अच्छे व्यवहार को सुदृढ़ करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना बुरे व्यवहार को अनुशासित करना। बच्चे को यह दिखाने से कि, ठीक व्यवहार कैसे किया जा सकता है, उसको यह समझने में सहायता मिलेगी कि उसे क्या नहीं करना चाहिए। बच्चे को भाषण न दें इससे वह आपसे नाराज़ हो कर आपकी उपेक्षा भी कर सकता है। इसके अलावा कभी अन्य बच्चों से तुलना कर उनकी बेइज्जती न करें।

अपने नन्हें मासूम को यूं सिखांए ‘खाना’ खाना
आमतौर पर देखा जाता है कि जब बच्चा दूध छोड़कर खाना खाने की ओर प्रेरित होता है तो माता-पिता या अन्य परिजन उसे तमाम चीजें खिलाने की कोशिश करते हैं। इससे कई बार बच्चे के स्वास्थ्य को नुक्सान होता है और बच्चे में खाने के प्रति भी अरुचि पैदा हो जाती है। वैसे सामान्य घरों में आमतौर पर चावल या दाल का पानी बच्चे को सबसे पहले दिया जाता है। ऐसे समय में जरुरी होता है कि बच्चे को मसलकर चावल खिलाया जाए। पहले पहल बच्चे को बहुत थोड़ी मात्रा में मसले हुए चावल दें और फिर जब वह खाने लगे तो उसकी मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाएँ। इसके अतिरिक्त बच्चे को गाजर या उबला हुआ आलू मसलकर खिलाएँ। इसी प्रकार अन्य पत्तेदार सब्जियों का सूप दें और फिर पत्तागोभी, सलाद आदि भी धीरे-धीरे शुरु करें। पत्तेदार सब्जियों में पर्याप्त मात्रा में आयरन, विटामिन-ए और विटामिन-सी होता है। इसलिए इन्हें देना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। इनसे बच्चे का विकास पूर्ण रूप से होता है। इसके बाद बच्चे को जब सब्जी का स्वाद समझ में आने लगेगा तो वह खुद भी उन्हें खाने लगेगा। इसके बाद ही बच्चों को फल एवं जूस देना शुरू करना चाहिए। चिकित्सक भी प्रोटीनयुक्त भोजन बच्चों को देने की सलाह देते हैं इनमें बीन्स, अण्डा, नट्स इत्यादि शामिल हैं। ये बच्चे के विकास एवं कोशिका वृद्धि में सहायक होते हैं। इसके बाद भी सलाह दी जाती है कि बच्चे की सेहत को देखते हुए चिकित्सकों को दिखाने और उनसे डाइट चार्ट की सलाह लेते रहना चाहिए, ताकि बच्चे का स्वास्थ उत्तम रहे।

बच्चे को हो सॉंस की तकलीफ तो क्या करें
आज के समय में तरह-तरह की बीमारियों ने बच्चों को अपनी चपेट में ले लिया है। ऐसे में बच्चों को होने वाली छोटी से छोटी समस्या भी बड़ी प्रतीत होने लगती है। ऐसे ही देखने में आता है कि कभी-कभी छोटे बच्चों को साँस लेने में तकलीफ होती है और वे बेहोश तक हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में अक्सर माताएं या परिवार की अन्य महिलाएँ बुरी तरह घबरा जाती है। यहां आपको बताया जाता है कि इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि कुछ ऐसे आसान उपाय हैं जिससे बच्चे की सॉंस को नियमित किया जा सकता है। ऐसे ही आसान उपाय, जिसे आप बच्चे को चिकित्सक के यहाँ ले जाने से पहले कर सकते हैं में शामिल है कि बच्चे को अपने दोनों पैरों के बीच में लिटा लें। बच्चे का सिर आपके घुटनों की तरफ हो। बच्चे को सही से लेटा लेने के बाद दो उँगलियों की सहायता से उसकी पसलियों पर धीरे-धीरे दबाव डालें या उसकी पीठ को ठोंकें। ऐसी स्थिति में यदि कृत्रिम साँस देने की आवश्यकता पड़े तो बच्चे की नाक और मुँह दोनों को अपने मुँह से ढँककर साँस दी जा सकती है। ऐसा करते हुए एक हाथ से बच्चे का सिर पकड़े रहें और दूसरे हाथ से उसकी गर्दन पर हल्का दबाव बनाएं। तीन-तीन सेकेंड के अंतराल में कृत्रिम साँस दी जाती है। इससे बच्चे को सामान्य स्थिति में लाया जा सकता है, लेकिन सलाह दी जाती है कि बच्चे को प्राथमिक उपचार देने के उपरांत डॉक्टर के पास अवश्य ही ले जाएं, ताकि बीमारी का पता लग सके और उसका उचित इलाज हो सके। बच्चे की बीमारी को जानने और उसका इलाज कराने में कोताही नहीं बरती जानी चाहिए।

बच्चों को सर्दी से बचाना है तो करें मालिश
अक्सर सुनने में आता है कि शुरुआती सर्दी में ही बच्चे बीमार हो जाते हैं। दरअसल उन्हें ठंड लगने और नजला-जुकाम होने की शिकायत हो जाती है। ऐसे में याद रखें कि सर्दियों में ठंडी हवाओं के प्रकोप से बच्चों को बचाने के लिए सबसे अच्छा उपाय यही है कि उनकी मालिश की जाए। बच्चे के शरीर को गर्म रखने के लिए बच्चों की मालिश करना बहुत जरूरी होता है। नहलाने से पहले बच्चों की मालिश करके यदि उन्हें कुछ देर कुनकुनी धूप में लिटाएं या बाहर बिठाएं तो आपके बच्चे के लिए फायदेमंद होगा। नहाने के बाद धूप में ‍बिठाने से बच्चों को विटा‍मिन डी मिलता है परंतु ध्यान रहे कि बच्चों को नहलाने व कपड़े पहनाने के बाद ही धूप में बिठाएं या लिटाएं, क्योंकि सर्द हवा के प्रकोप से भी वो बीमार हो सकते हैं। ऐसे में सावधानी रखना जरुरी हो जाता है।
बेहतर स्वास्थ्य व सेहत के लिए मालिश फायदेमंद होती है। फिर भी बच्चों को मालिश तभी लाभ पहुंचाती है जबकि उसे सही तरीके से किया जाए। इसके लिए इन टिप्स को आजमा सकते हैं। बच्चों की मालिश करते हुए या उन्हें मसाज देते हुए ध्यान रखना चाहिए कि इसकी शुरुआत दाहिने पैर से करें। बच्चे के पैर को दोनों हाथों के बीच दबाकर आहिस्ता-आहिस्ता रगड़ें। अपने अँगूठे से बच्चे के पंजे के नीचे के भाग की मालिश करें। इस बात क भी विशेष ध्यान रखें कि मालिश करते समय आपके दोनों अँगूठों के बीच एक जैसी रिदम रहे। बच्चे के पैर के अँगूठे और उँगलियों की भी मालिश करें। इसके बाद ही बच्चे की छाती और पेट की मालिश करें। शिशु के हाथों की मालिश करें। इस प्रकार बच्चे को बेहतर मालिश मिलेगी और बच्चा स्वस्थ अनुभव करेगा।

बच्चे का डर इस प्रकार कम होगा
बच्चों की परवरिश आसान नहीं होती। बचपन में उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है पर उसका हल उनके अभिभावकों को निकालना पड़ता है। आम तौर पर देखा जाता है कि नवजात शिशु कई बार डर जाते हैं या घबरा कर उठ जाते हैं हालाँकि, यह समस्या न केवल नवजात में बल्कि एक साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों में भी देखने को मिलती है। देखा जाता है कि कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिससे कि उन्हें डर लगता है। ऐसे में अभिभावकों को उन्हें डर से बचाने आपको कुछ प्रयास करने होंगे।
नवजात शिशु कई बार अचानक से उठ जाते हैं। इतना ही नहीं वह रोना भी शुरू कर देते हैं। वहीं जो बच्चे थोड़े बड़े होते हैं उनमें भी यह समस्या देखने को मिलती है, क्योंकि वह अपनी कल्पना को नींद के जरिए ही देखते हैं, जिसमें कुछ अच्छे सपने भी होते हैं और कुछ बुरे सपने भी होते हैं।
बच्चे को सबसे ज्यादा डर अंधेरे से लगता है। कुछ अभिभावक ऐसे भी होते हैं जो अपने बच्चे को शांत करवाने के लिए या अपनी बातों को मनवाने के लिए अँधेरे का सहारा लेते हैं, जो कि बहुत गलत है। क्योंकि, इससे बच्चे काफी डर जाते हैं, जिसका असर बच्चे पर बहुत बुरा होता है। ऐसे में, अपने बच्चे में इस डर को दूर करने की कोशिश करें।
जब बारिस का मौसम होता है, और खासकर जब बिजली कड़कने की आवाज आती है तो बच्चे डर कर उठ जाते हैं। कुछ बच्चे तो ऐसे होते हैं कि इसके आवाज को सुनकर रोने लगते हैं। ऐसे में, आप अपने बच्चे को इसके बारे में बताएं कि इसमें घबराने की कोई बात नहीं है, और उन्हें शांत रखने की कोशिश करें।
हालाँकि, यह सच है कि बच्चे उन लोगों के पास ज्यादा खुशी से रहते हैं, जिन्हें वह जानते हैं पर जैसे ही आप उन्हें अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार से मिलाते हैं तो वह बहुत असहज महसूस करते हैं, और कभी-कभी उन्हें देख कर रोने लगते हैं। ऐसे में, आप अपने बच्चे को थोड़ा जानने का समय दें ताकि वह उनके साथ घुल-मिल सके।
बच्चे सबसे ज्यादा सुरक्षित अपने अभिभावकों के साथ महसूस करते हैं क्योंकि, वह बचपन से ही उनके साथ रहते हैं, इसलिए जब भी आप अपने बच्चे से थोड़ी देर के लिए दूर होते हैं तो वह रोने लगते हैं हालाँकि, यह ठीक नहीं है। बच्चे को सिर्फ अपनी आदत न लगने दें, इसके लिए आप उन्हें अपने दादा-दादी या फिर घर के अन्य लोगों के साथ छोड़ें। ताकि वह आपके अलावा, घर के अन्य लोगों के साथ घुल-मिल सकें।

बच्चे की तुलना न करें
अभिभावक होना जितना सुखद होता है, उतना ही मुश्किल भी। अपने बच्चों को कौन सी बात किस तरह समझाना है, इसको लेकर अकसर आप उलझन में पड़ जाते होंगे। कई बार आप अपने बच्चों को प्यार से समझाते हैं, तो कई बार उन्हें डांट देते हैं। कई बार आप उन्हें अपना ही उदाहरण दोते हैं, लेकिन आपकी बातों का बच्चे पर क्या असर पड़ता है, इसका अंदाजा आप नहीं लगा पाते हैं। इसलिए आपको इन बातों को बच्चों से कहने से बचना चाहिए।
आप बच्चे की तुलना अपने आप से न करें। आप भी जब छोटे थे तो आपमें कई कमियां रही होंगी। उसे अपने बचपन का मजा लेने दें।
अपने फैसले खुद लेने से ही बच्चा आगे बढ़ेगा। अगर उसके फैसले गलत साबित होते हैं, तो उससे वह सीखेगा और आगे सही निर्णय लेगा। गलत फैसला लेने के लिए आपकी डांट उसे डराने और आत्मविश्वास कम करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती है।
इस तुलना की कोई जरूरत नहीं है। हर बच्चे का विकास अलग-अगल तरीके से होता है। वे अपने अलग-अलग अनुभवों से सीखते हैं। कहीं ऐसा न हो कि हर बात पर बेवजह की तुलना बच्चों में आपस में मतभेद पैदा कर दें।
बेशक आपके पास कई जिम्मेदारियां हैं, जिनसे कभी-कभी आप परेशान हो जाते होंगे और अकेला रहना चाहते होंगे लेकिन आपका बच्चा आपकी परेशानियों से बिल्कुल अनजान है। ऐसे में उससे ऐसा कहना उसके मन पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है।ऐसा कहना बच्चे तो क्या किसी बड़े को भी काफी आहत कर सकता है। ऐसे में बच्चों से ऐसा कहना बिल्कुल ठीक नहीं है।

इस प्रकार बच्चों को संक्रमण से बचायें
बच्चे संक्रमण की चपेट में जल्दी आ जाते हैं। ऐसे में रोग प्रतिरोधक क्षमता के कमजोर होने पर बीमारियों का असर जल्दी होता है, इसकी मुख्य वजह यह है कि शरीर कमजोर हो जाता है और हम जल्दी-जल्दी बीमार पड़ने लगते हैं।
हालाँकि, कई विशेषज्ञों का यह मानना है कि अधिकतर बच्चो को जुकाम खांसी और बुखार की समस्या मौसम बदलने के कारण होती है, लेकिन अगर आप अपने बच्चे की इम्युनिटी को बढ़ावा दें तो ऐसी संक्रमण वाली बीमारियों से काफी हद तक बचा जा सकता है। ऐसे में बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने के लिए निम्न आदतों को अपनाना बहुत जरूरी है, जिनमें निम्न शामिल हैं-
बच्चे को स्तनपान करायें- मां के दूध में रोग प्रतिरोधी सारे गुण मौजूद होते है। माँ का दूध बच्चों के लिए अमृत समान होता है, इतना ही नहीं यह बच्चों में संक्रमण, एलर्जी, दस्त, निमोनिया, दिमागी बुखार, और अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम के खिलाफ लड़ने के लिए भी मजबूत बनाता है। ऐसे में बच्चे को जन्म लेने के साथ-साथ ही स्तनों से बहने वाले गाढे पतले पीले दूध को कम से कम 2-3 महीने तक जरुर कराएं।
बच्चे को ग्रीन वेजिटेबल खिलाएं- अपने बच्चे को खाने में गाजर, हरी बीन्स, संतरे, स्ट्रॉबेरी जैसे सभी को चीज़ों को शामिल करें, क्योंकि यह विटामिन सी और कैरोटीन युक्त होते हैं। जो आपके बच्चे की इम्युनिटी को बढ़ाने में मदद करता है। ऐसे में बच्चों को अधिक से अधिक फल और सब्जियों को उनके खाने में शामिल करें, ताकि बच्चे को संक्रमण से लड़ने में मदद मिल सके।
बच्चे को भरपूर नींद लेने दें- बच्चों में नींद की कमी होने पर इम्युनिटी तो कमजोर होती ही साथ ही आपका बच्चा बीमारी का अधिक शिकार होने लगता है। जिससे कि नवजात में स्वास्थ्य मुश्किलें बढ़ जाती है। हालाँकि, नवजात बच्चों को एक दिन में 18 घंटे की नींद तो वही छोटे बच्चों को 12 से 13 घंटे की नींद की आवश्यकता पड़ती है। इसके अलावा युवा बच्चे को रोजाना 10 घंटे की नींद लेनी चाहिए।
धूम्रपान के धुएं से बचाएं- आपके घर में कोई सदस्य धूम्रपान करता है तो बच्चों की सेहत का ध्यान रखते हुए उसे छोड़ दें। सिगरेट के धुआं शरीर में कोशिकाओं को मार सकते हैं। इसके अलावा सिगरेट बीड़ी में कई अधिक विषाक्त पदार्थों शामिल होते है जो अतिसंवेदनशील बच्चों के रोग नियंत्रण शक्ति को प्रभावित कर इम्युनिटी को कमजोर करते है।
बच्चों को कम से कम दवा दें- कई बार पेरेंट्स अपने बच्चों को लेकर अधिक सवेंदनशील हो जाते हैं। खासकर जब बच्चे को सर्दी, फ्लू या गले में हल्की खराश होने पर डॉक्टर को एंटीबायोटिक देने को कहते है। अधिकतर एंटीबायोटिक्स केवल बैक्टीरिया की वजह से होने वाली बीमारियों का इलाज करते हैं जबकि बचपन में अधिकतर बिमारियां वायरस के कारण होती हैं।
संक्रमण के खतरों से बचाएँ- अपने बच्चे को बीमारियों से बचाने के लिए संक्रमण वाले जीवाणु से हमेशा बचा कर रखें। आप बच्चों को कीटाणुओं से बचाने के लिए बचपन से ही हाथ धोने के बाद ही हाथों को होठों के पास लाने और कुछ खाने के बारे में बताएं। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि परिवार के अन्य सदस्यों को संक्रमित, टूथब्रश आदि के साथ-साथ बच्चों के तौलिया रुमाल और खिलौनों की सफाई हमेशा समय-समय पर करते रहें।

इंटरनेट गेम्स के नशे से बच्चों को बचायें
आजकल हाई टेक जमाने में बच्चे भी मोबाइल और कम्प्यूटर का बेतहाशा इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे कई प्रकार की बीमारियों का खतरा रहता है। इंटरनेट पर मिलने वाले रोमांचक ऑनलाइन गेम्स अब बच्चों के दिलों-दिमाग पर हावी हो रहे हैं। हर सेंकड बदलती दुनिया…और पल पल बढ़ता रोमांच…. रंग-बिरंगे थीम के साथ म्यूजिक का कॉम्बिनेशन… कंप्यूटर या फिर मोबाइल की एक छोटी सी स्क्रीन पर एक ऐसा वर्चुअल वर्ल्ड होता है, जो बड़े-बड़ों को लुभाता है. फिर छोटे बच्चों का इनकी तरफ आकर्षित होना लाजिमी है।
दरअसल ऑनलाइन गेमिंग के दौरान स्क्रीन हर सेंकड नए अवतार में नजर आती है। रोमांच ज्यादा होता है। कई ऑनलाइन गेम्स मल्टीप्लेयर होते हैं, जिसमें अनजान बच्चे भी ग्रुप बनाकर एकसाथ गेम खेलते हैं। कई बार बच्चा इनमें खतरनाक गेमों में भी फंस जाता है।
एक-दूसरे को हराने और जीतने की होड़ में बच्चे लगातार कई राउंड खेलते रहते हैं। 10 मिनट का गेम कब घंटे-दो घंटो में बदल जाता है बच्चों को पता ही नहीं चलता और यही से शुरू होता है गेमिंग की लत। जो कि बढ़ते बच्चों के विकास के लिए बहुत बड़ा खतरा है.
इंटरनेट गेमिंग है खतरनाक
ज्यादा वक्त इंटरनेट गेम्स खेलने वाले बच्चों की फोकस करने की क्षमता कम हो जाती है।
ऐसे बच्चों का झुकाव ज्यादातर नेगेटिव मॉडल्स पर होता है। बच्चों में धैर्य कम होने लगता है।
बच्चे पावर में रहना चाहते हैं।सेल्फ कंट्रोल खत्म हो जाता है। कई बार बच्चे हिंसक हो जाते हैं।
बच्चे सामाजिक जीवन से दूर होकर अकेले रहना पसंद करने लगते हैं।बच्चे के व्यवहार और विचार दोनों पर इंटरनेट गेमिंग का असर देखा गया है। बच्चे मोटापे और डाइबिटीज का शिकार हो जाते हैं।साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक अगर एक बार बच्चे को इंटरनेट गेमिंग की लत लग जाती है तो फिर बिना इंटरनेट के रहना बच्चे के लिए मुश्किल हो जाता है। बच्चे इंटरनेट की जिद करते ही हैं। माता-पिता के मना करने पर कई बार बच्चे आक्रामक हो जाते हैं।
अध्ययन में पाया गया है कि डिवाइस और गैजेट्स की वजह से बच्चों में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। यहां तक बच्चे डाइबिटीज का भी शिकार हो रहे हैं। ऐसा नहीं है कि ऑनलाइन गेम्स खेलने वाला हर बच्चा गेमिंग लत का शिकार है लेकिन एक्सपर्ट के मुताबिक गेम खेलने का शौक कब आदत में बदल जाए, इसके लिए माता-पिता को बच्चे की गतिविधियों पर नजर बनाए रखना होगा।
इस प्रकार बचायें बच्चों को
माता पिता ये तय करें कि बच्चे को किस उम्र में कौन सा गैजेट/गेम या डिवाइस देना है।
नन्हे-मुन्नों को मोबाइल पर गाने ना दिखाएं। बच्चों को इंटरनेट का इस्तेमाल पढाई सम्बन्धी जरुरी काम के लिए ही करने दें।
अगर बच्चा इंटरनेट पर गेम खेलता है तो गेम्स खेलने का समय तय करें। आधे घंटे से ज्यादा इंटरनेट गेम्स न खेलने दें।
आउटडोर गेम्स को बढ़ावा दें। अगर बच्चा इंटरनेट गेम्स को ज्यादा वक्त देने लगा है तो उसे रोकें।
बच्चे इंटरनेट पर क्या करता है कौन सा गेम खेलता है उस पर नजर रखें।
तो बच्चे पर रखें नजर
अगर बच्चा रोजाना इंटरनेट पर ज्यादा वक्त बिता रहा है तो सतर्क हो जाइए। बच्चा गुमसुम रहने लगेगा और व्यवहार में बदलाव आएगा। बच्चा स्कूल और पढाई से दूर रहेगा। बच्चा सामाजिक जीवन से दूरी बनाकर अकेले रहना पसंद करेगा।
आदत की वजह से बच्चा चिड़चिड़ा हो सकता है। बच्चे का रूटीन बदल जायेगा, खाने-पीने के साथ नींद भी डिस्टर्ब हो सकती है।गेम नहीं खेलने देने की वजह से बच्चा हिंसक भी हो सकता है। अगर आपका बच्चे में ऐसे लक्षण हैं तो बिना देरी करे मनोचिकित्सक से मिलिए।

बच्चों को मिट्टी में खेलने दें

अगर संक्रमण के डर से आप अपने बच्चों को बाहर खेलने से रोक रहे हैं तो आप उन्हें कमजोर बना रहे हैं। यह उनके लिए भविष्य में नुकसानदेह साबित हो सकता है। ऐसे बच्चे जरा से संक्रमण से बीमार पड़ जायेंगे। कहते हैं कि जंग जीतने के लिए मैदान में उतरना जरूरी होता है। इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चों में कीटाणुओं और रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़े तो उसे अगली बार जुकाम और मामूली रोग से पीडि़त किसी भी व्यक्ति के पास जाने से रोकने की भूल न करें। शुरुआती साल में तो बच्चे को मिट्टी में ही खेलने दें। एक स्वास्थ्य संगठन के अनुसार
इस प्रकार बच्चों को जुकाम जैसे छोटे रोग और धूल-मिट्टी के संपर्क में आने से रोक कर आप जाने-अनजाने उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर कर रहे हैं। अगर पड़ोसी के बच्चे को जुकाम हो तो अपने बच्चे को बेझिझक उसके साथ खेलने दीजिए क्योंकि इस तरह से रोग और कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता में इजाफा होगा। संगठन द्वारा किए गए एक चिकित्सक शोध के हवाले से उन्होंने कहा है कि जो ग्रामीण बच्चे खेतों की धूल फांकते हुए बड़े होते हैं उन्हें शहरी बच्चों के मुकाबले प्रदूषण और अन्य चीजों से बहुत कम एलर्जी होती है। उन्होंने बताया कि बच्चों को उनके शुरुआती साल में मिट्टी में खेलने देना चाहिए ताकि उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़े और शरीर छोटे मोटे रोगों के खिलाफ डटकर खड़ा रह सके।

जब बच्चा तुतलाए तो क्या करें
छोटे बच्चे जब बोलते हैं तो सभी को उनकी बोली अच्छी लगती है। उनकी तोतली जुबान बहुत ही प्यारी लगती है। उनकी बातें इतनी मीठी लगती हैं कि दिल करता है सिर्फ सुनते ही रहें। उन्हें सुधारने का ख्याल तक किसी को नहीं आता है। यहां त‍क की मां-बाप और दूसरे रिश्तेदार भी बच्चे से उसी तरीके से बातें करना शुरू कर देते हैं लेकिन एक समय के बाद ये आदत परेशानी का कारण बन जाती है।
बहुत से बच्चे ऐसे हैं जो इस आदत को छोड़ नहीं पाते और बड़े होने पर भी तुतलाते ही रहते हैं। ऐसे बच्चों को घर और समाज में कई बार शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। स्कूल में दूसरे सहपाठियों के सामने और कॉलेज में दोस्तों के साथ पर सबसे बड़ा नुकसान करियर में उठाना पड़ता है। जहां कई साक्षात्कार में ये आदत कमी के रूप में देखी जाती है। ऐसे में अगर आपके बच्चे को भी ये परेशानी है तो अभी से उस पर ध्यान दें। सबसे पहले डॉक्टर की सलाह लें, उसके साथ ही इन घरेलू उपायों को आजमाना भी फायदेमंद रहेगा। बच्चे को हरा आंवला चबाने के लिए दें। आंवले के सेवन से आवाज साफ होती है। बादाम के सात टुकड़े और उतनी ही मात्रा में काली मिर्च को पीसकर एक चटनी जैसा पेस्ट तैयार कर लें। इसमें शहद मिलाकर बच्चे को चाटने के लिए दें।काली मिर्च का सेवन भी बहुत फायदेमंद रहेगा।

प्लास्टिक बोतल का पानी पीने से बच्चे को पेट की बीमारी का खतरा
गर्भावस्था के दौरान दौरान खराब क्वालिटी या बीपीए युक्त प्लास्ट‍िक बोतल में पानी पीने वाली महिलाओं के होने वालों बच्चों को पेट की बीमारियां हो सकती हैं। प्लास्ट‍िक में पाया जाने वाले बीपीए रसायन के कारण पेट में मौजूद अच्छे और बुरे जीवाणुओं का संतुलन बिगड़ जाता है। इसके अलावा यह लीवर में दर्द और कोलोन में सूजन का कारण बन सकता है।
शोधकर्ताओं का दावा है कि जन्म से पहले गर्भ में रहने के दौरान ही बच्चे खतरनाक रसायनों के संपर्क में आ सकते हैं। यहां तक कि जन्म के ठीक बाद भी मां के दूध से उनमें खतरनाक रसायन जा सकते हैं।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार जन्म लेने के ठीक बाद मां के दूध से रसायनों के संपर्क में आए बच्चों को आगे की जिंदगी में पेट से संबंध‍ित परेशानियां हो सकती हैं.
दरअसल, बीपीए के नाम से प्रचलित बिस्फेनॉल ए एक तरह का औद्योगिक रासायन है, जिसे साल 1960 से प्लास्ट‍िक बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
बीपीए प्लास्ट‍िक के कई कंटेनरों और बोतलों में पाया जाता है. खासतौर सस्ते और खराब क्वालिटी वाले बोतलों में इसका मिलना आम है। शोध में दावा किया गया है कि ऐसे ऐसे प्लास्ट‍िक के बर्तनों में रखा गया खाना आसानी से बीपीए रसायन को सोख लेता है।
अध्ययनकर्ताओं ने यह अध्ययन खरगोशों पर किया है।
अध्ययन के दौरान पाया गया कि जो खरगोश प्रेग्नेंसी के दौरान बीपीए रसायन के संपर्क में रहे या बीपीए से दूष‍ित खाने व पानी का सेवन किया, उनके बच्चों में जन्म लेने के 7 दिनों बाद से ही पेट से संबंध‍ित परेशानियां उत्पन्न होने लगीं।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन से निष्कर्ष निकाला कि बीपीए एक्सपोज होने वाले बच्चों में गट बैक्टीरियल डिसबायोसिस विकसित हो जाता है, जिसके कारण उनके लीवर में दर्द, कोलोन सूजन आदि होता है।
इसलिए शोधकताओं ने गर्भवती महिलाओं को सुझाव दिया है कि वो खाना या पानी रखने के लिए ऐसी कंटेनर या बोतल का ही इस्तेमाल करें जो बीपीए मुक्त हों।

गाय का दूध बच्चों के लिए कितना उपयोगी
अक्सर घर के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि बच्चा दूध का सेवन करेगा तभी तो हष्ट-पुष्ट होगा, लेकिन क्या यह जरुरी है। इस संबंध में कुछ विशेषज्ञों की मानें तो एक साल से कम उम्र के बच्चों को गाय का दूध देने से बच्चे में श्वसन और पाचन संबंध एलर्जी रोग हो सकते हैं। दरअसल गाय के दूध में मौजूद प्रोटीन को इतनी छोटी उम्र के बच्चे आसानी से पचा नहीं पाते हैं और उनकी पाचन क्रिया प्रभावित होती है। जिन शिशुओं को मां का दूध नहीं मिलता उनके पोषण के तौर पर वैकल्पिक व्यवस्था तलाशी जाती है। ऐसे में एक साल से कम उम्र के बच्चे को गाय का दूध दिया जाना खतरे से खाली नहीं बताया गया है। क्योंकि आयरन के लो कॉन्सन्ट्रेशन की वजह से बच्चे में अनीमिया का खतरा हो सकता है। आप सोच रहे होंगे कि गाय का दूध तो सदियों से हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है फिर बच्चों के लिए यह कैसे नुक्सानदायक हो सकता है। विशेषज्ञों की राय तो यही है कि एक साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि यह शिशु की अपरिपक्व किडनी पर तनाव डाल सकता है और पचाने में भी मुश्किल होता है। इसके अतिरिक्त एक साल से ऊपर के शिशुओं को घर का अनुपूरक भोजन खिलाया जाना उचित होता है। यह सत्य है कि देश में अधिकतर शिशुओं को गाय का दूध ही दिया जाता है, क्योंकि ग्रामीण इलाकों जागरूकता की कमी होती है, जो जानते हैं वो भी बकरी के दूध को ही ज्यादा उचित बताते हैं, क्योंकि यह गाय के दूध से हल्का होता है। इस प्रकार शिशुओं को मॉं के दूध का सेवन करने से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए, क्योंकि इसी से वह स्वस्थ और सुरक्षित रह सकता है।

बच्चों की सुरक्षा का यूं रखें ध्यान
एक स्कूल के अंदर बच्चे की हत्या ने सारे देश के अभिभावकों को हिलाकर रख दिया है। दरअसल गुड़गांव के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में प्रद्युम्न नामक छात्र की हत्या, उसके बाद दिल्ली के स्कूल में 5 साल की बच्ची का मामला और उसके बाद लगातार स्कूलों में बच्चों से जुड़े मामले सुर्खियां बटोर रहे हैं, ऐसे में ये हादसे और दुर्घटनाएं जहां मन को विचलित करते हैं वहीं स्कूल की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठते हैं। इन घटनाओं ने माता-पिता समेत बच्चों के मन में भय का वातावरण बना दिया है। भयभीत बच्चे तो उस स्कूल में जाने को राजी ही नहीं होते जहां इस प्रकार के हादसे या अपराध होते हैं। बदतर हालात का खुलासा नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े कर देते हैं। दरअसल साल 2015 में देशभर में बच्चों के खिलाफ क्राइम के 94,172 मामले हुए, जिसमें सबसे ज्यादा 11,420 मामले उत्तर प्रदेश में होना पाया गया है। बहरहाल बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी जितनी स्कूल की है उतनी ही माता-पिता या अभिभावक की भी होती है। ऐसे में कुछ टिप्स दिए जा रहे हैं जिनसे बच्चे सुरक्षित रह सकते हैं। ऐसे ही सुझावों में सबसे पहले स्कूल बस में बैठने से लेकर स्कूल पहुंचने तक स्कूल छोड़ने के बीच कभी भी बच्चे को ट्रैक किया जाना चाहिए, ताकि बच्चे को भरोसा रहे कि उस पर माता-पिता की नजर है। बच्चे भयभीत न रहें इसलिए उन्हें ये जरूर समझाएं कि स्कूल में कहीं भी अकेले ना जाए। अगर अकेले कहीं जाएं भी तो अपने दोस्तों और क्लास टीचर को अवश्य ही बताकर जाएं। बच्चे को घर के आस-पास ही दाखिल कराएं ज्यादा दूरी के स्कूल में एडमीशन कराने से बचें। स्कूल में बच्चे को दाखिल कराते समय पढ़ाई के साथ साथ सुरक्षा के मापदंडों को भी परखें। स्कूल का बाथरूम टायलेट सुरक्षित जगह पर है या नहीं यह भी देखें। इस संबंध में समय-समय पर बच्चे से भी बात करें। पुलिस वेरिफिकेशन के मामले में भी आप पहल करें और जानकारी हासिल करें कि स्कूल इसमें कोई कोताही तो नहीं बरत रहा है। टीचिंग स्टाफ के अलावा अन्य कर्मचारियों के स्वास्थ्य संबंधी जानकारी भी कभी-कभी हासिल करें। बच्चे के द्वारा स्कूल के बारे में बताई जाने वाली बात को नजरअंदाज ना करें। बात छोटी हो या बड़ी, ध्यान से सुनें और संबंधितों से भी बात करें। बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में भी जानकारी दें। बच्चे को किसी से जबरन मिलवाना या हाथ मिलाने जैसे दबाव न बनाएं। कोशिश करें कि आप बच्चे के अच्छे दोस्त साबित हों, ताकि बच्चा आपसे कोई बात न छिपाए और हर बात खुलकर कर सके।

बढ़ते बच्चों के सवाल कुछ यूं दें जवाब 
यह तो हम सभी जानते हैं कि बच्चों के लिए उनके आसपास की दुनिया भी किसी रहस्योद्घाटन करने से कम नहीं होती। इसलिए उसकी जानकारी हासिल करने के लिए बच्चों में कौतुहल होता है। हर रोज नए अनुभव और उनसे जुड़े नए सवालों से दोचार होना पड़ता है। ये सवाल किसी पहेली से कम नहीं होते हैं। छोटी उम्र में ज्यादा जान लेने की इच्छा बच्चों में होती ही है। ऐसे में आपके बच्चे के मन में कई सवाल उठते ही हैं। कई बार तो ऐसा होता है कि बच्चा सवाल करता है और आप इन्हें सुन कर अपनी हंसी नहीं रोक पाते हैं। वहीं कई बार ऐसा भी होता है कि उसकी कल्पना की उड़ान से निकले सवाल को सुनकर आप हैरान रह जाते हैं। बच्चे के सवालों के साथ ही उसकी बढ़ती उम्र के अनुरूप कुछ न कुछ नया होता ही है। ऐसे में कुछ नाजुक और गंभीर विषय भी सामने आते हैं। बच्चे की सुरक्षा से जुड़े सवाल भी हो सकते हैं। इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इसके बारे में उसे समझाना और बताना भी बेहद जरूरी होता है। ऐसे में बच्चा यदि दो से चार साल की उम्र का है तो उसे आसान भाषा में समझाएं क्योंकि उसके पास शब्दों का भंडार अभी बढ़ रहा होता है। वे नई-नई चीजों को देखते हुए सीखने की प्रक्रिया में होते हैं। स्कूल जाने की बच्चे की शुरुआत होती है, ऐसे में उसका जिज्ञासु मन घर से बाहर की दुनिया के बारे में जानना चाहता है। अत: उसे समझें और कहानी जेसी रोचकता लाते हुए उसके सवालों का जवाब दें। नए परिवेश से जुड़ते बच्चों के मन में अनेक प्रकार की जिज्ञासाएं पलती हैं, ढेरों अनसुलझे सवाल भी अपना डेरा जमाने लगते हैं। उनके लिए तो आसान बात भी पहेलियां जैसी होती हैं। उन्हें समझने और सुलझाने में आप मदद करें न कि टालकर सवाल को और कठिन बना दें।

नींद की कमी से बच्चों को हो सकती हैं कई बीमारियां
बच्चों की उम्र के अनुसार नींद होनी चाहिये। अगर यह कम होती है तो उन्हें अनेक प्रकार की बीमारियों का खतरा बना रहता है। इसलिए अगर आपके बच्चे को भी पर्याप्त नींद नहीं मिलती तो उसकी आदत बदल दें। रात में पर्याप्त नींद नहीं लेने वाले बच्चों को टाइप 2 मधुमेह होने का खतरा अधिक होता है। अनुसंधानकर्ताओं ने नौ से 10 आयुवर्ग के 4525 बच्चों के शारीरिक माप, उनके रक्त के नमूने और प्रश्नावली आंकड़ा एकत्र किया। उन्होंने पाया कि जो बच्चे अधिक देर तक सोते हैं उनका वजन अपेक्षाकृत कम होता है। नींद के समय का इनसुलिन, इनसुलिन प्रतिरोधक और रक्त में ग्लुकोज के साथ विपरीत संबंध है। यानी यदि नींद का समय अधिक होगा तो इनसुलिन, इनसुलिन प्रतिरोधक और रक्त में ग्लुकोज का स्तर कम होगा। स्वास्थ्य सेवा के अनुसार 10 साल के बच्चे को 10 घंटे की नींद मिलनी चाहिये। बचपन में पर्याप्त नींद के संभावित लाभों का फायदा युवावस्था में स्वास्थ्य को मिल सकता है।

इस प्रकार करें जुड़वां बच्‍चों की देखभाल
बच्चों को पालना आसान नहीं होता है। फिर चाहे एक ही बच्चा एक ही क्यूं ना हो। ऐसे में अगर आपका साथी भी नहीं है तो मुश्किलें थोड़ी बढ़ सकती है। पर आप परेशान ना हो। दोनो बच्चों की परवरिश के लिए आप किसी अन्य परिवारजन या दोस्त की मदद ले सकती है। हो सकता है वो रातभर आपके पास ना रूक सकते हो पर दिन में तो आपके लिए बाहर से सामान लाने और खाना बनाने जैसे कामों में मदद कर सकते है। अगर आपके लिए संभव हो तो आप आय रख लें। वो भी आपके लिए सुविधाजनक रहेगी। अभिनेत्री और गायिका जेनिफर लोपेज को अपने जुड़वा बच्चों-मैक्स और एमी की परवरिश अकेले ही कर रहीं है। ऐसी कई महिलाएं है जो अपने जुड़वा बच्चों को अकेले पाल रहीं है, उनकी परवरिश के लिए कुछ तरीके जो मददगार साबित हो सकते है।
क्लब में शामिल हो
जुड़वा बच्चों की परवरिश के लिए बाजार में कई तरह की किताबें मौजूद है, आप बच्चों के जन्म से पहले ही उनको जरूर पढ़े। ये आपको बहुत काम आएगी। साथ ही पता करे अगर आपके आसपास जुड़वा बच्चों के लिए कोई क्लब हो तो उसे ज्वाइन कर लें। ये आपकी मेहनत को भी बचाएगा साथ ही बच्चों के लिए भी बेहतर रहेगा।
धैर्य रखें
ध्यान रहें कि बच्चा एक ही क्यों ना हो तब भी उसकी परवरिश के लिए बहुत धैर्य रखना पड़ता है। ऐसे में अगर आपके जुड़वा बच्चे है तो आपको ज्यादा धैर्य का रखने की जरूरत पड़ेगी। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो बहुत जल्दी आपको चिड़चिड़हट का अनुभव होने लगेगा। जो आपकी परेशानी को बांटने के अलावा कुछ नहीं करेगा। अपने मां-बाप से बात करें, उनसे टिप्स लें। आपको बहुत आसानी होगी।

बच्चे को पौष्टिक भोजन खाने प्रेरित करें
स्वस्थ खाना, बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बेहद जरूरी है। स्वस्थ खाने से बच्चे ऊर्जावान बने रहते हैं तथा बच्चों का दिमाग भी तेज होता है। बच्चों में स्वस्थ खाने की आदत भी परिवार के सदस्य ही डाल सकते हैं। ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि बच्चों को हर खाद्य पदार्थ के अच्छे और बुरे पहलुओं से अवगत कराया जाए जिससे बच्चों में बचपन से ही स्वस्थ और अच्छे खान पान की आदत बन जाए।
जंक फूड के नुकसान
जंक फूड की ओर बच्चे जल्दी आकर्षित होते हैं लेकिन बच्चों को यह बताना बेहद जरूरी है कि जंक फूड शरीर को किसी भी मायने में फायदा नहीं पहुंचाता। बच्चों को वही भोजन देना चाहिए जो पोषक तत्वों से भरपूर हो। अच्छे पोषक तत्व मोटापा, कमजोर हड्डियां आदि से बचने में सहायता करते हैं।
पोषक आहार जरुरी
बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए जरूरी है कि हम ऐसे आहार का पालन करें जिससे बच्चें को पूरे पोषण मिल सकें। इसके लिए डाइट प्लान का भी पालन किया जा सकता है।
होल ग्रेन : इसके अंतर्गत बच्चों को व्हीट पेन केक, मल्टीग्रेन टोस्ट, व्हीट ब्रेड का सैंडविच, ब्राउन राइस आदि दिए जा सकते हैं। अन्य होल ग्रेन भी बच्चों को स्वादिष्ट रूप में दिए जा सकते हैं। अनाज का दलिया, अनाज का आटा, मक्का और गेहूं की रोटियां आदि दी जा सकती हैं।
प्रोटीन : बच्चों को प्रोटीन की वैरायटी आहार के रूप में लेने के लिए प्रोत्साहित करें जैसे अंडे, मछली, चिकन, बेक्ड बीन और दालें आदि।
विटामिन और खनिज : विटामिन और खनिज की आपूर्ति के लिए एक बार चिकित्सक से परामर्श करें। बच्चे के वजन और आयु के हिसाब से बेहतर परामर्श मिल सकेगा।
आयरन : आयरन खून बनने के लिए एक महत्त्वपूर्ण खनिज है। हरी पत्तेदार सब्जी, आयरन के अच्छे स्त्रोत हैं। रोजाना बच्चों के भोजन का एक हिस्सा हरी सब्जियों का होना चाहिए।
फल और सब्जियां : फल और सब्जियों को स्नैक्स के तौर पर भी दिया जा सकता है। फल और सब्जियों में विटामिन और खनिज की मात्रा ज्यादा होती है। विटामिन और खनिज स्वस्थ त्वचा, अच्छी ग्रोथ, विकास और संक्रमण से लड़ने के लिए आवश्यक हैं। सब्जियों में फाइबर भरपूर मात्रा में होती है जिसमें विटामिन ए, सी और सुक्ष्म पोषक जैसे मैग्नीशियम और पोटेशियम पाया जाता है। सब्जियों में एंटीऑक्सीडेंट भी पाया जाता है जो बच्चों के शरीर को बीमारियों से लड़ने की शक्ति देता है। विटामिन बी से भरपूर खाना साबुत अनाज, मांस और डेयरी प्रोडेक्टस है।
दूध और डेयरी उत्पाद : पनीर, दही, दूध से बनी पुडिंग आदि को शामिल करें। फुल क्रीम दूध भी बच्चों को दिया जा सकता है।
चीनी की मात्रा कम करें।
किसी भी भोज्य पदार्थ को कम चीनी के साथ स्वादिष्ट बनाकर बच्चों को खिलाने की आदत डालें।
प्रोसेस्ड फूड से बच्चों को दूर रखें जैसे कि सफेद ब्रेड और केक आदि।
घर पर फलों और सब्जीयों को डालकर फ्रोजन करें और बच्चों की ड्रिंक्स में मिलाएं। बच्चों को घर पर ताजा रस तैयार करके दें।
नमक की मात्रा कम करें
बच्चों को कम नमक दें।
रेस्टोरेंट, प्रोसेस्ड और पैक्ड फूड से बच्चों को दूर रखें। ऐसे भोज्य पदार्थों में सोडियम होता है जो बच्चों को नुकसान पहुंचाता है।
डिब्बाबंद सब्जियों और फलों की जगह ताजे फल और सब्जियां खाने को दें।
आलू चिप्स, फिंगर चिप्स आदि को कम खिलाएं।
हेल्दी फैट भी है जरूरी
मोनो अन-सैचूरेटेड फैट जो पौधों से निकलने वाली वसा जैसे कनोला तेल, मूंगफली का तेल, जैतून का तेल और सूखे मेवे जैसे अखरोट, बादाम और कूद्दू और सीसम के बीज में पाया जाता है
पोली अन- सैचुरेटेड फैट जिसमें ओमेगा-3 और ओमेगा-6 शामिल रहता है। यह मछली, मक्का, सोयाबीन, फ्लैक्स सीड और अखरोट आदि में मिलता है। ट्रांस फैट जो टॉफियों, चॉकलेट, बेक्ड खाद्य पदार्थों, बिस्किट आदि में पाया जाता है।

बच्चों को शुरुआत से ही सिखायें अच्छी आदतें
अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा एक बेहत इंसान बने तो उसे बचपन से ही अच्छी आदतें सिखायें। बच्चे का पहला घर उसका पहला स्कूल उसका होता है, ऐसे में उसे शुरुआत से ही अच्छी आदतें सिखाएं। इसके लिए आपको भी उन बातों को अमल में लाकर बच्चे के सामने उदाहरण पेश करना होगा। जिससे वह अच्छी आदतों को आसानी से उपनी आदत में ला सके। बच्चे जो घर में देखते हैं वही सीखते हैं। इसलिए उसके सामने झूठ और फरेब का सहारा न लें।
बड़ों का आदर करना- आज के समय में बच्चे इतने शैतान होते हैं कि वह अपने से बड़े को कुछ नहीं समझते हैं। हालाँकि, ऐसा इसलिए होता है कि उन्हें अच्छे-बुरे का फर्क समझ में नहीं आता है। ऐसे में अपने बच्चे को सबसे पहले बड़े लोगों की इज़्ज़त करना सिखाएं।
कृपया और धन्यवाद कहना सिखाएं- अपने बच्चे को कृपया और धन्यवाद कहना सिखाएं खासकर जब कोई व्यक्ति उसे चॉकलेट या उपहार दे तो धन्यवाद कहना चाहिए। इसके अलावा जब किसी से सहायता लेनी हो तो कृपया कहना चाहिए जैसी चीजों को सिखाएं। क्योंकि, कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो कृपया और धन्यवाद जैसे शब्दों का प्रयोग बिलकुल नहीं करते हैं।
सुबह जल्दी उठने को कहें- आज के समय में बच्चे ही नहीं बड़ों की भी यह बहुत बड़ी समस्या है, और वह है सुबह जल्दी उठना। क्योंकि, आज के समय में लेट सोना और लेट उठना आदत सी बन गयी है। ऐसे में अपने बच्चों में सुबह जल्दी उठने की आदत डालें, इससे न केवल स्वास्थ्य सही रहेगा बल्कि बच्चे सक्रिय भी होंगें।
खाने से पहले हाथ धोना- अपने बच्चों की सेहत का ध्यान रखते हुए उन्हें खाने से पहले हाथ धोने की आदत डालें क्योंकि, ऐसा करने से बच्चे को बीमारी और संक्रमण से बचाया जा सकता है, भले ही आपका बच्चा चम्मच से खाना क्यों न खा रहा हो। इतना ही नहीं बेहतर सुरक्षा और सफाई के लिए खाने के बाद भी हाथ धोना चाहिए।
खाना खाने के बाद ब्रश की आदत डालें- अपने बच्चे को खाना खाने के बाद ब्रश की आदत डालें, ताकि दांतों में सड़न से छुटकारा पाया जा सके। खाने के बाद भोजन के टुकड़े दांतों में फसें होते हैं, ऐसे में डॉक्टर भी खाने के बाद रात में ब्रश करने की सलाह देते हैं।

बच्चों को बनायें उत्साही
बच्चों को उत्साही, और निडर बनाये ताकि वह जीवन में आने वाली किसी भी समस्या का सामना कर सके। बच्चों को शुरु से ही जरुरी जानकारी भी दें ताकि किसी कठिनाई में भी वह निकलने में सफल हो सके। ढाई से पांच साल के बच्चे को घर का पता, फोन नंबर याद करवाना शुरू कर दें। अकेले में चाहे गली के नुक्कड़ में एक दुकान हो, तो भी उन्हें टॉफी, बिस्कुट, चाकलेट लेने ना भेजें। बच्चों को बताएं कि किसी भी अनजान आंटी, अंकल से टॉफी, चाकलेट खाने को ना लें। परिवार के सदस्यों के अलावा किसी के कहने पर घर से बाहर ना जाएं।
बच्चों को पुलिस वालों की यूनिफार्म की पहचान कराएं ताकि वे समझ सकें कि यह पुलिस वाला है।
अगर आप किसी मेले या मॉल में घूमने गए हैं तो बच्चों की पाकेट में घर का पता, फोन नंबर अवश्य डाल दें और बच्चे को भी समझा दें कि किसी परिस्थिति में अलग होने पर पुलिस मैन, सिक्योरिटी गार्ड या दुकानदार के पास जाकर अपने अलग होने की सूचना दे दें ताकि वे बच्चे का नाम और बच्चा कहां पर खड़ा है, किसके पास है, उसकी सूचना प्रसारित कर सकें।
किसी भी इलेक्ट्रानिक गेजेट्स को बच्चे ना छुएं, ना ही ऑन करें। उन्हें समझाएं कि ये चीजें खतरनाक हैं। इनका प्रयोग वे अपनी मर्जी से ना करें। गैस जलाने से भी उन्हें दूर रखें। उन्हें समझाएं कि बड़े होने पर आपको इसका प्रयोग सिखाया जाएगा।
बच्चों को बचपन से थैंक्यू, सॉरी, प्लीज, मैनर्स, घर पर आए अतिथि का सम्मान करना या बाहर किसी के घर जाने पर उन्हें विश करना आदि मैनर्स सिखाएं।
प्रारंभ से अपने खिलौने, चप्पल, बैग स्थान पर रखना सिखाएं।
टॉफी, चाकलेट, बिस्किट-कवर को डस्टबिन में डालना सिखाएं।
खाते समय बात अधिक न करें, न ही टीवी देखें, इस बारे में उन्हें बताएं कि ये बैड मेनर्स होते हैं।
घर के टायलेट, वाशरूम के लॉक, चिटकनी खोलना सिखाएं। पब्लिक प्लेस पर आप उनके साथ रहें और उन्हें बताएं कि अंदर से वे लॉक न करें, बस दरवाजा ऐसे ही बंद कर दें क्योंकि आप उनका ध्यान रखने के लिए बाहर हैं।
बच्चों को गुड और बैड टच की पहचान बताएं। कोई भी उनके कपड़े खींचने, उतारने, हग करने, किस करने का प्रयास करे। तो शोर मचाएं और अपने माता-पिता, दादा-दादी को इस बारे में बताएं।
2 से 5 साल तक के बच्चों को
बचपन से घर के बड़ों का आदर करना, आराम से बात करना, जवाब ना देना, मदद करना सिखाएं। पहले स्वयं भी अपने जीवन में उन आदतों को उतारें ताकि उसे यह समझने में आसानी हो।
जब दो लोग बात कर रहे हों तो बच्चे अपनी बात उस समय न बोलें। अगर जरूरी कुछ कहना हो तो एक्सक्यूज-मी कहकर बात शुरू करें।
दूसरे बच्चे से कुछ भी उनके हाथ से छीनना, उन्हें मारना, शेयर ना करना अच्छी आदतें हैं, ऐसा करने पर उन्हें समझाएं।
अपने से छोटे बच्चों को प्यार करना सिखाएं।
6 से 10 साल के बच्चों के लिए
आधुनिक उपयोगी उपकरणों का प्रयोग सिखाएं जैसे मोबाइल से बात करना, नंबर मिलाना, मैसेज टाइप करना ताकि आपात स्थिति में वह आपसे संपर्क कर सके। अगर माता-पिता दोनों कामकाजी हों तो उन्हें लैंडलाइन पर नंबर मिलाकर बात करना भी सिखाएं। कुछ जरूरी नंबर उन्हें लिख कर दे दें।
बच्चों को स्कूल टाइम टेबल के अनुसार बैग पैक करना सिखाएं। प्रारंभ में आप नजर रखें और जरूरत पड़ने पर मदद करें। इसी प्रकार यूनिफार्म व स्पोर्टस के लिए क्या ले जाना है, यह भी सिखाएं।
बच्चों को स्कूल में कंप्यूटर चलाना प्रथम कक्षा से शुरू किया जाता है। अगर बच्चा घर पर भी पेंट-ब्रश, पावर-पांइट, वर्ड पैड के लिए कंप्यूटर का प्रयोग करे तो उसे ठीक तरीके से ऑन और ऑफ करना सिखाएं ताकि आपकी गैर मौजूदगी में आसानी से बंद कर सके। इसी प्रकार टीवी, कूलर,पंखा, एसी,लाइट, माइक्रोवेव ऑन व बंद करना सिखाएं।
अगर बच्चा घर पर कुछ समय के लिए अकेला है तो उसे बताएं कि किसी के डोर-बैल बजाने पर दरवाजा न खोले। जो भी कोई अजनबी आए, उसे बाद में आने को कह दे।
फर्स्ट एड बॉक्स को आपात स्थिति में कैसे प्रयोग किया जाए, उसे बताएं कि जैसे जल जाने पर ठंडा पानी डालें, चोट लगने पर पानी से साफ कर एंटी सेप्टिक टयूब लगाना, बैंडेड लगाना, रूई से कैसे साफ किया जाए और दवा लगाई जाए, बताएं।
बच्चों के साथ आप इंडोर गेम्स खेलते हैं तो उनके हारने पर उन्हें समझाएं कि जीत और हार गेम के दो पहलू होते हैं। कभी जीत होती है, तो कभी हार भी, परंतु हारने पर निराश न होकर उसे गेम का हिस्सा मानें।
गुस्सा आने पर चीजें न पटकने की आदत डालें ताकि वह इसे रूटीन में न लें।
बच्चों को स्कूल-यूनिफार्म पहनना, उतारना, घर पर दूसरे कपड़े पहनना सिखाएं। जूते, मोजे पहनना उताकर उन्हें सही स्थान पर रखना सिखाएं।
इस आयु के बच्चों को हॉबी क्लास अवश्य भेजें ताकि समय का सही प्रयोग कर उनकी प्रतिभा का सही विकास हो सके।
11-15 के बच्चों को
इस आयु में बच्चा किशोरावस्था में पहुंच जाता है, इसलिए उसे अच्छी जानकारी व ज्ञान दें।
माइक्रोवेव, गैस जलाकर खाना गर्म करना सिखाएं और उसे उनकी सावधानियों के बारे में भी बताएं।
इस आयु में जिम्मेदारी निभाना सिखाएं, जैसे छोटे बहन भाई का ध्यान रखना, दादा-दादी के छोटे-छोटे काम करना आदि। जिम्मेदारी से बच्चों में धैर्य-शक्ति बढ़ती है। फ्रिज की पानी वाली बोतलें भरना, अपने बैड की चादर ठीक करना, किताबें संभालना, स्टडी टेबल साफ करना, झूठे बर्तन यथा-स्थान पर रखना, गली की दुकान से छोटा-मोटा सामान लेना आदि।
बच्चे घर पर अकेले रहते हों तो उन्हें जरूरी फोन नंबर की जानकारी दें। इसमें पुलिस स्टेशन, फायर बिग्रेड, एंबुलेंस का नंबर और विश्वसनीय पड़ोसी का नंबर आदि दें।
बच्चों को वीकएंड पर योगा, मेडिटेशन की कक्षा में ले जाएं, ताकि शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकें। घर पर उन्हें स्ट्रेस हैंडल करना भी सिखाएं।
बच्चों को सुरक्षा टैनिंग भी छुट्टियों में दिलवाएं ताकि अकेले ट्यूशन पर आते जाते समय या हॉबी क्लास जाते समय अपनी सुरक्षा का ध्यान रख सकें।
नौवीं कक्षा तक आते-आते उन्हें किस लाइन में इंटरेस्ट है, इस विषय पर बात करें, ताकि ग्यारहवीं कक्षा तक पहुंचने से पहले वह अपना माइंड मेकअप कर सकें।
बच्चे की योग्यता को भी मद्देनजर रखें और उन्हें बताएं कि मेहनत और लगन पढ़ाई में आगे बढ़ने के लिए जरूरी है। दूसरों की देखा देखी फैसला न लें।

इस प्रकार कमजोर बच्चे भी बनेंगे तेज
हर माता पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ाई में सबसे अच्छा बने पर कई बार कुछ बच्चे पीछे रह जाते हैं। इससे परेशान न हों और न ही कठोर रुख अपनायें। कई बार बच्चों के पढ़ाई न करने पर अभिभावक इसे उनकी शरारत समझ लेते है लेकिन जरुरी नहीं कि बच्चा जानबूझकर ऐसा कर रहा हों। कई बच्चों का खान-पान ठीक न होने के कारण उन्हें पढ़ने या याद रखने में कठिनाई होती है। अक्सर मां-बाप इस बात से परेशान रहते हैं कि उनका बच्चा स्लो लर्नर है। कई बार तो बच्चें याद किया हुआ काम भी कुछ ही दिनों में भूल जाता है। ऐसे में आपको परेशान होने की बजाएं सब्र से काम लेने की जरुरत है। इसके लिए ये उपाय करें
अक्सर बच्चों के न पढ़ने पर अभिभावक उन्हें डांटने लग जाते है या फिर बच्चें की तुलना दूसरे बच्चों से करने लग जाते है। इससे बच्चें का आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है और वो जानबूझ कर पढ़ाई पर ध्यान नहीं देता। बच्चें को डांटने की बजाए उसकी नियमित डाइट में दालचीनी को शामिल कर दीजिए। रोजाना इसका का सेवन करने से बच्चें का दिमाग तेज होगा और उसे याद करने में प्रॉब्लम नहीं होगी।
अच्छी नींद के लिए
अक्सर बच्चें नींद कम होने के कारण ठीक से याद नहीं रख पाते। नींद पूरी न होने के कारण बच्चों का शरीर और दिमाग ठीक से काम नहीं करता जिससे वो ठीक से याद नहीं रख पाते। कई बार तो बच्चे छोटी से छोटी बात को भी भूल जाते है। ऐसे में बच्चों को सोने से पहले एक गिलास दालचीनी वाला दूध दें। इससे उनको नींद अच्छी आएगी।
विषय में रुची
अभिभावक इस बात को नहीं समझते की हर बच्चा एक समान नहीं होता है। कुछ बच्चों की रुची कुछ विषयों में नहीं होती लेकिन अभिभावक उन्हें पढ़ाने के लिए बाध्य करते है। जिसके कारण वो दूसरे विषयों पर भी ध्यान नहीं दे पाते। ऐसी हालत में आप अपने बच्चों को रोजाना दालचीनी का सेवन कराएं। दालचीनी का सेवन करने से उनकी स्मरण शक्त‍ि बेहतर हो जाएगी और वो सभी विषयों में रुची लेने लगेंगे।
कमजोर बच्चें
कुछ बच्चें पढ़ाई के साथ-साथ शरीर से भी कमजोर होते है। ऐसे बच्चों के लिए दालचीनी का सेवन बहुत अच्छा होता है। कमजोर छात्रों को बेहतर छात्र बनाने के लिए यह सबसे सुरक्षित और आसान तरीका है। इसके सेवन से शरीर में रसायनिक क्रिया के बाद सोडियम नामक तत्व बेंजोएट में बदल जाता है। जिससे बच्चों का दिमाग तेज हो जाता है।

अभिभावक बच्चों के प्रतिभा को निखारने का प्रयास करें
(तेजबहादुर सिंह भुवाल)
प्रायः बच्चों की शिक्षा को लेकर माता-पिता बहुत चिंतित रहते हैं और बच्चों में शिक्षा का अधिकार एवं शिक्षा की पूरी जिम्मेदारी स्कूल पर ही छोड़ देते हैं। हर माता-पिता का सपना होता है कि उसके बच्चे अच्छा पढ़-लिख कर डाॅक्टर, इंजीनियर, वकील या फिर कोई सरकारी अधिकारी बन जाए। पर कभी सोचा है कि बच्चों को सिर्फ स्कूल के भरोसे छोड़ देना अच्छी बात है? बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए माता-पिता को भी बहुत कुछ त्याग करना पड़ता है। स्कूलों में शिक्षकों के द्वारा अपनी पूरी निष्ठा व ईमानदारी के साथ शिक्षा दिया जाता है, पर बच्चों के शैक्षणिक, मानसिक, बौद्धिक एवं व्यवहारिक ज्ञान प्रत्येक बच्चों में एक नहीं होते है। इसी के आधार पर बच्चे अलग-अलग श्रेणी में शिक्षा ग्रहण कर पाते हैं। कोई बच्चा एक बार में शिक्षकों के बातों को सुनकर, पढ़कर व देखकर सीख जाता है और अपने से खुद भी पढ़ने का प्रयास करता है। परन्तु कुछ बच्चों के द्वारा पढ़ाई में मन न लगना व अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाना एक समस्या भी बन जाती है, जिससे स्कूल के शिक्षक व माता-पिता बहुत चितिंत रहते है। इसका मुख्य कारण है कि माता-पिता अपने बच्चों को बहुत कम समय देते है। लिहाजा बच्चों में बाहरी दुनिया का हवा लग जाता है, जैसे बच्चे टीवी, मोबाईल, विडियोंगेम, फिल्म, गाना, खेलकूद में अधिक समय व्यतीत करने लगते है, जिसके कारण उन्हें पढ़ाई की ओर ध्यान कम लगता है और बच्चे पढ़ाई करने के नाम से कतराने लगते हंै। बच्चों को पढ़ाई के लिए ज्यादा मजबूर करने पर विपरित प्रभाव देखने को मिलते है, कि बच्चा चिढ़चिढ़ा होना, बात-बात पर गुस्सा करना, सामानों को तोड़फोड़ करना व आपका कहना ना मानना इत्यादि। प्रायः यह भी देखने सुनने में आता है कि आपका बच्चा स्कूल में पढ़ाई बिल्कुल भी नहीं करता, बल्कि दूसरों बच्चों को पढ़ाई करने से रोकता है, परेशान करता कभी कभी दूसरे बच्चों को मारता भी है, बच्चा हिंसक प्रवृत्ति का बनता जा रहा है। आप अपने बच्चे को समझाईये। इन सभी समस्याओं के लिए माता पिता को ही बच्चों को थोड़ा समय पर ध्यान देना आवश्यक है। बच्चों के प्रति विनम्र व्यवहार, उनकी बातों को पूरी तरह से सुनना व समझना, बच्चों को शिक्षाप्रद बाते बताते रहना, कहानियों एवं पाठ के माध्यम से व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करना लाभप्र्रद होगा। बच्चों के मन में यदि कटुता एवं शिक्षा के प्रति द्वेष समा जाए तो उसे बाहर निकालना बहुत की कठिन हो जाता है। इसलिए प्रारंभ से ही बच्चों को सही सीख व शिष्टाचार की बाते बताते रहना चाहिए। अच्छा बुरा का प्रभाव व उनसे होने वाले दुष्प्रभाव के बारे में भी बच्चों को सीखाना चाहिए।
शासन द्वारा स्कूलों में शिक्षा गुणवत्ता को सुधारने के लिए अनेकों प्रयास किए जा रहे है, कुछ हद तक बच्चों के शिक्षा में सुधार आ भी रहे है, लेकिन बच्चों के शिक्षा में सुधार के लिए घर पर ही माता-पिता एवं अभिभावकों को ही ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों को सिर्फ स्कूल पर ही निर्भर ना होने दें। माता-पिता को चाहिए कि वे भी अपना बहुमूल्य समय निकाल कर बच्चों के स्कूल में जाकर शिक्षकों से वार्तालाप कर बच्चों की दिनचर्या या पढ़ाई में आने वाली समस्याओं से अवगत कराए। जिससे शिक्षक बच्चों की समस्याओं को व्यक्तिगत रूप से समझते हुए प्रत्येक बच्चे की जरूरतों को ध्यान में रखकर बेहतर तरीके से विषय वस्तु को समझा सके और गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदाय करने में अपनी अहम भूमिका का निर्वहन कर सके।
अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों के साथ मित्रता का व्यवहार करें, उनसे स्कूल की प्रतिक्रियाओं को प्रतिदिन साझा करें, स्कूल में क्या नया सीखाया गया, उनको को समझ आया की नहीं, क्या होमवर्क दिए गए हैं। इन सभी बातों को आप प्रतिदिन अपने बच्चों के साथ साझा करें। इससे बच्चों को आपके प्रति मधुरता बनी रहेगी और बच्चा आपसे कुछ छुपाएगा भी नहीं। स्कूल से आते ही आपको स्कूल की दिनचर्या से अवगत कराएगा। बच्चे आपका पूरा कहना मानेंगे और पढ़ाई के प्रति जागरूक भी होंगे। बच्चों को एकाएक किसी भी चीज से प्रतिबंधित ना करें, धीरे धीरे समझाते हुए बच्चों को टीवी, मोबाईल एवं विडियोंगेम से दूर करने की कोशिश करें। समय-समय पर ही टीवी, मोबाईल एवं विडियोंगेम खेलते दें। सबसे अच्छा बच्चों को कहानियों की किताब पढ़ने में रूचि डलवाए, शिष्टाचार की बाते बताएं, अपनी घरेलु अच्छी बाते बच्चों के साथ साझा करते रहें। समय-समय पर बच्चों के साथ हंसी मजाक भी करते रहें। समय मिले तो बच्चों के साथ घुमने-फिरने भी जाते रहें, इससे बच्चों के मन में अच्छा प्रभाव पड़ता है। इससे बच्चों को आपके प्रति लगाव व आपके कहने मानने की प्रवृत्ति बनी रहेगी। वर्ना आप बच्चों को चिल्लाते रहेंगे और बच्चा आपका कहना नहीं मानेगा, पढ़ाई नहीं करने की जिद्द करेगा। फिर आप उस पर हाथ भी उठाएंगे। इस प्रकार बच्चा और भी जिद्दी हो जाएगा और शिक्षा के प्रति उसका पूरा ध्यान परिवर्तित हो जाएगा। यह कोशिश करें कि बच्चा स्कूल में पढ़ाई कैसा कर रहा है, उसका नियमित कापी चेक करते रहे, समय-समय पर स्कूल जाकर शिक्षकों से मिले और उसके बारे में चर्चा करें और जाने की आपका बच्चा स्कूल में कैसा प्रोफार्मेंश कर रहा है। बच्चे के पढ़ाई के स्तर को समझने का सबसे अच्छा तरीका यही है। हम प्रायः यहीं समझते है कि बच्चा स्कूल में पढ़ रहा है और घर में आकर अपना होमवर्क कर लिया पढ़ाई हो गई। हम बच्चों की पढ़ाई के तरफ से निश्चिन्त हो जाते है, जो कि गलत है। बच्चे आपके है बच्चों का भविष्य आपको सवारना है, तो बच्चों का विशेष ध्यान रखे, बच्चों की बातों का यकीन करें एवं जागरूक रहें। बच्चों के द्वारा अच्छा प्रदर्शन करने पर उन्हें प्रोत्साहित करें और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी करें। इससे आपका बच्चा अधिक उत्साहपूर्वक पढ़ाई करेगा और सभी गतिविधियों में भाग भी लेगा।
बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी स्कूल पर ही छोड़ने के बजाए घर पर भी बच्चों के शैक्षणिक, मानसिक, बौद्धिक स्तर में निरंतर सुधार लाने एवं किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी प्रदान करने का प्रयास करते रहे और घर का वातावरण बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए उपयुक्त हो इसका विशेष ध्यान रखा जाए, तभी बच्चों में शिक्षा की अलख जगेगी, बच्चों में शिक्षा के प्रति जागरूकता आएगी और बच्चे सभी विधाओं में अपना उत्कृष्टतम प्रदर्शन करने में सक्षम होंगे।

इस प्रकार हमेश आपके करीब रहेंगे बच्चे
आजकल व्यस्त होने के कारण अभिभावक बच्चों को सारी सुविधाएं मुहैया कराने के फेर में उन्हें समय देना ही भूल जाते हैं। उन्हें लगता है कि जब बच्चों को सब मिल रहा है तो उनके साथ बैठना की क्या जरुरत है पर यह सही नहीं है। इससे बच्चे सही या गलत का भेद भूल कर अपने तरीके से फैसला लेने लगते हैं जो नुकसानदेह भी हो सकता है। सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे हमेशा खुश रहें। मां-बाप बच्चों को हर खुशी देने के लिए रात-दिन काम करते है जिससे उन्हें चाहते हुए भी बच्चों के लिए समय ही नहीं मिलता । जिस वजह से बच्चे उनसे दूर हो जाते हैं और अवसाद के शिकार हो जाते हैं। अगर आप अपने बच्चों को खुश रखना चाहते हैं तो इस प्रकार रहें।
बेहतर करने की प्रेरणा दें
आपका बच्चा अगर कोई अच्छा काम करता है तो उसकी तारीफ करें और इससे भी बेहतर करने की प्रेरणा दें। इससे वो खुश भी होगा और अागे और भी अच्छा काम करेने की कोशिश करेगा।
समय बिताएं
काम में व्यस्त होने के कारण अभिभावक बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते। जब भी आपको काम से फुर्सत मिले अपने बच्चों के साथ समय बिताएं। इससे बच्चे आपके करीब आएंगे।
घर में खुश रहें
कई लोगों पर आफिस के तनाव का प्रभाव घर पर भी दिखता है। इससे साथ इससे घर का माहौल खराब होता है। इसलिए आफिस का गुस्सा और तनाव घर पर न लाएं। जब भी घर आएं खुश होकर ही आएं। आपके चेहरे की खुशी उनको भी खुश कर देगी।
ध्यान से सुनें बच्चों क बातें
अगर आपका बच्चा आपसे कोई बात करता है तो उसकी बात को ध्यान से सुने और समझें। उनकी जरुरतों को आपसे ज्यादा कोई नहीं जानता इसलिए उनकी बातों पर ध्यान दें और उन्हें पूरा करें।
अच्छी बातें सिखाएं
बच्चों को सिखाएं कि अगर कोई आपकी मदद करता है तो उसे धन्यवाद जरुर करें।

बच्चों को जानलेवा मोबाइल खेलों से रखें दूर
अगर आपके बच्चे मोबाइल और इंटरनेट का इस्सेमाल करते हैं तो सतर्क रहें। बच्चे इससे कई बिमारियों के साथ ही जानलेवा खेलों के निशाने पर रहते हैं। इस प्रकार के खेल बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति जगा रहे हैं। पोकेमान गो के बाद अब ब्लू व्हेल गेम आया है जो बेहद खतरनाक है। इस प्रकार के खेलों में खो कर बच्चे अपनी सुधबुध गंवाने के साथ ही जान तक गंवा बैठते हैं। इससे देश् विदेश् में हो रही मौतों के बाद अभिभावक डरे हुए हैं और उन्हें समझा नहीं आ रहा कि किस प्रकार अपने बच्चों को इन खेलों से बचायें। इसके लिए आपको सावधान रहते हुए उन पर नजर रखनी होगी।
मोबाइल से डीलीट करें गेम
ब्लू व्हेल के भारत में किए पहले शिकार ने बच्चों के माता – पिता को डरा दिया है। इसके बाद कई अभिभावकों ने अपने नौनिहालों के मोबाइल फोन खंगाल कर देखा कि कहीं उनमें नीली व्हेल तो नहीं छुपी है। हर कोई अपने बच्चों को नीली व्हेल से दूर रहने की सलाह दे रहा है। कई अभिभावकों ने बच्चों के मोबाइल फोन से इसे डिलीट भी करा दिया।
दुनिया में 130 से ज्यादा किशोर उम्र के बच्चों की जान लेने वाले डेथ गेम – ब्लू व्हेल ने उन माता – पिता को खासा डरा दिया है जिनके बच्चे उम्र के उस नाजुक दौर से गुजर रहे हैं जब ज्यादातर फैसले भावना और आवेश की स्थितियों में लिये जाते हैं। मुंबई में 14 साल के किशोर की मौत से डरे अभिभावकों ने अपने बच्चों के मोबाइल फोन, टैब और कंप्यूटर खंगाल डाले। ज्यादातर अभिभावकों के लिए यह सुखद जानकारी रही कि उनके बच्चों को मौत बांटने वाले इस ऑनलाइन गेम में कोई दिलचस्पी नहीं है। कुछ अभिभावकों ने यह जरूर बताया कि उनके बच्चों को इस गेम की जानकारी है और कुछ बच्चों के पास यह गेम मौजूद मिला लेकिन वे इसे खेल नहीं रहे हैं। ऐसे अभिभावकों ने तुरंत अपने बच्चों के सिस्टम से इस गेम को डिलीट करा दिया और बच्चों को बताया कि गेम उनके मनोरंजन और कुछ सीखने के लिए होना चाहिए अपनी जान गंवाने के लिए नहीं।
लोगों ने मुंबई में हुए हादसे के बाद ब्लू व्हेल ऑनलाइन गेम की जानकारी सोशल मीडिया पर साझा की और बच्चों के मोबाइल फोन देखने की सलाह दी। इस गेम से बच्चों को दूर रहने की सलाह देने के साथ ही उनके दोस्तों से भी बात करें। बच्चों को बतायें कि जीवन में रोमांच या जीत का मजा तभी है जब जीवन हो।
ब्लू व्हेल है ऑनलाइन गेम
ब्लू व्हेल ऑनलाइन गेम है जो अब तक पूरी दुनिया में 130 से ज्यादा किशोर उम्र के बच्चों की मौत की वजह बन चुका है। इस ऑनलाइन गेम में खेलने वाले को हर रोज एक नया चैलेंज दिया जाता है और उस चैलेंज को पूरा करने का वीडियो या फोटो भी ऑनलाइन शेयर करनी पड़ती है। इस वीडियो या फोटो के आधार पर ही उसे अगले दिन का चैलेंज मिलता है। 50 दिन के इस गेम में आखिरी चैलेंज आत्महत्या करने का है। आत्महत्या करने का तरीका भी ऑनलाइन बताया जाता है और उसे पूरा करने का फोटो भी खींचना होता है। मुंबई में रविवार को एक किशोर ने अपने घर के टेरेस से छलांग लगाकर जान दे दी है इसकी वजह इस गेम को ही बताया जा रहा है।
पोकेमॉन गो से हुए थे कई हादसे
आप सभी को पोकेमॉन गो गेम तो अच्छी तरह से याद होगा। जिसे पिछले साल लॉन्च किया गया, खास बात है कि ये गेम खेलने की वजह से इतना लोकप्रिय नहीं हुआ जितना कि इसके कारण होने वाली घटनाओं से हुआ। पोकेमॉन गो गेम को खेलते समय प्लेयर इतना खो जाते थे कि उन्हें अपने आस पास कुछ खबर ही नहीं, जिसकी वजह से दुर्घटना का सामना करना पड़ता था। यही वजह रही कि इस गेम को कई देशों पर कई जगहों पर प्रतिबंधित भी किया गया। वहीं अब एक और गेम सुर्खियों में है।

रुस में आया पहला मामला
सबसे पहले इस गेम से जान जाने का पहला मामला साल 2015 में रूस में सामने आया। खबर है कि इस खूनी गेम की वजह से दुनिया में करीब 250 बच्चों की जान जा चुकी है जिसमें 130 बच्चे सिर्फ रूस के हैं। वहीं भारत में इस खूनी खेल की वजह से होनी वाली मौत का पहला मामला है। लेकिन अभी तक इस गेम को बैन किया गया या​ नहीं इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

यह सब सच में बेहद ही बचकाना कहा जाएगा कि कोई व्यक्ति किसी गेम को खेलते समय उसमें इतना खो जाता है कि उसे अपने आस पास होने वाले बातों का अंदाजा ही नहीं रहता। ऐसे में जरूरत है इंटरनेट, मोबाइल पर दिन भर लगे रहने वाले अपने बच्चों की आदतों और व्यवहार पर नजर रखने की। माना स्मार्टफोन हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा हैं और खाली समय में इसमें गेमिंग भी कोई बुरी बात नहीं, लेकिन गेमिंग के दौरान सही गलत से ध्यान हटा आपको परेशानी में डाल सकता है। खासतौर पर बच्चों के मामले में ऐसी समस्या सामने आना बेहद ही संवेदनशील कहा जाएगा।

ऐसे में अभिभावकों को जरूरत है कि वह अपने बच्चों द्वारा इंटरनेट उपयोग पर पूरी नजर रखें। साथ ही हो सके तो इस प्रकार के गेम से भी उन्हें दूर रखें। इतना ही मोबाइल गेमिंग के क्षेत्र के इस प्रकार के गेम का आना ही खतरे का संकेत हैं। ऐसे गेम जो किसी के अवसाद या मौत का कारण बन सकते हैं ऐसे में गेम को तुरंत प्रतिबंधित कर देना चाहिए।

इस प्रकार पढ़ाई में रुचि जगायें
यदि आपके बच्चे का पढ़ाई में मन नही लगता है। वह पढ़ने के नाम पर बहाने बनाने लगता है। उसका खेलने में अधिक ध्यान लगता हैं, तो आप कुछ आसान से बदलाव करें। दिशा- बच्चों का मन पढाई में लगाने के लिए उनका कमरा पूर्व, उत्तर या उत्तर – पूर्व दिशा की ओर बनवाएं तथा कमरे का दरवाजा भी इसी दिशा में लगवाएं। इससे आपके बच्चे का मन पढाई में लगने लगेगा।
शौचालय- बच्चों की पढाई का कमरा शौचालय के नीचे न बनवाएं। इसके साथ ही कमरे में शीशे को ऐसे स्थान पर न लगाएं, जहाँ से किताबों पर शीशे की छाया पड़ें। इससे बच्चे के ऊपर पढाई का दबाव बनता हैं।
मुख- बच्चों को इस प्रकार बैठाएं कि उनका मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
एकाग्रता- पढाई करते समय बच्चों को किसी भी फर्नीचर जैसे – पलंग, दीवार या खुली हुई अलमारी का सहारा न लेने दें। इससे बच्चे की मन स्थिर नहीं रह पाता।
बच्चों के सोने की दिशा– जिन बच्चों का मन पढाई में बिल्कुल नहीं लगता उनको उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोना चाहिए।
खिड़की- बच्चों के कमरे के खिड़की पूर्व दिशा की ओर बनवाएं। और उसे अधिक समय खुला रखें। इससे कमरे में ताज़ी हवा का प्रवेश होगा और बच्चे के मन में नकारात्मकता नहीं आएगी तथा बच्चे के कमरे से विषाक्त तत्वों को बाहर रखेगी।
किताबों की अलमारी– बच्चों की किताबें रखने की अलमारी कभी भी उसके स्टडी टेबल के ऊपर न बनवाएं। क्योंकि इससे भी बच्चों के ऊपर पढाई का दबाव बनता हैं।
पढ़ाई की टेबल- बच्चों की स्टडी टेबल को हमेशा खिड़की के सामने रखें। जिससे उस पर सूर्य का प्रकाश पड़ सके। इसके साथ ही बच्चों की स्टडी टेबल को पूर्व या उत्तर पूर्व दिशा में रखें तथा उस पर यदि खेलने का समान हो तो उसे हटा दें। टेबल को हमेशा साफ रखें। उस पर किताबों को फैला कर न रखें। इससे बच्चा पढाई में अधिक ध्यान केन्द्रित कर पायेगा।
स्टडी लैम्प- वास्तु शास्त्र के अनुसार बच्चों की स्टडी टेबल पर एक स्टडी लैम्प जरूर लगायें।इससे बच्चों का मन एकाग्र होगा और उसके मन में नए – नए विचार आएंगे।
तस्वीरें- आप बच्चों के कमरे को सजाने के लिए दौड़ते हुए घोड़ों का चित्र, उगते हुए सूरज का चित्र लगा सकते हैं। इसके साथ ही आप बच्चे के कमरे की दक्षिण दिशा में ट्रोफी और सर्टिफिकेट भी रख सकते हैं। बच्चों के कमरे में ऐसे चित्र न लगायें, जिसमें कोई हिंसा हो रही हो या वह तकलीफ दें। क्योंकि ऐसी तस्वीरों का बच्चों के दिमाग पर गलत प्रभाव पड़ता हैं।
बाथरूम का दरवाजा- बच्चों के कमरे को बनवाते समय यह ध्यान रखें कि बच्चों के कमरे स्थित बाथरूम का दरवाजा उसके पलंग के विपरीत न हो। वास्तु शास्त्र के अनुसार माना गया हैं कि इससे बाथरूम का दरवाजा बच्चे के कमरे में उपस्थित सारी ऊर्जा को अपने अन्दर खींच लेता हैं।
आकार- आप बच्चों के कमरे को आयताकार, वर्गाकार में बनवा सकते हैं। लेकिन यदि आप बच्चे के कमरे को श्रेष्ठ आकार देना चाहते हैं, तो आयताकार में ही बच्चों का कमरा बनवाएं। क्योंकि यह आकार चारों दिशाओं को संतुलित करता हैं और जिससे उसके कमरे में पंचों तत्व भी संतुलित रहते हैं।
दीवारों का रंग-बच्चों के कमरे में हरे रंग का पेंट करवाएं। क्योंकि इससे बच्चे का मन अधिक शांत रहता हैं। यदि आपके बच्चा ज्यादा क्रोधी स्वभाव का हैं तो उसके कमरे की दीवारों पर नीला रंग करवाएं।
कम्प्यूटर- आजकल हर घर में कम्प्यूटर की व्यवस्था होती हैं तथा एक ऐसा उपकरण हैं जिसकी ओर बच्चे जल्दी आकर्षित होते हैं। यदि आप अपने बच्चे के कमरे में कम्प्यूटर रखना चाहते हैं तो इसे दक्षिण पूर्वी कोण में रखें।
सरस्वती माँ- सरस्वती माता को विद्या की देवी माना जाता हैं तथा यह माना जाता हैं कि जो बच्चा पढाई में तेज हैं उस पर सरस्वती माँ की बहुत ही कृपा हैं। आपका बच्चा अपनी पढाई में अधिक ध्यान दें इसके लिए एक उसके कमरे में एक सरस्वती माँ का चित्र अवश्य लगायें और ऐसे स्थान पर लगायें जहाँ बच्चे की नजर उस पर सीधे पड़ें।
कक्षा में पीछे बैठने की आदत– यदि आपका बच्चा अपनी कक्षा में सबसे पीछे तथा कोने में बैठता हैं तो उसे आगे बैठने के लिए प्रोत्साहित करें। क्योंकि पीछे बैठने से बच्चों का ध्यान उसके आस – पास हो रही विभिन्न क्रियाओं पर जाता हैं, तथा कोने में बैठने से बच्चे के मन में नकारात्मक विचार अधिक आते हैं उसका मन अन्य गलत कार्यों में अधिक लगता हैं तथा उसके अंदर की प्रतिभाएं छुप जाती हैं।
पर्दे – यदि आपका बच्चा प्रश्नों के उत्तर याद कर लेता हैं लेकिन परीक्षा में वह सब कुछ भूल जाता हैं तो उसके कमरे में हरे रंग के पर्दे लगायें। हरा रंग आंखों को राहत प्रदान करता है। हरे रंग के पर्दे लगाने से जब वह पढाई करेगा तो उसे शांति मिलेगी तथा इसके साथ ही वह पढाई में अपना ध्यान पूरी तरह से केन्द्रित कर पायेगा और उसे याद भी अच्छी तरह से होगा।

इस प्रकार तैयार करें बच्चों का टिफिन
बच्चों को पढ़ाई के साथ ही उर्जा के लिए अच्छा खाना भी चाहिये। आमतौर पर बच्चे बहुत मूडी होते हैं। इसलिए इस बात का ख़ास ख़्याल रखें कि बच्चों का लंच इस तरह का हो, जिससे उन्हें अधिक से अधिक पौष्टिक तत्व मिल सकें और लंच उनकी पसंद का भी हो। अक्सर बच्चे फल और सलाद खाने में आनाकानी करते हैं, लेकिन उन्हें विभिन्न शेप, साइज़ और डिज़ाइन में काटकर और कलरफुल लुक देकर खाने के लिए प्रेरित करें। कुछ बच्चे खाने में अधिक समय लगाते हैं. इसलिए खाना टेस्टी, सिंपल व ईज़ी टु ईट वाला होना चाहिए। कई बार खाना टिफिन में इस तरह से पैक किया हुआ होता है कि बच्चे हाथ गंदे कर लेते हैं या पैकिंग खोल नहीं पाते हैं। इसलिए टिफिन में लंच इस तरह से पैक करें कि बच्चे आसानी से खोल व खा सकें।
सैंडविचेज़, रोल्स और परांठा को काटकर दें, ताकि बच्चे आसानी से खा सकें।यदि लंच ब्रेक के लिए सेब, तरबूज़, केला आदि दे रही हैं, तो उन्हें छीलकर, बीज निकालकर और स्लाइस में काटकर दें। टिफिन ख़रीदते समय इस बात का ध्यान रखें कि टिफिन ऐसा हो, जिसे बच्चे आसानी से खोल व बंद कर सकें।
बच्चों को टिफिन में फ्राइड फूड न दें। यदि कटलेट, कबाब व पेटिस आदि दे रही हैं, तो वे भी डीप फ्राई किए हुए न हों।
लंच में खाने की अलग-अलग वेराइटी बनाकर दें। उदाहरण के लिए- कभी फ्रूट्स दें, तो कभी सैंडविच, कभी वेज रोल, तो कभी स्टफ्ड परांठा।
बच्चों को टिफिन में फ्रूट्स व वेजीटेबल (ककड़ी, गाजर आदि) सलाद भी दे सकती हैं, लेकिन सलाद में केवल एक ही फल, ककड़ी या गाजर काटकर न दें, बल्कि कलरफुल सलाद बनाकर दें। बच्चों को कलरफुल चीज़ें आकर्षित करती हैं।
ककड़ी, गाजर और फल आदि को शेप कटर से काटकर दें। ये आकार देखने में अच्छे लगते हैं और ऐसी चीज़ों को देखकर बच्चे ख़ुश होकर खा भी लेते हैं।
सलाद को कलरफुल और न्यूट्रिशियस बनाने के लिए उसमें इच्छानुसार काला चना, काबुली चना, कॉर्न, बादाम, किशमिश आदि भी डाल सकती हैं।
ओमेगा3 को ‘ब्रेन फूड’ कहते हैं, जो मस्तिष्क के विकास में बहुत फ़ायदेमंद होता है। इसलिए उन्हें लंच में वॉलनट, स्ट्रॉबेरी, कीवी फ्रूट, सोयाबीन्स, फूलगोभी, पालक, ब्रोकोली, फ्लैक्ससीड से बनी डिश दें।
व्हाइट ब्रेड (मैदेवाली ब्रेड) स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंचाती है, इसलिए उन्हें व्हाइट ब्रेड की जगह मल्टीग्रेन ब्रेड से बने सैंडविचेज़ और रोल्स आदि दें। इन सैंडविचेज़ और रोल्स में सब्ज़ियां, सलाद और चीज़ आदि भरकर उन्हें अधिक हेल्दी और टेस्टी बना सकती हैं।
लंच में यदि डेयरी प्रोडक्ट देना चाहती हैं, तो चीज़ स्टिक्स/क्यूब्स और दही दे सकती हैं. यदि दही दे रही हैं, तो वह ताज़ा हो.
लंच के समय बच्चों को अधिक प्रोटीन की आवश्यकता होती है. इसलिए उन्हें लंच में उबला हुआ अंडा, पीनट बटर, दाल परांठा, काबुली चना, सोया, पनीर, बीन्स आदि से बना खाना दें।
हेल्दी लंच के साथ-साथ बच्चों को पानी की बॉटल या फ्रूट जूस पीने के लिए दें।
कभी-कभी टिफिन में परांठा, सलाद, सैंडविच आदि देने की बजाय हेल्दी स्नैक्स भी दे सकती हैं, जैसे- फ्रूट ब्रेड, राइस केक, मफिन्स, फ्रूट केक, क्रैकर्स आदि।

बच्चों को सुबह उठने की आदत डालें
अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा होशियार हो तो सुबह उसे जल्दी उठने के लिए प्रेरित करें। सुबह उठने से बच्चे तरोताजा रहने के साथ ही स्वस्थ भी रहते हैं। सुबह का समय पढ़ाई के लिए अच्छा रहता है। अध्यन से यह पता चला है कि जो लोग सुबह के समय जल्दी उठते हैं उन्हें परिक्षा में अच्छे अंक प्राप्त होते हैं। बच्चों को सुबह उठने की आदत से आगे भी अपने कैरियर में लाभ होगा। आपको इस आदत से जरूर फायदा पहुंचेगा। सुबह के समय आपका दिमाग अधिक सजग रहता है। इसलिए सुबह के वक्त आप अपने काम में अधिक ध्यान लगा सकते हैं। ऐसा करने से यह काम और अधिक अच्छे से होता है। सुबह के वक्त माहौल काफी शांत रहता है, इसलिए हर काम अच्छे से होता है और आपकी रचनात्मक शक्ति भी बढ़ती है। ज्यादातर सफल लोग सुबह के समय जल्दी उठते हैं।
अगर बच्चे सुबह के समय जल्दी उठते हैं तो आप पूरे दिनभर ऊर्जावन रहते हैं। साथ ही हर काम को काफी उत्साह के साथ करते हैं।
अगर बच्चे हमेशा से ही सुबह के समय देर से उठते आएं हैं तो सुबह जल्दी उठना उनको बिल्कुल पसंद नहीं होगा। लेकिन सुबह जल्दी उठने के कई फायदे हैं। उन्हें समझायें कि सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति अपना हर काम समय पर करता है। उसके पास दिन में अपने बाकि काम निपटाने के लिए काफी समय होता है। सुबह जल्दी उठने की आदत के कारण, आप अपनी ज़िंदगी में कितना कुछ पा सकते हैं।
जब आप जल्दी उठते हैं तो आपके पास अपने काम पूरा करने के लिए काफी समय होता है। आप ज्यादा काम करते हैं और आपका दिन काफी अच्छा रहता है। समय की कमी ना रहने के कारण आप अपने वो काम पूरे कर सकते हैं, जो आप करना पसंद करते हैं, जैसे कि किताबे पढ़ना, एक्सरसाइज़ करना, योगा करना या घूमना- फिरना आदि। इसके अलावा आप अपने दिन को अच्छे से प्लान कर सकते हैं या आपको कल क्या करना
अगर आपका बच्चा देर से उठता है तो धीरे-घीरे उसका समय बदलें। अचानक ही कोई बड़ा बदलाव ना करके पहले छोटे कदम बढ़ाएं। कुछ ही समय में वह जल्दी उठने लगेगा।
रात को जल्दी सोने भेजें
अगर आपको और बच्चे को सुबह जल्दी उठना है तो यह काफी जरूरी है कि आप रात को जल्दी सोएं। अपना फेवरेट टीवी शो देखने या फिर इंटरनेट पर सर्फिंग करने की वजह से हो सकता है कि आप देर से सोते हों। लेकिन अगर आप मन में यह बात ठान लें कि आपको सुबह जल्दी उठना है, तो आपको रात को जल्दी सोने में दिक्कत नहीं होगी और आप सुबह जल्दी उठेंगे। अगर आप जगेंगे तो बच्चा भी नहीं सोयेगा।
अलार्म क्लॉक को अपने बिस्तर से थोड़ी दूरी पर सेट करके रखें, ताकि जब यह बजे तो आपको इसे बंद करने के लिए अपने बिस्तर से उठना पड़े। अगर आप अलार्म क्लॉक को अपने पास रखेंगे तो हो सकता है कि आप इसे बार-बार स्नूज़ पर डाल दें और सोते ही रह जाएं।
पढा़ई का समय तय करें
सोने से पहले अपने अगले दिन का पूरा कार्यक्रम तैयार कर लें। जो काम आपको कल करने हैं, उन्हें डायरी में लिख कर रख लें। ऐसा करने से आप यह सोच कर उत्साह से भरे रहेंगे कि आपको अगले दिन यह काम करना है। इसके साथ ही बच्चों का होमवर्क भी समय पर पूरा हो जाएगा।